केंद्र में मोदी सरकार को आए हुए 8 महीने बीत चुके हैं. मनमोहन सिंह की यूपीए/ कांग्रेस सरकार के दौरान जिन समस्याओं से एक आम मेहनतकश घिरा हुआ था क्या पिछले 8 महीनों में उनमें कोई बदलाव आया है. क्या मंहगाई व मजदूर को मिलने वाले वेतन के अंतर को पाटने के लिए सरकार दुवारा कोई कदम उठाये गए. क्या रोज़गार की अनिश्चिता, नौकरी किसी भी पल खोने के डर से मजदूरों/नौजवानों को निज़ात मिल पायी. जिस काले धन को विदेशों से लाने का वायदा हमसे किया गया क्या वह वापस आया. देश के 12 ट्रेड यूनियनों के द्वारा 02 सितम्बर 2015 की देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया.
देशव्यापी हड़ताल में भाग लें
अब जरा हम मोदी सरकार व भाजपा शासित राजस्थान व अन्य राज्य सरकारों दुवारा पिछले 8 महीनों में मजदूरों व नौजवानों से सम्बंधित किये गए कामों पर नज़र डालते हैं:-
1. पक्की नौकरियों की भर्ती पर रोक.
2. अप्रेंतेशिप कानून में परिवर्तन कर ट्रेनिंग की अवधि को असिमित बढ़ाने की छूट.
3. ठेका मजदूरी कानून में संशोधन कर ठेकदारों दुवारा कमाया वेतन व प्रोविडेंट फण्ड इत्यादि का मजदूरों को भुगतान न करने पर मुख्य मालिकों/नियोक्ता को छूट.
4. कारखाना कानून में परिवर्तन कर 40 से कम मज़दूर रखने पर मालिकों को किसी तरह का कोई रिकॉर्ड बनाने से छूट.
5. लेबर डिपार्टमेंट, इ.एस.आई. व प्रोविडेंट फण्ड विभागों के इन्स्पेक्टोरों/अधिकारीयों को मजदूर व मज़दूर यूनियन दुवारा मालिकों की कानून उल्लंघन सम्बंधित शिकायतों पर कार्यवाही/निरिक्षण करने पर रोक.
6. कारखाना बंदी व मज़दूरों की छंटनी की स्थिति में सरकार से अनुमति लिए जाने से सम्बंधित कानून में मज़दूरों की संख्या 100 से बढाकर 300 कर दी गयी है. इससे मालिकों के लिए मज़दूरों –कर्मचारियों को नौकरियों से हटाना और आसान हो गया है.
7. सरकारी बैंक व बीमा कम्पनियों में विदेशी पूंजी के निवेश की सीमा को 26 प्रतिशत से बड़ाकर 49 प्रतिशत किया गया है.
8. छोटे दुकानदार व रेहरी-पटरी को उजाडनें के लिए खुदरा व्यापार में विदेशी कम्पनियों को लाने की तेयारी चल रही है.
9. किसानों के हक़ में बने भूमि अधिग्रहण कानून में परिवर्तन कर देशी व विदेशी सरमायेदारों को बिना रोक टोक के किसान की ज़मीन पर कब्जा करने की अनुमति दे दी गयी है.
2. अप्रेंतेशिप कानून में परिवर्तन कर ट्रेनिंग की अवधि को असिमित बढ़ाने की छूट.
3. ठेका मजदूरी कानून में संशोधन कर ठेकदारों दुवारा कमाया वेतन व प्रोविडेंट फण्ड इत्यादि का मजदूरों को भुगतान न करने पर मुख्य मालिकों/नियोक्ता को छूट.
4. कारखाना कानून में परिवर्तन कर 40 से कम मज़दूर रखने पर मालिकों को किसी तरह का कोई रिकॉर्ड बनाने से छूट.
5. लेबर डिपार्टमेंट, इ.एस.आई. व प्रोविडेंट फण्ड विभागों के इन्स्पेक्टोरों/अधिकारीयों को मजदूर व मज़दूर यूनियन दुवारा मालिकों की कानून उल्लंघन सम्बंधित शिकायतों पर कार्यवाही/निरिक्षण करने पर रोक.
6. कारखाना बंदी व मज़दूरों की छंटनी की स्थिति में सरकार से अनुमति लिए जाने से सम्बंधित कानून में मज़दूरों की संख्या 100 से बढाकर 300 कर दी गयी है. इससे मालिकों के लिए मज़दूरों –कर्मचारियों को नौकरियों से हटाना और आसान हो गया है.
7. सरकारी बैंक व बीमा कम्पनियों में विदेशी पूंजी के निवेश की सीमा को 26 प्रतिशत से बड़ाकर 49 प्रतिशत किया गया है.
8. छोटे दुकानदार व रेहरी-पटरी को उजाडनें के लिए खुदरा व्यापार में विदेशी कम्पनियों को लाने की तेयारी चल रही है.
9. किसानों के हक़ में बने भूमि अधिग्रहण कानून में परिवर्तन कर देशी व विदेशी सरमायेदारों को बिना रोक टोक के किसान की ज़मीन पर कब्जा करने की अनुमति दे दी गयी है.
इन में से कई कानूनों में परिवर्तन का भाजपा मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ज़ोरदार विरोध करती रही है. यहाँ तक कि इन्हीं के दुवारा भारत बंद भी करवाए गए. इस बीच एक और बड़ा फ़ैसला जो मोदी सरकार ने लिया वह अदानी जैसे सरमाएदार को ऑस्ट्रेलिया में खनन के लिए बैंक अधिकारियों के मना करने के बावजूद 1200 करोड़ रुपए का लोन दिया जाना है.
मोदी सरकार दुवारा उठाये गए उपरोक्त लिखित कदमों से किसी को भी समझने में कोई ग़लतफहमी नहीं रह जाती है. जो सरकार 8 महीने पहले महँगाई पर रोक, नौजवानों के लिए रोज़गार के अवसर बढ़ाने, भ्रष्टाचार पर रोक लगाने, विदेशों में जमा काला धन वापस लाने व महिलायों पर बड़ रहे अपराध पर अंकुश लगाने के नाम पर पूरे बहुमत के साथ आई, उसने सत्ता में आने के बाद वादों से ठीक उलट काम किए. कुल मिलाकर निजी पूँजी को लूट की खुली छूट दे दी गयी है.
नतीजा यह है कि जी-तोड़ मेहनत करने के बावजूद अपना व परिवार का जीवन यापन बद से बदत्तर होता जा है. अब हम मेहनतकश को तय करना है कि एसी सरमायेदार परस्त सरकार के मजदूर विरोधी कदमों को चुपचाप सहते रहे या फिर मोदी सरकार के मजदूर विरोधी कदमों का जमकर विरोध करें और जब तक चुप ना बैठें जब तक की सरकार इन कदमों को वापस न ले ले. चुनाव से पहले किये गए वादों को पूरा नहीं कर देती. इस प्रकार सरकार की आम जनता के प्रति जवाबदेही को भी हमें सुनिश्चित करना होगा.
इसी समझदारी के आधार पर हमारे देश की 12 केन्द्रीय ट्रेड यूनियन व फेडरेशनों ने सरकार को घेरने की ठानी है. 5 दिसम्बर 2014 को देश भर में आयोजित धरने और 26 फरवरी 2015 को सत्याग्रह के बाद 02 सितम्बर 2015 को देशव्यापी हड़ताल का फैसला किया है. हम सभी मेहनतकशों से अपील करते है कि वे इस कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर भाग ले व इसे सफल बनाए, जिससे कि मोदी सरकार को मजदूर विरोधी कदम वापस लेने व चुनाव पूर्व किये वादों को लागू करने के लिए मजबूर किया जा सके.
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