भारत सरकार के रेल मंत्रालय ने खानपान और ई-टिकटिंग के लिए सन् 2002 में इंडियन रेलवे कैटरिंग एण्ड टुरिज़म कॉरपोरशन लिमिटेड (IRCTC) की स्थापना की। जिसमें की वर्तमान में लगभग 4000 से भी अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। आईआरसीटीसी ने खुद से इंटरव्यू लेकर और बाद में ठेकेदार के द्वारा अप्पोइन्मेंट लेटर दिलवा दिया और उसको नाम दिया “IRCTC आउटसोर्स वर्कर“।
IRCTC आउटसोर्स वर्कर के नाम पर शोषण की एक कहानी
आउटसोर्स वर्कर की संख्या लगभग पचास प्रतिशत से भी अधिक है। हर साल दो साल पर ठेकेदार बदल दिये जाते हैं और कर्मचारी लगातार पिछले 3 से 13 वर्षो से लगातार बिना किसी ब्रेक के काम कर रहे हैं। यहाँ तक की पूरी एडमिस्ट्रेटिव कंट्रोल आईआरसीटीसी की है और ठेकेदार को भी केवल पेपर पर दिखा रखा हैं। ऐसे तो देखे तो आईआरसीटीसी 8वीं क्लास पास टीएडीके (बंगलो प्यून) को 6 महीना डेली वेजर्स के रूप में काम करने के बाद डब्लू 1 की सैलरी देती है।
जो कि लगभग 20 हजार के आसपास है. इसके बाद 3 साल पूरा होते ही रेगुलर कर देती हैं। मगर दूसरी तरफ स्नातक और व्यवसायिक डिग्री जैसे बीसीए, एमसीए, एमबीए इत्यादि वाले आउटसोर्स कहे जाने वाले कर्मचारी चाहे वो 1 साल पुराना हो या 13 साल सैलरी सबकी मिनिमम वेजेज ही मिलेगी। सभी कर्मचारी दुःखी जरूर थे, मगर उनको यह कहकर चुप करा दिया जाता था कि तुम थर्ड पार्टी हो।
समान काम का समान वेतन की मांग की
इसी बीच एक नया कर्मचारी सुरजीत श्यामल ने इस कम्पनी के आईटी सेंटर में Join किया। मगर इनकी गुलामी ज्यादा दिन उसको रास नही आयी। इसी बीच लेबर मिनिस्ट्री ने “समान काम का समान वेतन” का सर्कुलर जारी किया। उस कर्मचारी ने अपने साथी कर्मचारियों को यूनाइट किया। उपरोक्त सर्कुलर को लागू करवाने के लिए अपने 125 कर्मचारियों का हस्ताक्षरयुक्त प्रार्थना पत्र आईआरसीटीसी के अध्यक्ष को भेजा।
कर्मचारियों का नेतृत्व करने वाले उस कर्मचारी को पत्र भेजने का खामियाजा भुगतना पड़ा। उसकी नौकरी “सेवा खराब” कहकर बर्खास्त कर दी गई। जबकि उक्त कर्मचारी को बेहतर सेवा के लिए अध्यक्ष,आईआरसीटीसी ने स्वंग उसी वर्ष का बेस्ट एम्प्लोयी अवार्ड प्रदान किया था।
इसके बाद उस कर्मचारी ने हार न मानी और पुरे देश के ठेका वर्करों के लिए “समान काम समान वेतन” लागू करवाने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर किया। इसके बाद भी उसने दुबारा से वर्करों को संगठित करना शुरू किया और आईआरसीटीसी के उपेक्षित व् हकों से वंचित वर्करों को उनका हक दिलाने के लिए संघर्ष की शुरुआत की।
उस वर्कर ने कानूनी लड़ाई के साथ ही साथ कर्मचारियों को धीरे-धीरे वर्करों के अधिकार के साथ ही साथ लेबर कानून की जानकारी देना शुरू किया। वर्करों से जुड़ने के लिए शोसल मिडिया का सहारा लिया। दिन-रात लगाकर खुद भी वर्कर हकों की जानकारी ली और साथ ही उसको पल-पल वर्करों तक पहुंचाने में कोई कसर न छोड़ी।
वर्करों ने जमकर इंकलाब के नारे लगाये
वर्कर भी लगातार 3 से 13 साल से शोसन सहते-सहते परेशान हो चुके थे। वर्करों की अंदर दबी चिंगारी सुलग कर शोला बनकर दिसम्बर 2014 के महीने में फुट पड़ी। मौका था जब मैनेजमेंट ने पीएफ का एम्प्लोयी और एम्प्लॉयर हिस्सा वर्कर के वेतन से काट लिया। जिसके खिलाफ वर्करों ने जमकर इंकलाब के नारे लगाये। आखिर सीटू के वरिष्ट नेताओं ने मामले को सज्ञान लेकर वर्करों को शांत करवाया। जबकि आईआरसीटीसी प्रबन्धन ने वर्करों को भड़काने में कोई कसर नही छोड़ा था।
आखिर बाद में प्रबन्धकों ने अपनी गलती मानते हुए वर्करों के गलत कटे पैसे वापस किये। इस तरह वर्करों ने एकता और संघर्ष के बदौलत पहली बार सफलता का स्वाद चखा। वर्करों की ख़ुशी ज्यादा दिन तक टिक नही पायी, क्योकि उनकी एकता को तोड़ने के लिए धूर्त प्रबंधन ने भेदिया लगा दिया। उस भेदिया ने दिन रात वर्करों की एकता तोड़ने और यूनियन गतिविधियों की जानकारी प्रबन्धन तक पहुंचाने में लगा दी। बदले में वह प्रबन्धन का मुफ़्त का वफादार बन गया।
उसके मुखबिरी की सहायता से प्रबन्धन ने अप्रैल में कस्टमर केयर डिपार्टमेंट को आउटसोर्स करने का टेंडर निकाला। जिसको रोकने के लिए यूनियन के नेताओं को काफी मसक्कत करनी पड़ी। मगर फिर भी दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका के दम पर टेंडर रुक गया।
महिलाओं के बाथरूम पर रोक लगा दिया
इसके बाद तो प्रबंधन ने वर्करों पर जुल्म ढाना शुरू कर दिया। पीने के पानी से लेकर सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे महिलाओं के बाथरूम पर रोक लगा दिया गया। इसके खिलाफ वर्करों ने कमर कसते हुए 15 जून 2015 को आईटी सेंटर पर गेट मीटिंग करते हुए एक 18 सूत्री माँग पत्र अध्यक्ष, आईआरसीटीसी को सौंपी। इसके बाद माँग पूरा करने के वजाये मगरूर प्रबन्धन ने 6 वर्कर नेताओं को नौकरी ने निकाल दिया। मगर निकले गये वर्करगण ऑफिस के बाहर ही धरना पर बैठ गये।
जिससे घबराकर प्रबन्धन ने चापलूस वर्करों की सहायता से ऑफिस के अंदर के वर्करों के डर का फायदा उठाया। वर्करों से यह लिखकर साइन करवा किया कि बाहर धरना पर बैठे लोग गुंडे हैं और अंदर के वर्करों से उनका कोई लेना देना नही हैं। अपनी नौकरी बचाने के लिए वर्करों ने खुद ही यूनिटी तोड़कर उस लेटर पर साइन करके परबंधकों की मुराद पूरी कर दी। फिर क्या था आनन फानन में प्रबन्धन ने 92 वर्करों को नौकरी से निकाल दिया।
जबकि सभी वर्करो पर्मानेंसी का केस लेबर कोर्ट में लगा हैं। 92 वर्करों में से 40 वर्कर ने स्टे के लिए लेबर कोर्ट में अपील विचाराधीन है, जबकि प्रबन्धन ने 1 फ़रवरी 2016 से ऑफिस में अंदर जाने से रोक दिया है। मगर बहादुर वर्कर कहां मानने वाले हैं, पिछले एक सप्ताह से गेट के बाहर बैठकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहें हैं।
यह तो तय हैं कि जो 52 वर्कर जंग का मैदान छोड़कर घर चले गए उनको कुछ नही मिलेगा। मगर 40 बहादुर वर्कर अपने बाकी साथियों से अपील कर रहे हैं कि वो उनके साथ 12 से शुरु होने वाले धरना में घर वापसी करें और अपने हक की लड़ाई में शामिल हो। अगर यूनिटी और प्लानिंग के साथ लड़ी जाये तो बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती हैं।
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