Blog -पिछले लगभग 13 वर्षों से आईआरसीटीसी वर्कर (ई-टिकटिंग के लिए काम करने वाले ठेका कर्मचारी) यह सोचकर कम सैलरी में भी चुपचाप काम किये जा रहे थे कि आज न कल सरकार का ध्यान पड़ेगा और उन्हें पक्का किया जायेगा। मगर जब उन्हें 2014 में जब यह पता चला कि आईआरसीटीसी ने तो सरकारी रिकॉर्ड में उनका नाम दिखा ही नही रखा है। जो कि उन भोले भाले वर्करों के लिए सदमें से कम नही था। मगर इस बेरोजगारी और मंहगाई के दौर में विरोध करने से ज्यादा अपनी नौकरी बचाना ज्यादा जरूरी समझा।
आईआरसीटीसी वर्कर के शोषण के खिलाफ
कर्मचारियों ने मैनेजमेंट की हर गलती और अपने लिए आवाज उठाने वालों के ऊपर दमन को भी अनदेखा कर दिया। जिससे की मैनेजमेंट ने भांप लिया और कर्मचारियों को तोड़ने का हर सम्भव कोशिस किया। जिसमे कुछ हद तक सफल भी हुए। मैनेजमेंट ने कूटनीति अपनाते हुए अपनी पूरी ताकत लगाकर पहले 1 फिर 6 फिर 92 कर्मचारियों को नौकरी से बर्खास्त किया।
मगर बाकी कर्मचारी अपने साथियों का साथ देने के वजाय मूक दर्शक बने रहें। मगर फिर भी इनमें से कुछ लोगों ने हिम्मत न हारी और मैनेजमेंट के इस कारवाई का जबाब देने के लिए गेट के बाहर धरना पर बैठ गये। उनको धरना से उठाने के लिए मैनेजमेंट ने हर सम्भव उपाये और तिकड़म किये। मगर कर्मचारी टश से मश न हुए।
हाँ कुछ कर्मचारी इस लड़ाई के मैदान से पहले ही भाग खड़े हुए और इस लड़ाई के परिणाम का इंतजार करने लगे। मगर कुछ कर्मचारियों ने अदभूत साहस का परिचय देते हुए लगातार 76 दिन तक डटे रहे। कर्मचारियों को नौकरी से निकालने का कोई लिखित आर्डर दिया नही गया था। इसके लिए कर्मचारियों के यूनियन ने अंतरिम राहत के लिए लेबर कोर्ट गये।
चूँकि कर्मचारियों का पर्मानेंसी का मैटर पेंडिंग था और इसके दौरान नौकरी से निकालना आईडी एक्ट के धारा 33ए का उलंघन है। मगर लेबर कोर्ट में अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया। अभी धारा 33ए के तहत का उल्लंघन साबित हो जाता है तो इसके तहत फूल बैक वेजेज की अपील के साथ वापस नौकरी पर रखने की मांग की गई है।
कल इस लड़ाई का कुछ भी परिणाम आये मगर जिस तरह का विरोध किया और आगे भी करने का ईरादा काबिले तारीफ है। फ़िलहाल आंदोलनकारी कर्मचारियों ने 11 अप्रैल 2016 से धरना को समाप्त किया है। मगर इस संकल्प के साथ की दुबारा से पुरे जोश खरोश के साथ शोसन के खिलाफ यह लड़ाई जीतने तक जारी रहेगा।
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