आईआरसीटीसी रेलमंत्रालय एक ऐसी पीएसयू है, जिसमे परमानेन्ट वर्करो ने पिछले 13 वर्षो मे यूनियन बनाने की बात तो दुर, अधिकारियो से नजर मिला कर बात करने की नहीं सोची होगी. हमारे जानकारी के अनुसार अभी तक जिन लोगों ने भी आवाज उठाने की कोशिश की या तो उनको नौकरी से निकाल दिया गया या फिर उनका कहीं दूर ट्रान्सफर कर गया. मगर अब शायद आईआरसीटीसी के तानासाही का अंत समय आ गया हो. IRCTC वर्कर ने गैर-क़ानूनी ढंग से कटे पीएफ के विरोध में प्रदर्शन किया.
IRCTC वर्कर ने प्रदर्शन किया
मैनेजमेन्ट के शोषन के खिलाफ़ ठेका वर्करो के द्वारा धधक रही विरोध की चिंगारी को पहली हवा दिनांक 26.08.2013 को दिल्ली के आई.टी.सेंटर मे दी गयी थी. जब 125 वर्करो का दल ने ठेका कानुन 1970 के अनुसार “समान काम का समान वेतन” का शांतिपूर्ण मांग पत्र सीएमडी को दिया था. जिस मांग छुब्ध होकर प्रबंधन ने हिटलरशाही दिखाते हुए इस दल की अगुआई करने वाले सुरजीत श्यामल को सर्विस खराब का हवाला देते हुए नौकरी से निकाल दिया था. जबकी श्री श्यामल को उसी वर्ष का वेस्ट एम्प्लोयी अवार्ड सीएमडी प्रदान किया गया है.
उन्होंने हिम्मत न हारते हुए सरकार द्वारा ठेका कानुन के तहत “समान काम का समान वेतन” की मांग सरकार के पास उठाई. जबकि यह 44 साल बीत जाने के बाद भी कही लागु नही हुआ है. उनके अनुसार 69 लाख से भी ज्यादा ठेका वर्करों का हक मारा जा रहा है. इसके लिए उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. दिल्ली हाई कोर्ट ने 02.04.2014 को नोटिस जारी कर सरकार और आईआरसीटीसी से जबाब मांगा.
इधर इस लड़ाई से प्रेरित होकर फ़िर से कुछ वर्करो ने साहस का परिचय दिया. जिसके बाद उनके प्रयास से आईआरसीटीसी में यूनियन में धीरे-धीरे ठेका वर्करो को जोड़ना शुरु किया. सभी वर्करो ने गैर कानुनी ढंग से कटे पी.एफ. का ऐतिहासिक विरोध ( 02.12.2014) दर्ज किया . जिससे मैनेजमेन्ट घबरा गयी. जिसके बाद आनन-फ़ानन मे उलटे-पुलटे डिसिजन लेने लगी. इस लड़ाई ने पूरे देश के ठेका वर्करो को एक उम्मीद जगी और ओ यूनियन की ताकत को जान गये.
जिसके परिणाम स्वरुप मुम्बई राजधानी के ठेका वर्करो का नौकरी से निकाले गये अपने साथियो को संगठन के दम पर वापस ही नही करवाया, बल्कि अभी अपने यूनियन को मजबुत और लोगो मे जागरुकता फैलाने का भी काम बाखुबी कर रहे है. आने वाले समय में एक चिंगारी शोला बनाकर इंकलाब लायेगा.
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