Blog: केजरीवाल सरकार दिल्ली गेस्ट टीचर को परमानेंट करने के दिशा में कोई कदम नही उठा रही है. जबकि दिल्ली में बैठी केजरीवाल सरकार हो या केंद्र की मोदी सरकार, इस दोनों ने जनता को सपने दिखा कर सत्ता पाई है. भले ही बाद में केजरीवाल कहें कि उपराज्यपाल काम नही करने दे रहे तो मोदी जी अच्छे दिन के वादे को चुनावी जुमला बता दें. कभी इनलोगों ने सोचा कि उनकी इस लड़ाई से गेस्ट टीचर ही नही बल्कि दिल्ली के सरकारी स्कूलो में पढ़ने वाले लाखों छात्र-छात्राओं का भविष्य दाव पर लगा है.
दिल्ली गेस्ट टीचर की सैलरी
इधर शोसल मिडिया पर पोस्ट डालकर दिल्ली गेस्ट टीचर परवीन तोबड़िया ने अपने कुछ साथियों के साथ आत्मदाह की बात लिख कर सनसनी फैला दी है. उन्होंने सरकार पर सीधा आरोप लगाया है कि दिल्ली के सरकारी विद्यालयों में कार्य कर रहे गेस्ट टीचर्स के साथ दिल्ली सरकार फुटबॉल खेल रही है.
केजरीवाल सरकार गेस्ट टीचर्स को कभी उपराज्यपाल के पास भेजती है तो कभी उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के पास. गेस्ट टीचर्स को परमानेंट करने के नाम पर दिल्ली सरकार गेस्ट टीचर्स के साथ न केवल खेल रही है, बल्कि अलग अलग तरह के तर्क भी दे रही है.
आगे उन्होंने कहा है कि आज दिल्ली सरकार का कहना है कि गेस्ट टीचर्स को पक्का करना अब उसके हाथ में नहीं है, दिल्ली हाईकोर्ट के आदेशानुसार दिल्ली आए सभी सर्विस मैटर्स अगस्त 2016 से उपराज्यपाल के पास हैं. दिल्ली सरकार के अनुसार केंद्र में भाजपा की सरकार है. इसके लिए अब जो कुछ भी करना है, केंद्र सरकार और उपराज्यपाल को करना है. इसलिए शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने उपराज्यपाल को दिल्ली गेस्ट टीचर्स के मुद्दे पर एक 8 पेज का लैटर भी लिखा.
दिल्ली सरकार के कहे अनुसार ही गेस्ट टीचर्स उपराज्यपाल के पास अपनी समस्या लेकर गए तो उपराज्यपाल ने गेस्ट टीचर्स को भरोसा दिलाया कि आपके साथ कोई अन्याय नहीं होने दिया जाएगा. श्री तोबड़िया के अनुसार अब फिर से गेंद दिल्ली सरकार के पाले में है. लेकिन दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री चुप्पी साधे बैठे हैं, कोई मंत्री इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोल रहा है.
गेस्ट टीचर का कहना है कि एक ओर दिल्ली सरकार गेस्ट टीचर्स के साथ होने का दिखावा कर रही है, वहीं दूसरी ओर गेस्ट टीचर्स को निकालने की तैयारी में लगी हुई है. हाल ही में पीजीटी शिक्षकों के प्रमोशन होने हैं, जिसमें सीधे सीधे 4000 से भी अधिक पीजीटी शिक्षक प्रभावित होंगे. इसी तरह 10 हजार से भी अधिक पीआरटी से टीजीटी में प्रमोशन होने हैं. जिससे 10 हजार टीजीटी प्रभावित होंगे. इस तरह दिल्ली सरकार ने अंदरखाने 15 हजार गेस्ट टीचर्स को हटाने की तैयारी कर ली है.
हमारी जानकारी के अनुसार दिल्ली में सरकार ने गेस्ट टीचर के रूप में लगभग 15 से 17 हजार से ऊपर कर्मचारियों को नियोजन पर रखा है. काफी संघर्ष के बाद सरकार को मजबूरन इनकी सैलरी 34 हजार करनी पड़ी. जबकि पहले इनको 6 हजार फिर 12 हजार उसके बाद 21हजार मासिक दी जाती थी. हां एक बात और इनलोगों को सैलरी दिन के हिसाब से मिलता है मतलब डेलीवेजर कर्मचारी की तरह.
लम्बी लड़ाई के बाद यह जीत सचमुच काबिले तारीफ़ है. यह हो सकता है कि ऊपर के आंकड़े थोडा इधर-उधर हो जाये, मगर यह बताने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि सरकारें कभी भी हक खैरात में नही देती बल्कि मजदूरों को संगठित होकर अपना हक छीननी पड़ती है. चमचे चापलूस हर जगह होते हैं जो आपको कहेंगे की सरकार ने अपने आप बढ़ाया है. जबकि सरकार को अपने आप बढ़ाना होता तो पिछले 47 वर्ष पहले बना कानून समान काम का समान वेतन और 26 अक्टूबर 2016 का सुप्रीम कोर्ट का आदेश पुरे देश में लागू हो गया रहता.
दिल्ली गेस्ट टीचर की सारी उपलब्धि तब जाकर कुछ अधूरी सी लगती है जब इनके सेवा के ऊपर रिन्यूअल की तलवार लटक जाती है. शायद अब यह जरूर सोचते होंगे कि काश पहले अपनी सेवा को 60 वर्ष की उम्र तक की करने की मांग करते तो हर साल की परेशानी से शायद बच जाते. हां यह काम बिहार सरकार के अंतर्गत काम करने वाले शिक्षामित्रों ने बहुत पहले करवा लिया है. उनका नेतृत्व सचमुच बधाई के काबिल ही नही बल्कि औरों के लिए मागदर्शन का भी काम किया है.
खैर देर आये दुरुस्त आये वाली बात है और दिल्ली के भी गेस्ट टीचरों ने भी अब इसी मांग को लेकर अड़ गये हैं. जिसके बाद एक साथ सड़क पर उतर कर प्रदर्शन भी किया है. जानकारी के अनुसार दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी से लेकर उपराज्यपाल के घर के बाहर डेरा भी डाला है. जिसके बाद शायद भले ही कुछ लोग यह सोचते होंगे कि कुछ नही होगा, मगर इस प्रदर्शन ने केजरीवाल सरकार की कुर्सी हिल गयी. मजबूरन कहें या गेस्ट टीचर के एकता के सामने सरकार ने घुटने टेक दिये और अभी हाल ही में निकाली गई भर्ती रद्द कर दी गई. यह सौ फीसदी गेस्ट टीचर्स की एकता की जीत है.
ऐसे स्थिति में गेस्ट टीचर का इतना मजबूत संगठन यदि आत्मदाह करने की बात करे तो हमें नही लगता है कि इससे सरकार के सेहत पर कोई फर्क पड़ेगा. सरकार तो और खुश होगी कि चलो जान छूटी. आत्महत्या या आत्मदाह करने की बात केवल कमजोर लोग करते हैं और मजबूत सिपाही तो जंग के मैदान में शहीद होते हैं. जो लोग भी आपको आत्मदाह की सलाह दे रहें हैं, वो कभीं आपके शुभचिंतक नही हो सकते हैं. वो अपना राजनितिक हित साधने के लिए आपकी बलि चढा देंगे. ऐसे लोगों को पहचानें और अपने माँ बाप और परिवार के बारे में सोचें.
अगर गेस्ट टीचर के किसी भी साथी ने यह लेख पढ़ा हो तो अपने साथियों को जरूर समझाएं कि लड़ने वाले केवल जीतने के लिए लड़ते हैं. भारत के संविधान ने हमें वोट का अधिकार दिया है जिससे की हम सरकार बना सकते तो गिरा भी सकते हैं. अगर हम अपनी सैलरी लड़ कर 6 हजार से 34 हजार करवा सकते हैं तो परमानेंट होना कौन सी बड़ी बात है. बस किसी का फुटबॉल न बनें.
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