IRCTC Worker (आईटी सेंटर) के सभी वर्करों को पता है की नोयडा भेजने का खेल कम्पनी आज से नही बल्कि पिछले कई वर्षों से खेल रही हैं. 2014 में कॉल सेंटर का नॉएडा जाना सबको याद होगा. उस टाइम मैनेजमेंट जब नॉएडा भेज रहा था तो डीओईई यूनियन ने आपके लिए बस एक अपने लैटर हेड से केवल एक शिकायत पत्र डाला था, जिससे आपका नॉएडा जाना रुक गया था. दरअसल उस टाइम मैनेजमेंट को लगा था कि सब वर्कर्स यूनियन से जुड़े है, और अगर जबरदस्ती ऐसा किया तो वर्कर हंगामा कर सकते हैं. इसलिए घबरा कर प्रबन्धन ने अपने मौखिक आदेश वापस ले लिया.
IRCTC Worker आईटी सेंटर
इसके बाद पीएफ का जब दोनों हिस्सा (एम्प्लोयी+एम्प्लॉयर कॉन्ट्रिब्यूशन) वर्कर के वेतन से काटा गया तो सभी वर्करों ने अपनी यूनिटी प्रदर्शित करते हुए जबर्दश्त विरोध प्रदर्शन किया. इसके समर्थन में सीटू के नेताओं ने भी दबाब बनाने में कोई कसर नही छोड़ी, और आखिर में वर्करों के यूनिटी की जीत हुई. प्रबन्धन वर्कर प्रतिनिधियों से वार्ता को राजी हुई और एक सप्ताह के अंदर गलत कटे पैसे वापस करने और आगे से कानून के अनुसार कटौती के साथ ही साथ हमारी यूनियन ने प्रबन्धन द्वारा रोके हुए इंक्रेअमेन्ट का मुद्दा भी छेड़ा था.
प्रबन्धन के तरफ से श्री सुनील कुमार जीजीएम/आईटी ने बताया कि यह पॉलिसी मैटर है और इसके लिए वो जल्द ही वर्कर प्रतिनिधियों के साथ उच्चाधिकारियों की वार्ता करवा देंगे. इसके साथ ही सर्व सहमति से वर्कर प्रतिनिधियों ने वर्करों को काम पर लौटने की गुजारिश की, मगर मैनेजमेंट ने चालाकी दिखाते हुए वर्करों के भीड़ में खड़े किये हुए अपने चापलूसों के माध्यम से वर्करों को काम पर वापस जाने नही दिया. वर्करों ने भी बहकावे में आकर अपनी यूनिटी दिखाने के चक्कर में वर्कर प्रतिनिधियों के समझौते को नही मानकर भारी गलती की.
आखिर में जब वर्कर काम पर लौटे तो धीरे-धीरे वर्करों ने उन चापलूसों की पहचान कर ली, क्योकि तब तक वह खुलेआम बोलना शुरू कर चूका था कि वह मैनेजमेंट का आदमी है. इसके बाद तो उन्ही वर्करों को डराने धमकाने लगा, जिन सीधे-साधे वर्करों ने इनकी बात मानकर समझौतो को नही माना और कम्पनी के गेट पर हंगामा जारी रखा था.
प्रबन्धन ने अपने उक्त चापलूसों के माध्यम से सीधे-साधे वर्करों की नासमझी का खामयाज मैनेजमेंट ने पूरा-पूरा उठाया कॉल सेंटर का टेंडर निकाल कर नौकरी से निकालने का चाल चला. वर्करों की बची-खुची यूनिटी ने यूनियन सीटू की सहायता से मिलकर दिल्ली हाई कोर्ट में इसको चैलेंज करके सभी वर्कर्स साथियो की नौकरी अप्रैल-2014 से अभी तक बचा रखी थी.
इसके बाद तो मैनेजमेंट के अधिकारियों से लेकर चापलूसों तक सबने वर्करों को प्रताड़ित करने की कसम खा ली। वर्करों का दैनिक उपयोग का पीने का पानी से लेकर महिला वर्करों का सुबह 10 से दोपहर 12 बजे तक बाथरूम जाने पर रोक लगा दिया. पहले तो वर्कर चुपचाप सहन करते रहें, मगर जब मामला बर्दास्त से बाहर हो गया तो सीटू के बैनर तले 15 जून 2015 को प्रदर्शन के माध्यम से अपनी उक्त माँगो/शिकायत को आईआरसीटीसी के अध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत किया.
6 वर्करों ने हिम्मत न हारी
इसके बाद उच्चाधिकारियों ने रंजिश भरा करवाई करते हुए विरोध की अगुआई करने वाले 6 वर्करों को बिना कोई नोटिस और बिना कारण बताये नौकरी से निकाल दिये. इसके बाद भी इन 6 वर्करों ने हिम्मत न हारी और धुप और वर्षा की परवाह किये बिना पूर्व गैरकानूनी ढंग से निष्काषित सुरजीत श्यामल के नेतृत्व में लगातार 16 दिनों तक आईटी सेंटर के बाहर धरना पर जमे रहे. उनके साथियों को ऑफिस के अंदर लगातार धमकाया जाने लगा कि जो भी वर्कर धरना पर बैठे वर्करों के पास जायेगा या उनसे बात करेगा.
उसको भी उन्ही की तरह नौकरी से निकाल दिया जायेगा. ज्यादातर वर्कर ने सही गलत का फैसला किये बिना पहले अपनी नौकरी बचाने की सोची, मगर लाख धमकियों के बाबजूद कुछ जुझारू वर्करों ने तब भी साथ नही छोड़ा, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या काफी कम थी। इस मौके का फायदा उठाते हुए मैनेजमेंट ने अपनी आखिरी चाल चल दी. एक लेटर बनाया गया कि बाहर धरना पर बैठे लोग हमारा प्रतिनिधित्व नही कर रहें हैं और न ही हम इसका समर्थन करते हैं.
इसके बाद अपने चापलूसों के माध्मय से वर्करों को गुमराह कर और डरा धमका कर साइन करवाने का सिलसिला शुरू हुआ और लगभग सवा सौ वर्करों ने अपना साइन देकर अपनी एकता में टूट की लिखित जानकारी प्रबन्धन को दे दी. इसके बाद मैनेजमेंट ने एक और चिठ्ठी लिखकर साइन करवाने को दिया, जिसमें लिखा था कि बाहर धरना पर बैठे ट्रेड यूनियन के गुंडे बदमाश हैं, और हमसे वसूली करते हैं.
मैनेजमेंट के सामने गलती से अपने टूट कि खबर दे दी
अगर कोई पुरुष या महिला वर्कर पैसे नही देते तो उनको देखकर ये गाली-गलौज, टिप्पणी आदि करते हैं. आश्चर्ज की बात ये है कि 20-25 वर्करों ने इसपर भी साइन किया और अपने नौकरी बचाने के स्वार्थ में ये भूल गए कि बाहर बैठे वर्कर (5पुरुष+2महिला+1बच्ची) उनके साथी हैं, और उनके अधिकार के लिए ही लड़ रहे हैं. भले ही उस समय वर्करों ने गलत-सलत पेपर पर साइन करके कुछ समय के लिए अपनी नौकरी बचा ली, मगर मैनेजमेंट के सामने गलती से अपने टूट कि खबर दे दी. किसी ने सच ही कहा है कि
“अपनी कमजोरियो का जिक्र कभी न करना,
इस जमाने में लोग कटी पतंग को जम कर लुटा करते है”.
उनके ये लिखने से मैनेजमेंट को साफ़ हो गया कि लोगो में यूनिटी नहीं है और लोगो को आसानी से तोडा जा सकता है. आगे मैनेजमेंट ने अपनी गतिविधियों और तेज कर दी. प्रबन्धन पहले वर्करों के काम में गलती पकड़ते फिर नौकरी से निकालने का नाटक फिर ये बोलकर नौकरी बख्श देते कि हमारा काम करो और बहुत से चापलूस बनाकर लोगो को तोड़ने के काम में लगा दिया गया.
ये लोग इतने बड़े स्वार्थी थे कि लेबर इंस्पेक्टर जब इंस्पेक्केशन लिए आया तो उन्होंने उसको बोला कि हमे कोई भी इन्क्रीमेंट नहीं चाहिए और यहाँ हम इस वेतन में अगले10 साल तक काम कर सकते है. इसमें वैसे उन वर्कर लोगो का भी कम दोष नहीं है जो हमेशा अपनी नौकरी जाने के डर के कारण आगे नहीं आये और ये सब चुपचाप होता देखते रहें. जिसका नतीजा ये निकला कि मैनेजमेंट ने वर्करों को गुमराह करके और डरा कर रखा और वर्करों का भी एक दूसरे साथी पर भरोषा टूटता गया कि न जाने कौन मैनेजमेंट से मिला हुआ है.
वर्कर अगर दुबारा से यूनाइट हो गये तो
इस तरह वर्करों का एक-दूसरे पर अविश्वास के कारण यूनिटी टूटता गया. जिसका फायदा मैनेजमेंट ने उठाते हुए 31 दिसम्बर 2015 को ठेकेदार के द्वारा पुरे कस्टमऱ केयर डिपार्टमेंट के 92 वर्करों को 1 फ़रवरी 2016 से सेवा समाप्ति का नोटिस दे दिया. वैसे भी यह गैर कानूनी है, क्योकि मामला पहले से ही लेबर कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट में विचाराधीन है. अगर वर्कर अगर दुबारा से यूनाइट हो गये तो मैनेजमेंट को फिर से मुंह की खानी पड़ सकती है. वर्करों के पास एक सुनहरा मौका है.
वर्करों ने फैसला लिया है कि 15 जनवरी 2016 से आईटी सेंटर के बाहर धरना पर बैठेंगे और सभी से अपील है कि साथ आकर अपनी एकता प्रदर्शित करें, तो निःसन्देह सफलता आपके कदम चूमेगी. कुछ लोग अभी भी मैनेजमेंट से आश लगाये बैठे हैं, चुप बैठने से वैसे भी अब सबकुछ ख़त्म होने वाला है बात मान लो तो ज्यादा अच्छा है.
कुछ लोगों अभी भी सोच रहें कि धरना करने से क्या होगा और यदि धरना किये और तब भी नौकरी चली गई तो मेहनत बेकार चली जाएगी. तो उनके लिए बता दूँ कि कैंसर एक लाईलाज बिमारी है और अगर किसी के परिवार के सदस्य को हो जाये तो यह कहकर उसको मरने के लिए नही छोड़ देते कि आज न कल मर ही जायेगा, तो ईलाज में पैसे बेकार में क्यों खर्च करें, बल्कि अंत तक उसको बड़े दे बड़े डॉक्टर और हॉस्पिटल ले जाकर उसकी जान बचाने का प्रयास करते हैं.
कई लोगों ने तो कैंसर जैसे बिमारी को भी हाल ही में हराया भी है. जिसमें भारत क्रिकेट के खिलाड़ी युवराज सिंह इसके जीते जागते उदाहरण हैं. आपलोगों से भी उम्मीद ही नही बल्कि आशा है कि मेरा यह लेख आपलोगों की आँखे खोलेगा और बहादुरी के साथ लड़ने को प्रेरित करेगा. आज आपके एक एक गतिविधि पर पूरा देश नजर गराये हुए हैं, कल जीत होगी या हार यह आपकी कोशिस पर निर्भर करता है, “मान लो तो हार होगी और ठान लो तो जीत”. साथियों उठो, और दिखा दो शोषणकारी ताकतों को, क्योकि इस शोसन के खिलाफ आपको ही इंकलाब लाना है.
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