Blog: एक दुबला पतला सा दिखने वाला साधारण सा दिखने वाला एक मजदूर हैं. जो कि दिल्ली मेट्रो में कॉन्ट्रैक्ट पर काम करता हैं और उसका काम सरिया काटने का है. वह पढ़ाई के नाम पर बस केवल अपना हस्ताक्षर कर लेता हैं और यूनियन आफिस आने से उसको इतना ज्ञान (यूनियन का अधिकार) हो गया है कि अपने ठेकेदार से आई-कार्ड और अपनी नौकरी साबित करने के लिए जरूरी कागजात लेकर संभाल कर रखता हैं.
यूनियन का अधिकार
उसका कहना है कि ठेकेदार ज्यादातर मजदूर को काम करवाने के बाद पैसे नही देता और बाद में पहचाने तक से इंकार कर देता है, तब यह कागजात बड़े काम आता हैं. यह बात वो अपने दूसरे साथी मजदूरों को भी सिखाता हैं और अपने साथ उन्हें भी यूनियन जोवाईन करवा रखा हैं. उसका मानना है कि अपने यूनियन के कारण ही दिल्ली जैसे शहर में भी बिना किसी भय के हम बड़े-बड़े ठेकेदार से लड़ पाते हैं.
एक और चौकाने वाली बात यह है कि जहां सरकार स्नातक वर्करों के लिए मिनिमम वेजेज 400 रुपया तय कर रखा हैं वही उसको सरिया काट कर रोज के 700 रुपया मिलता है और ओवर टाइम कर महीने के लगभग 25,000 तक कमा लेता है. पूछने पर की अपने ठेकेदार/कम्पनी से लड़ने में डर नही लगता तो उसका कहना है कि वह अपनी मेहनत के पैसे लेता हैं तो डरने की क्या बात हैं. जब भी उसको टाइम पर पैसा नही मिलता तो केस लगता और कम्पनी से पैसे लेता है.
आपके पंख उस पिजड़े में बन्द तोते की तरह अकड़ जायेगा
आज के युवाओं को उस कम-पढ़े मजदूर से सीख लेना चाहिए, जो कि नौकरी जाने के डर से वर्षों से चुप-चाप शोसन का शिकार होते रहते हैं. वो उस पक्षी की तरह ये सोचकर चुप रहते हैं कि वो जिस पेड़ पर बैठे हैं और अगर पेड़ की डाल (नौकरी) टूट गयी तो हमारा क्या होगा? उनके अपने पंख (योग्यता) भी हैं, ये क्यों भूल जाते हैं. अपने पंखों पर भरोशा नही करोगे तो आपके पंख उस पिजड़े में बन्द तोते की तरह अकड़ जायेगा और फिर खुला होने पर भी उड़ नही पाओगे.
यह भी पढ़ें-