नई दिल्ली: दिनांक 11 मई को दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका की सुनवाई हुई. जिसमें याचिकर्ता सुरजीत श्यामल ने देश के विभिन्न सरकारी विभागों में Contract Employees जो कि रेगुलर वर्कर के समान काम कर रहे. उन ठेका/आउटसोर्स वर्कर के लिए “समान काम का समान वेतन” की मांग की थी. माननीय कोर्ट ने कहा सरकारी विभागों में Contract Employees रेगुलर कर्मचारी का ही काम कर रहे है.
Contract Employees रेगुलर कर्मचारी का काम कर रहे
याचिकाकर्ता ने इस याचिका के माध्यम से 47 वर्ष बने कानून के इस प्रावधान को को लागू करने की मांग की थी. रेलवे की पीएसयू आईआरसीटीसी को इसका उदाहरण देते हुए केस में पार्टी बनाया था. जिसमें बताया था कि पढे-लिखे ठेका/आउटसोर्स वर्कर को रेगूलर वर्कर के बराबर लेकर मात्र एक तिहाई 12-15 हजार रुपया देकर शोषण किया जाता है.
जिसके बचाव में आईआरसीटीसी के वकील ने कहा कि हम ठेका/आउटसोर्स वर्कर से रेगुलर वर्कर के बराबर काम नही लेते हैं और जिसने लेते हैं उनको पहले से समान वेतन दे रहे हैं. अगर जिसको भी ऐसा लगता है कि उनसे समान काम करवाया जाता है वो ठेका कानून के धारा 25 के तहत डिप्टी लेबर कमिश्नर का दरवाजा खटखटा सकते हैं. जिसके बाद माननीय कोर्ट ने पूछा कि क्या सफाई वाले कर्मचारी के बराबर भी काम नहीं करवाते? जिसपर आईआरसीटीसी कि वकील ने चुप्पी साध ली.
इसके दलील में याचिकाकर्ता के वकील श्री राकेश कुमार सिंह ने कहा कि यह सरासर झूठ और भ्रामक है कि आईआरसीटीसी के वर्कर को समान काम का समान वेतन दिया जाता है. हमने अपने प्रतिउत्तर में कई साक्ष्य माननीय कोर्ट में पेश किये है जिससे की यह साबित होता है कि न तो आईआरसीटीसी और न ही कहीं और ही सामान काम का सामान वेतन लागु है.
सरकार ने खुद नोटिफिकेशन दिनांक 23.01.2013 में स्वीकार किया है कि सरकारी क्षेत्रों में व्यापक रूप से श्रम कानून के उल्लंघन की शिकायत मिली है. जिसके बाद इस उपरोक्त नोटिफिकेशन के माध्यम से समान काम का समान वेतन लागू करनी की बात की है.
आईआरसीटीसी ने यह भी कहा कि वो सभी वर्कर को न्यूनतम वेतन देते है. जिसपर माननीय कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आज के मंहगाई में न्यूनतम वेतन का 10 से 13 हजार में किसी परिवार का गुजरा कैसे हो सकता है. आज पुरे देश में निजीकरण का दौर में ठेका वर्कर रेगुलर वर्कर के बराबर काम नहीं बल्कि रेगुलर वर्कर का ही काम कर रहे है.
इतने काम सैलरी में वर्करों से काम करवाना गुलामी करवाने जैसा ही है. इसके बाद माननीय कोर्ट ने अपने आर्डर में आईआरसीटीसी के वर्करों कि राहत देते हुए डीेएलसी(केंद्रीय) को अप्लीकेशन लगाने के 3 महीने के अंदर सामान काम को तय कर सामान वेतन को लागु करवाने का ऑर्डर दिया.
जबकि याचिकाकर्ता के वकील श्री सिंह ने मांग उठाया कि यह जनहित याचिका है और पुरे देश के वर्कर के पक्ष में मांग किया गया है कि माननीय कोर्ट सामान काम को तय कर सामान वेतन को लागु करवाने के लिए भारत सरकार को गाइडलाइन बनाने का निर्देश दें. श्री सिंह ने कहा कि देश के विभिन्न सरकारी विभागों जैसे आईआरसीटीसी, सीबीएसई, एमटीएनएल, दिल्ली मेट्रो, रेलवे के विभाग, पोस्टऑफिस, दिल्ली के लगभग सभी सरकारी अस्पताल के अलावा अनगिनत उदाहरण हमने अपने याचिका में पेश किये हैं. जहां सरकारी तंत्र द्वारा कॉस्ट कटिंग के नाम पर पढ़े-लिखे युवाओं का ठेका सिस्टम के नाम पर शोषण किया जा रहा है. मगर ठेका वर्कर चुप-चाप शोषण सहने को विवश हैं कि विरोध करने पर कहीं नौकरी न चली जाए.
मगर माननीय कोर्ट ने साफ इंकार करते हुए कहा कि इतने व्यापक पैमाने पर भारत सरकार के ऊपर समान काम का समान वेतन को लागु करने के लिए दबाब नहीं बनाया जा सकता है. पुनः श्री सिंह ने अपील करते हुए कहा कि कम से कम सरकार को इंस्पेक्शन करने का ही आदेश जारी किया जाये कि किस-किस विभाग में समान काम करवाया जाता है. मगर माननीय कोर्ट ने इसके लिए भी इंकार कर दिया.
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कितनी सरकार आई और चली गई।निजी संस्साथा के मजुदुरो को कोई नही सोचा।।