आज 8 नवम्बर 2016 को अचानक से देश के प्रधानमंत्री मोदी जी टीवी पर आयें और घोषणा कर दी कि आज मध्य रात्रि से 500 और हजार रूपये का नोट बंद किया जाता है और कल से वह नही चलेगा. उसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि इससे कालाधन का देश से सफाया हो जायेगा. इसके साथ ही 1 दिन बैंक बंद तथा 2 दिन एटीएम बंद होने की बात भी कही गई. अचानक हुए इस घोषणा से पुरे देश में अफरातफरी मच गयी.
कालाधन वो जो दिख नही रहा?
एटीएम दो दिन बंद होने की बात सुनकर लोग उसी समय रात में ही एटीएम की तरफ लम्बी कतार लगा कर रुपया निकालने को मारा मारी करने लगे, जबकि यह भूल गये कि अभी निकलने वाला 500 और 1000 का नोट तो अब रद्दी हो चुका है. अब सवाल उठता है कि क्या इससे कालाधन का देश से सफाया हो जायेगा?
इसके ठीक एक दिन बाद लोगों के साथ ही बैंककर्मियों की भी अग्निपरीक्षा की शुरुआत हो गयी. लोग अपना काम-धाम छोड़कर सुबह 5 बजे से ही अपने पुराने रद्दी पड़े नोट को बदलवाने और भूखे प्यासे रहकर मुश्किल घड़ी के लिए जोड़े 500, 1000 के नोट बैंक में जमा करवाने की कोशिस में लग गयें. बाहर पूरा शहर का शहर और गाँव का गाँव खाली होकर सब बैंक के लाइन में लग गयें. मगर लगते भी क्यों नही, किसी की बेटी की शादी, किसी की बूढ़ी माँ बीमार की दवा दारु के लिए तुरंत पैसों की जरूरत जो थी.
खैर इस लम्बी लाईन में जिसको पैसे बदलकर नये नोट मिल गये उनका चेहरा देखने से लगा कि कोई जंग जीत लिया हो और जिसको नही मिला वह कल से और जल्दी आने के प्रण लेकर घर खाली हाथ लौट गया.
मगर जब दूसरे दिन भी जब पहुँचा तो वही भीड़ वही धक्का मुक्की वही पुलिस की लाठी खाने के बाद भी 1 दिन में मात्र 4000 ही बदल सकता है. मगर लोगों का हर रोज अपना काम धाम छोड़कर प्रयास जारी है. जिसको पैसा मिल भी गया तो मिला हुआ 2000 का नया नोट बाजार में कोई दुकानदार लेने को तैयार नही. अरे भाई लेगा भी कैसे उसके पास छुट्टे पैसे नही जो है. व्यापारियों का व्यापार ठप पड़ गया है और मजदूरों की मजदूरी. दूसरी तरफ लाईन में लगे लगे कई लोग अपनी बारी आने से पहले ही भगवान को प्यारे हो गये. मगर बाकी लोगों की जंग जारी है.
मगर दूसरी तरफ बाबा रामदेव लोगों का मजाक उड़ाते हुए यह कह रहे कि देशहीत में अगर सेना भूखी रह सकती है तो हम क्यों नही? बिलकुल रह सकते हैं मगर बाबा रामदेव शायद यह नही जानते कि सैनिक युध्द के समय ही सीमा पर भुखे रह कर देश के लिए लड़ते हैं.
तब भी उनके परिवार जनों बच्चे, बूढ़े माता-पिता को खाने पीने की कोई दिक्कत नही होती है मगर सरकार के इस मूर्खतापूर्ण फैसले ने हमारे साथ उन सैनिकों उन शहीदों के परिवारजनों को भी भूखे प्यासे लाईन में खड़ा कर दिया है।
हम जरूर भूखे रह सकते हैं मगर जब देशहीत की बात आयेगी तब, मगर इसमें कौन सा देशहित है कि हम अपने गाढ़ी खून पसीने की कमाई के होते हुए भी भूखे-प्यासे लाईन में धक्के खा रहे हैं. दूसरी तरफ हमारे टेक्स के पैसे ये लोग अपने मित्रों का ऋण माफ़ करने और कम ब्याज दर पर ऋण देने पर उड़ाते रहें. अभी हाल ही में इसी सरकार का एक कॉरपोरेट्स सांसद माल्या ने इनके सहयोग से हम जनता के खून पसीने के कमाई का 9000 करोड़ रुपया लेकर भागने में सफल रहा है.
हमारे ख्याल से देश का हर आदमी चाहता है कि देश का कालाधन पर रोक लगे और जिस तरह सरकार ने आनन फानन में फैसला लिया वह भी तारीफ काबिल है. मगर क्या इस फैसले को लागू करने के लिए उन्होंने कोई तैयारी की थी. एनडीटीवी के एक रिपोर्ट के अनुसार पुरे देश में 500 और 1000 रूपये के 86% नोट हैं और बाकी मात्र 14% छुट्टे के रूप में बाकी नोट हैं.
पांच सौ और हज़ार के नोट को बंद करने तक तो बात समझ आती है लेकिन ‘बैंको में जमा हमारी मेहनत के पैसे हमे लाइन में लगकर मिलेंगे और कितने मिलेंगे ये सरकार तय कर रही है’ ये बात समझ से परे हैं. हमारी मेहनत की कमाई को सरकार ब्लैकमनी वालो से तुलना कर रही है.
कल खुद प्रधानमंत्री जी ने गोवा में कहा कि ‘करोड़ो का घोटाला करने वाले चार हज़ार लेने के लिए लाइन में लगे हैं’, प्रधानमंत्री के ये शब्द उन लोगों के लिए हैं. जो अपनी मेहनत और खून पसीने की कमाई से जमा की गयी रकम को बदलने के लिए बैंक की लाइन में लगे हैं या वे लोग जो अपनी जमा कमाई में से खर्च के लिए पैसे निकालने के लिए एटीएम की लाइन में लगे हैं.
जबकि प्रधानमंत्री इस बात को भली भांति जानते हैं कि बैंक से चार हज़ार के नोट बदलने के लिए जो लोग लाइन में लगे हैं उनमे ब्लैक मनी वाला कोई भी नहीं. यदि प्रधानमंत्री सच कह रहे हैं तो देश के किसी भी बैंक में अभी तक किसी उधोगपतियों, राजनेताओं आदि को बैंकों के लाईन में लगकर पैसे लेने की खबर नही आई. प्रधानमंत्री द्वारा कहा गया यह जुमला प्रधानमंत्री पद की गरिमा के अनुरूप नहीं है.
हमें नही लगता कि कोई भी कालाधन वाला अभी के समय में नोट की सकल में रखता होगा और अगर रखा भी होगा तो क्या मोदी जी को यह लगता है कि वह बोरे में भरकर अपना नोट बदलवाने बैंक में आयेगा और आयकर विभाग तब उसे पकड़ लेगी.
एटीएम में भी पैसे ना होने की शिकायतें मिल रही हैं. ऐसे में सोशल मीडिया गरमाया हुआ है और लोग तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं. जहां कई लोग सरकार के प्रति ग़ुस्से का इज़हार कर रहे हैं तो कई लोग ये भी कह रहे हैं कि इस अच्छे क़दम की वजह से थोड़ी-बहुत तकलीफ़ झेल लेनी चाहिए.
महान साहित्यकार लक्ष्मण राव जी ने भी अपने ब्लॉग में लिखा है कि “भारत देश का यह दुर्भाग्य रहा है कि हमारे देश के वित्त मंत्री वे ही बनाए जाते हैं. जिनकी अर्थशास्त्र की पृष्ठभूमि नहीं रही है या जो हार्वर्ड या कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़कर आए हैं. कांग्रेस के राज में भी ऐसा ही रहा और वित्त मंत्री तब तक बड़ी – बड़ी बातें न करें जब तक बैंकों में लेन – देन की आर्थिक परिस्थिति सुधर नहीं जाती”.
महान विद्वान चाणक्य ने भी कहा है कि “जब राष्ट्र की जनता मुर्ख राजा की हास्यपद नीतियों के कारण अन्न, औषधि, अंतिम संस्कार इत्यादि के लिए धन होने के उपरांत भी त्राहि त्राहि करे और मुर्ख राजा इसे जनता का त्याग बता कर स्वतः अपनी पीठ थपथपाये, इसका अर्थ है कि या तो दुःखी राष्ट्र अथवा मुर्ख राजा दोनों में से एक का अंत निश्चित है”.
इतना तो तय है कि सरकार ने केवल कुछ लोगों से आयकर लेने के लिए करोड़ों लोगों को सड़क पर ला खड़ा किया है. अगर कर्मचारी अपनी मांगो के लिए एक दिन का हड़ताल करते हैं तो मिडिया छाती पिटती है कि हजारों करोड़ का नुकसान हो गया. मगर जो अभी सरकार के कदम से आया देशव्यापी हड़ताल जो पिछले कई दिनों से चल रहा है. आनेवाले समय में अर्थव्यवस्था पर कुछ तो प्रभाव डालेगा.
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