जीना जोसेफ मूलतः केरल की निवासी हैं. अपने टर्मिनेशन से पहले इंस्टिट्यूट ऑफ़ लीवर एंड बिलरी साइंसेज (ISBL), वसंत कुंज में नर्सिंग असिस्टेंस के रूप में कार्यरत थी. बताया जाता है कि वो काफी मिलनसार है. पहले जब भी कोई वीआईपी आईएसबीेएल अस्पताल में ईलाज के लिए आते, तब अस्पताल प्रबंधन द्वारा ज्यादातर जीना को उनके देखभाल की जिम्मेवारी दी जाती थी. यहां तक की पूर्व राष्ट्रपति महोदया श्रीमती प्रतिभा पाटिल से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल तक को अस्पताल में अपनी सेवा के दौरान उन्होंने कभी भी शिकायत का एक भी मौका नहीं दिया. अभी भी अगर आप देखेंगे तो जीना ने अपने फेसबुक प्रोफाइल में श्रीमती प्रतिभा पाटिल के साथ फोटो लगा रखा है.
प्रबंधन के तरफ से सबकुछ ठीक चल रहा था. मैनजेमेंट भी उनके काम से काफी खुश था. ऐसा मैं नहीं बल्कि खुद जीना जीसेफ ने तब कही थी. जब हमलोग दिल्ली में कॉन्ट्रैक्ट वर्कर के मसले “सामान काम का सामान वेतन’ की मांग के लिए दिल्ली सचिवालय पर प्रदर्शन का आयोजन किया था.
सिस्टर जीना ने बताया कि यूं तो आईएसबीेएल प्रबंधन ने हमें ठेके पर रखा हुआ था. जो कि हमेशा रिन्यू किया जाता था. इस दौरान अपने शिफ्ट से ज्यादा काम करने और इंकार करने पर नौकरी से निकाल देने की धमकी देना आम बात थी. उन्होंने कहा कि काम ज्यादा करवाये तो कोई बात नहीं, मगर हमेशा मानसिक दबाब में काम करना होता था. जिससे मुश्किलें बढ़ती जा रही थी. उन्होंने आगे बताया कि इस दौरान सारा काम हम लोग परमानेंट की तरह ही करते थे.
इसी दौरान श्री अरविन्द केजरीवाल, मुख्यमंत्री, दिल्ली सरकार का आईएसबीेएल में ईलाज के लिए आये. जीना ने हिम्मत करके श्री केजरीवाल को अपने और अपने साथी कर्मचारियों के साथ प्रबंधन द्वारा शोषण किये जाने की बात बताई और उनसे सहायता करने की अपील कर डाली. बस उसी दिन से जीना प्रबंधन के आंखों में खटकने लगी.
उन्होंने बताया था कि प्रबंधन ने उसी समय उनको नौकरी से निकलने का मन बना लिया था. उस दिन सिस्टर जीना माईक पकड़ कर ठीक से बोल भी नहीं पा रही थी. बस रोये जा रही थी. तब सीटू की राष्ट्रीय सचिव कामरेड सिंधु ने गले लगाकर जीना का हिम्मत ही नहीं बढ़ाया बल्कि उनके हर लड़ाई में साथ होना का वादा किया. जिसके बाद सीटू के दबाब और कर्मचारियों के काफी विरोध के बाद प्रबंधन के लोग अपनी मंशा में सफल नहीं हो सके. प्रबंध चुप बैठ गया.
शायद लोगों ने तब समझा की मामला शांत हो गया मगर प्रबंधन कहां चुप बैठने वाला था. 27 सितम्बर 2017 को जीना जोसेफ को सेवा खराब होना बताकर नौकरी से टर्मिनेट कर दिया गया. जिसका सदमा जीना बर्दास्त नहीं कर पाई. मामले ने तब जोर पकड़ा जब जीना ने एक दिन बाद बाथरूम में अपने हाथ का नस काट कर आत्महत्या करने की कोशिश की. उनके नौकरी पर वापस पर रखने की मांग जोर पकड़ने लगी और उनके समर्थन में अस्पताल के सारे कर्मचारी काम बंद करके अस्पताल के बाहर धरने पर बैठ गए.
विभिन्न समाचार पत्रों के माध्यम से पता चला की जीना जोसेफ को किसी ने बाथरूम में बेहोशी की हालत में देखा तब जाकर उनको तुरंत ही चिकित्सा मुहैया कराई गई. वही उनके साथी कमचारियों ने आरोप लगाया है कि इस चिकित्सा के आड़ में प्रबंधन ने जीना को नींद का इंजेक्शन जो कि आम इंसान को केवल 4 Mg. दिया जाता है वह 40 Mg. देकर हत्या करने की कोशिश की थी.
उन्होंने आगे बताया कि इसके खिलाफ भी केस दर्ज करा दिया गया है. अस्पताल प्रबंधन के डॉक्टर ने इसको पेपर पर खुद दर्ज कर रखा है. ऐसे अपराधी किस्म के लोगों को सजा दिलाने तक हमारी लड़ाई जारी रहेगी. उन्होंने बताया कि जीना अब क़ानूनी लड़ाई लड़ेगी और जीतेगी. कानून का डंडा जब राम रहीम जैसे हाई प्रोफाइल लोगों को धूल में मिला सकता है तब आईएसबीएल के मगरूर और अपराधी किस्म के अधिकारी क्या चीज है.
हमारा संदेश
खैर कल क्या होगा, यह कोई नहीं जनता. मगर जीना के जो साथी ने भी यह स्टोरी पढ़ी हो उनको हमारा सन्देश जरूर देंगे. उनसे हमारा कहना है कि जीना, आपका नाम मां बाप ने जीना कुछ सोच कर रखा है. हमारी समझ से “जीना” का मतलब जिंदगी है. आपने जो काम अपने और अपने साथियों के लिए आवाज उठा कर किया, वह बेशक तारीफ के काबिल है. मगर आपके द्वारा आत्महत्या की कोशिश करना गलत स्टेप था. अगर आप ही मर जायेंगी तो यह तो आपके प्रबंधन में बैठे गलत लोगों की जीत होगी.
हमारी गुजारिश है आगे से ऐसी कभी सोचे ही नहीं. आप शोषण के खिलाफ लड़े और जीते, यही हमारी कामना है. अगर कभी मन में कुविचार आये तो कम नीचे लिखी लाईन जरूर याद कर लेना, आपको खुद पर गर्व होगा. आपको शायद पहली बार नौकरी से निकला गया हो मगर स्टोरी लिखने वाला हर बार निकाला जाता है. जब लोगो पूछते है कि बुरा नहीं लगता, तो जबाब होता है ….
“गिरते हैं शह सवार ही मैदाने जंग में,
वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनो के बल चले”.
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