“सरकार इस बात को लेकर परेशान नहीं करती कि मैंने आंगनवाड़ी को कैसे संचालित किया. सरकारी अधिकारी उससे रजिस्टर की मांग कर रहे है जबकि उसके पास रजिस्टर खरीदने के लिए पैसे नहीं है. उसने लिखा है कि मेरे पास फोटो कॉपी के लिए पैसे नहीं है जबकि आंगवाड़ी चलने के लिए 20 रूपये की जरुरत होती है. आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने अपनी मांगों पर विरोध प्रदर्शन और रैलियों के द्वारा सरकार के अनुरोध पर अनुरोध किया कि मजदूरों और सहायकों के लंबित बकाए जारी कर दें. मगर फिर भी वेतन नहीं दिया गया.
सच में पेट की भूख केवल रोटी से ही मिटती है. जब मेहनत मजदूरी करने के बाद भी दाम मांगने के लिए सड़क पर उतरना पड़े तो देश में विकाश कैसे पैदा होगा? कल तक सामंत और कॉरपोरेट्स मजदूरों से काम करवा कर पैसा नहीं देते थे. आजकल यह काम सरकारें करने लगी है. ऐसे में देश का क्या होगा. कोई हीरा चोर तो कोई खीरा चोर, मगर चोर तो चोर होता है. जिसको जहां मौका मिल रहा लोगों को लूट रहा है. सचमुच देश बदल चूका है.
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