आईआरसीटीसी में “समान काम का Equal Pay” लागू
श्री श्यामल ने इसके बाद पुरे देश के कॉन्ट्रैक्ट वर्कर के लिए आवाज उठाते हुए CL(R&A) Act 1970 के तहत समान काम का समान वेतन को लागू करवाने के लिए माननीय दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका संख्या W.P.(C.) 2175/2014 दायर किया.
सुरजीत श्यामल के वकील श्री राकेश कुमार सिंह ने उनका पक्ष रखते हुए कहा कि इंडियन स्टाफिंग फेडरेशन के रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में सरकारी विभागों के 1 करोड़ 25 लाख स्थाई पोस्ट पर 69 लाख ठेके पर काम करते हैं, और अगर प्राईवेट विभागों को जोड़कर देखें तो आंकड़ा चैकाने वाला हो सकता है. समान योग्यता व अनुभाव व समान काम करने के वावजूद कम पैसे देकर ठेका वर्कर के नाम पर देश के पढे लिखे युवा वर्ग का शोषण किया जा रहा है.
जबकि ठेका कानून 1970 में ही समान काम का समान वेतन का प्रावधान है तो पिछले 44 वर्षों से इसको लागू क्यों नही किया गया? जिसकी सुनवाई करते हुए माननीय कोर्ट ने 4 अप्रैल 2014 को आईआरसीटीसी, उसके ठेकेदार, भारत सरकार व् अन्य प्रतिवादियों से जबाब देने का नोटिस जारी कर दिया.
आईआरसीटीसी के कर्मचारियों ने यूनियन के द्वारा दिल्ली से कलकत्ता और मुम्बई तक निरन्तर आंदोलन चलाकर प्रबंधन के नाक में दम कर दिया. सड़क से संसद् और शोसल मीडिया में अभियान छेड़ दिया. इसमें कुछ लोगों को अपनी नौकरी भी कुर्बान करनी पड़ी. मगर इस अचानक के बदलाव से मैनेजमेंट घबरा गई और तो और आखिर कोर्ट में जो भी पेपर और तथ्य पेश किये उससे मैनेजमेंट की हार तय थी.
दूसरी तरफ वर्कर संगठन के साथ साहस दिखाते हुए मैनेजमेंट का विरोध करते रहें. यहाँ तक की मैनेजमेंट ने कुछ वर्कर्स को प्रताड़ित भी किया और तो और आईटी सेंटर दिल्ली के कस्टमर केयर सेंटर की महिला कर्मियों का सुबह 10 से 12 बाथरूम जाने पर रोक तक लगा दिया. इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले वर्कर्स को अपनी नौकरी तक गंवानी पड़ी. फिर भी वर्कर्स अपने सीटू संबंद्ध यूनियन का झन्डा लेकर आईटी सेंटर के गेट पर ऐतिहासिक 70 दिनों तक धरना पर डटे रहें. जिससे की मैनेजमेंट के हौसले पस्त हो गये.
इस आंदोलन को आड़े हाथों लेकर कामरेड तपन सेन, राष्ट्रीय महासचिव व् सांसद सीटू ने आईआरसीटीसी के वर्कर्स के ऊपर हो रहे शोसन को पार्लियामेंट स्टेंडिंग कमेटी आफ लेबर के आगे उठाया. जिसमे उन्होंने बताया कि किस तरह से आईआरसीटीसी पिछले 2005 से 2014 तक कॉन्ट्रैक्ट लेबर( रेगुलुशन एंड ऑब्लिशन) एक्ट 1970 के तहत बिना रजिस्ट्रेशन व् इसके ठेकेदार बिना लाइसेंस के लगातार वर्कर्स से स्थाई प्रकृति के लिए काम ले रहे हैं.
कानूनी हक की मांग करने वाले वर्करों को ईनाम देने के बजाय नौकरी से निकाल दिया और उनके साथियों को प्रताड़ित किया जाता है. स्टैंडिंग कमेटी ने मामले के गंभीरता को आड़े हाथों लिया और आईआरसीटीसी के एक-एक यूनिट का इंस्पेक्शन करवा लिया. इस तरह चैतरफा दबाब के कारण आईआरसीटीसी प्रबंधकों ने वर्करों की मांग के आगे झुकना पड़ा.
जिसके तहत पहले तो चतुर्थवर्गीय कर्मी (सफाई कर्मियों व् सिक्यूरिटी गार्ड्स) को मिनिमम वेजेज (10 हजार प्रति महीना जो कि पहले मात्र 4900 मिलता था) देना पड़ा और उसके साथ उनको साप्ताहिक अवकाश भी मिलना शुरू हुआ. इसके बाद गलत तरीके से काटे गये अन्य भत्ता के लगभग 1300 से 1500 प्रति महीने की वृद्धि (सैलरी के अनुसार) पिछले 2 साल के एरियर के साथ देना पड़ा.
इसके अलावा अभी तक अधिकतम 10% वार्षिक वेतन वृद्धि का सर्कुलर था जिसको अप्रैल 2014 से मैनेजमेंट ने मौखिक रूप से यह कहते हुए बंद करवा दिया था कि सुरजीत श्यामल ने केस कर दिया है. इसीलिए अब यह नही मिलेगा. उसको बोलो कि समान काम के समान वेतन का केस वापस ले फिर यह शुरु किया जायेगा. मगर चैतरफा दबाब के कारण दुबारा से वार्षिक वेतन वृद्धि एरियर सहीत देना पड़ा, मगर मैनेजमेंट ने चालाकी दिखाते हुए वार्षिक वेतन वृद्धि का सर्कुलर रिवाईज करते हुए 10 प्रतिशत की जगह 5 प्रतिशत कर दिया. जिसका विरोध अभी भी जारी है.
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