कल पटना हाई कोर्ट ने जिस तरह से नियोजित शिक्षकों के समान वेतन (Equal Pay) के मामले में फैसला दिया. वह सचमुच अविश्वसनीय ही है. इससे एक बार फिर से गरीब मजदुर वर्ग का न्याय प्रणाली में आश जगी है. याचिकाकर्ताओं ने बिहार सरकार द्वारा रूल 6 एवं 8 बिहार जिला परिषद् सेकेंडरी, हायर एजुकेशन टीचर एम्प्लॉयमेंट एवं सर्विस कंडीशन रूल 2006, बिहार पंचायत प्राइमरी टीचर एम्प्लॉयमेंट एवं सर्विस कंडीशन रूल 2006, बिहार निगम प्राइमरी टीचर एम्प्लॉयमेंट एंड सर्विस कंडीशन रूल 2006 को चुनौती दी थी. जिसको सही पाते हुए माननीय हाई कोर्ट ने सामान काम का सामान वेतन का आर्डर दिया है.
पटना हाईकोर्ट के Equal Pay का आर्डर
सन 8.12.2009 को बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के नेताओं ने सर्वप्रथम समान वेतन (Equal Pay) के मांग के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर किया था. जिसके बाद 2013 में बिहार टीचर स्ट्रगल कमिटी के 14 शिक्षकों ने भी इसी मांग के लिए याचिका दायर किया. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट का 26 अक्टूबर 2016 के फैसले के बाद अन्य 12 संघों और संगठनों ने भी इसी मांग के लिए हाई कोर्ट में अपील की. कल के ऐतिहासिक फैसले के लिए सभी संघर्षरत साथी बधाई के पात्र हैं.
आर्डर के अनुसार बिहार सरकार ने केस के सुनवाई के दौरान दिनांक 11 अगस्त 2015 को नियोजित शिक्षकों के लिए पे स्केल का नोटिफिकेशन निकला था. जिसके अनुसार उनके सैलरी का स्लैब बनाया गया था. शिक्षकों के तरफ से दलील दी गई थी कि याचिकाकर्ता एक ही सरकारी स्कुल में पढ़ाते हैं और वे लोग भी उसी स्लेबस की किताब पढ़ाते हैं. जिस किताब को रेगुलर टीचर पढ़ते हैं.
मगर सरकार भेदभाव करते हुए दो प्रकार की सैलरी देती है. जबकि उनकी शिक्षा भी सामान ही है और जिम्मेवारी और काम भी उनके सामान ही है. 10+2 की कॉपी के मूल्यांकन के समय नियोजित और स्थाई दोनों शिक्षक साथ-साथ काम करते हैं और इस काम के लिए उन दोनो को इसके लिए बराबर का परिश्रमिक दिया जाता है. दोनों कैटेगरी के शिक्षक चुनाव ड्यूटी में जाते है तो एक सामान पैसा दिया जाता है. मगर सरकार द्वारा आर्टिफीसियल तरीके को अपना कर दोनों के बीच सैलरी के लिए भेदभाव किया जाता है.
शिक्षकों के वकील ने कहा कि स्थाई शिक्षक जहां 56,000 सैलरी लेते हैं. वहीं स्थाई चपराशी 37,541 जबकि 12वीं पास ट्रेंड टीचर मात्र 20,661 रूपये पाता है. चपराशी के काम वेतन होने के कारण शिक्षक हतोत्साहिक होते है और जो कि भारत के संविधान के बराबरी के हक़ का खुला उल्लंघन है.
माननीय न्यायालय ने 92 पन्नों के आर्डर में कहा कि सभी तरह के नियोजित शिक्षकों को 8 दिसम्बर 2009 की तिथि (कोर्ट में दायर पहली याचिका की तिथि) से ही समान वेतन दिया जाए. इस आदेश के अनुसार आदेश की तारीख से अगले तीन महीने के अंदर स्थाई शिक्षक के बराबर पे-स्केल बनाकर सभी बकाया भुगतान करने को कहा गया है. आगे माननीय कोर्ट ने सरकार को कहा है कि वित्तीय कमी का हवाला देकर नहीं बचा जा सकता है. इसके साथ ही नियोजित शिक्षकों को सातवे वेतन का लाभ भी स्थाई शिक्षक के साथ देने को कहा है.
कुछ लोग अभी भी भरम में हैं कि यह आर्डर फलाना के लिए लागु होता है फलाना के लिए नहीं. इसके लिए बताना चाहता हूँ कि सबसे पहले हाई स्कुल के शिक्षकों के द्वारा ने इस मांग के लिए कोर्ट में याचिका दायर किया था. उसके बाद हर तरह के शिक्षक जो स्कुल में नियोजन के माध्यम से लगे हैं, चाहे वह जिला परिषद् सेकेंडरी, हायर एजुकेशन टीचर, बिहार पंचायत प्राइमरी टीचर या अन्य कोई भी जो सरकारी स्कुल में कार्यरत हैं. सबके लिए यह फैसला है. कंफ्यूज होने को जरुरत नहीं है. यह सचमुच ऐतिहासिक फैसला है.
श्री शिवचंद्र प्रसाद नवीन, भूतपूर्व संयुक्त सचिव, बिहार स्टेट प्राईमरी टीचर एसोसिएशन ने कोर्ट के इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए इस मांग को लेकर संघर्षरत सभी शिक्षकों को बधाई दिया है. उन्होंने कहा है कि बिहार सरकार ने स्थाई शिक्षकों के तरह ही नियोजित शिक्षकों की सेवा 60 वर्ष तक नियमित कर दी है, तो वेतन में अंतर क्यों? उन्होंने आगे कहा कि इसमें कोई शक नहीं की सरकार इस फैसले को चुनौती देने सुप्रीम कोर्ट जायेगी. मगर सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही 26 अक्टूबर 2016 को कॉन्ट्रैक्ट वर्कर और अन्य सभी प्रकार के वर्कर को सामान काम का सामान वेतन नहीं देना शोषणकारी बताते हुए इसको वर्करों का हक़ बताया है.
देश में पूंजीवादी व्यवस्था धीरे-धीरे पांव पसारता जा रहा है. सरकार द्वारा इस तरह का भेदभाव पूंजीवाद व्यवस्था के अंतर्गत किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार भारत की बराबरी अमेरिका से तो कर करने लगता है मगर यह नहीं देख पाता कि अमेरिका के पास इतना रोजगार है कि वह दूसरे देशों में अपना काम आउटसोर्स करता है. जबकि हमारे देश में बेरोजगारी का प्रतिशत कितना है. चंद कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचने के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त युवा को खुद सरकार ही ठेकेदार के द्वारा 5 हजार में काम करवाया जाता है. ऐसे में हमारे देश का विकास होगा या उस 10 प्रतिशत ठेकेदार और पूंजीपति का? जब देश के नागरिक के जेब में पैसे ही नहीं होगा तो वह खायेगा क्या और पढ़ायेगा क्या?
आज ही एक मित्र पूछ रहे थे कि यह फैसला लागू करना कठिन होगा. मगर शायद वे भूल रहे है कि छठा वेतन लागू होने से पहले बिहार के स्थाई शिक्षकों का वेतन मात्र 6,000 – 7,000 हजार रूपये था. उसके बाद जैसे ही छठा वेतन लागू हुआ वैसे ही उनको सैलरी लगभग 23,000 – 25,000 हजार हो गई. उस समय भी काफी लोगो को छठा वेतन लागू होना सपना जैसा ही लगता था. एक जमाना था जब लोगों ने मंगल और चांद पर जाने की कहानियां ही सुनी थी. आज जमाना है जब हम मंगल और चांद पर जमीन खरीदने के लिए बुकिंग कर रहे हैं. परिवर्तन ही संसार का नियम है.
जब मैंने भी 2013 में लोगो से “सामान काम सामान वेतन” की बात करना शुरू किया था तब कोई यकीन ही नहीं करता था. कोई कहता कि अगर ठेका वाले को स्थाई के बराबर वेतन मिलेगा तो फिर एग्जाम देकर स्थाई रखने की जरुरत ही क्या है? कोई कहता कि अगर आईआरसीटीसी ठेका/आउटसोर्स वर्कर को स्थाई के बराबर सैलरी दे देगा तो मै नौकरी से इस्तीफा देकर मैक्डी में बर्तन धोने का नौकरी कर लूंगा. ऐसी बातें सुनकर लोग उनकी बातों पर यकीन कर लेते थे.
मेरे लाख समझने का असर या लोग जीरो कर देते थे. ये लोग पढ़े लिखे थे मगर वो कभी नहीं चाहते थे कि जिनपर वो मैनेजमेंट के साथ मिलकर हुकूमत करते हैं. उन लोगों की सैलरी उनके बराबर हो. मानव का स्वभाव होता है कि वह जितना अपने दुःख से दुखी नहीं होता जितना वह दूसरे के ख़ुशी से दुखी हो जाता है. खैर हमारे संघर्ष के कारण आज आईआरसीटीसी में ठेका/ऑउटसोस वर्कर की सैलरी 20,000 से 50,000 हजार मासिक तक है, पिछले 10-12 वर्षों से पहले जिनको 6000 तो बाद में मात्र 10,000-12,000 दिया जाता था. यही नहीं हमारे ऑफिस में काम करने वाले गार्ड और सफाईकर्मी को भी इस लड़ाई का लाभ मिला और उनकी भी सैलरी 7,000 से बढ़कर 14,000 मासिक हो गई. इसपर भी पहले लोग यकीन नहीं करते थे.
ऐसे लोगों से बचे जो आपको गुमराह करते है. याद रखे दुनिया में कठिन सब कुछ है मगर असंभव कुछ भी नहीं. अगर आप “मान लोगे तो हार होगी और ठान लोगे तो जीत”. इस मंत्र से बहुत ही शक्ति मिलती है. हम मजदूर देश की ताकत है. हम सरकार बनाना भी जानते है और गिरना भी. मगर अगर ऐसा नहीं कर पाते तो इसका कारण है कि हम संगठित नहीं है.
कार्ल मार्क्स ने नारा दिया था कि दुनिया के मजदूरों एक हो. मगर हमारे मजदूर नेता यह नारा हमसे रोज लगवाते हैं. मगर क्या वो खुद एक हैं? अब आप ही सोचिये कि जब तक वो खुद एक नहीं हो पायेंगे तो हम मजदूर एक कैसे एक रह पायेंगे? कुछ लोगो के निजी स्वार्थ ने छिहत्तर संघ/संगठन बना रखा है. लड़ाई एक है मगर बैनर अलग-अलग. ऐसे में मजदूर तो एक होना चाहता है मगर वो स्वार्थी नेता उनको एक नहीं होने देते.
अब ऐसे में मजदुर को समझ में ही नहीं आता कि असली संगठन कौन है और नकली कौन? इस हक़ को पाने के लिए अपने संघ और संगठन को दबाब डाल कर सभी शिक्षकों को एक साथ आना जरुरी है, नहीं तो बिहार में भी छोटा योगी सरकार ही है. इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा. खैर, जब मजदुर जागेगा तभी नया सवेरा होगा.
Very nice written Sir..
Historical Judgment