Blog: आज एक ऐसी कहानी “भीड़ की मानसिकता से आगे बढ़कर संघर्ष से हालात बदले” पढ़े और खुद ही आंकलन करे कि भीड़चाल चले या अपने संघर्ष के बदौलत अपने राह खुद तैयार करें. इसको समझने के लिए बंदर की एक कहानी आपके लिए लेकर आये हैं. इससे आपको कुछ सीखने को मिलेगा.
भीड़ की मानसिकता बंदर की कहानी
भीड़ की मानसिकता – एक बार कुछ बंदरों को एक बड़े से पिंजरे में डाला गया और वहां पर एक सीढी लगाई गई. सीढी के ऊपरी भाग पर कुछ केले लटका दिए गए. उन केलों को खाने के लिए एक बन्दर सीढी के पास पहुंचा. जैसे ही वह बन्दर सीढी पर चढ़ने लगा, उस पर बहुत सारा ठंडा पानी गिरा दिया गया और उसके साथ-साथ बाकी बंदरों पर भी पानी गिरा दिया गया. पानी डालने पर वह बन्दर भाग कर एक कोने में चला गया.
थोड़ी देर बाद एक दूसरा बन्दर सीढी के पास पहुंचा. वह जैसे ही सीढी के ऊपर चढ़ने लगा, फिर से बन्दर पर ठंडा पानी गिरा दिया गया और इसकी सजा बाकि बंदरों को भी मिली और साथ-साथ दूसरे बंदरो पर भी ठंडा पानी गिरा दिया गया. ठन्डे पानी के कारण सारे बन्दर भाग कर एक कोने में चले गए.
यह प्रक्रिया चलती रही और जैसे ही कोई बन्दर सीढी पर केले खाने के लिए चढ़ता, उस पर और साथ-साथ बाकि बंदरों को इसकी सजा मिलती और उन पर ठंडा पानी डाल दिया जाता. बहुत बार ठन्डे पानी की सजा मिलने पर बन्दर समझ गए कि अगर कोई भी उस सीढी पर चढ़ने की कोशिश करेगा तो इसकी सजा सभी को मिलेगी और उन सभी पर ठंडा पानी डाल दिया जाएगा.
अब जैसे ही कोई बन्दर सीढी के पास जाने की कोशिश करता तो बाकी सारे बन्दर उसकी पिटाई कर देते और उसे सीढी के पास जाने से रोक देते. थोड़ी देर बाद उस बड़े से पिंजरे में से एक बन्दर को निकाल दिया गया और उसकी जगह एक नए बन्दर को डाला गया.
नए बन्दर की नजर केलों पर पड़ी. नया बन्दर वहां की परिस्थिति के बारे में नहीं जानता था इसलिए वह केले खाने के लिए सीढी की तरफ भागा. जैसे ही वह बन्दर उस सीढी की तरफ भागा, बाकि सारे बंदरों ने उसकी पिटाई कर दी, नया बन्दर यह समझ नहीं पा रहा था कि उसकी पिटाई क्यों हुई, लेकिन जोरदार पिटाई से डरकर उसने केले खाने का विचार छोड़ दिया.
अब फिर एक पुराने बन्दर को उस पिंजरे से निकाला गया और उसकी जगह एक नए बन्दर को पिंजरे में डाला गया. नया बन्दर बेचारा वहां की परिस्थिति को नहीं जनता था इसलिए वह केले खाने के लिए सीढी की तरफ जाने लगा और यह देखकर बाकी सारे बंदरों ने उसकी पिटाई कर दी. पिटाई करने वालों में पिछली बार आया नया बन्दर भी शामिल था जबकि उसे यह भी नहीं पता था कि यह पिटाई क्यों हो रही है.
अब पिंजरे में सारे नए बन्दर थे जिनके ऊपर एक बार भी ठंडा पानी नहीं डाला गया था. उनमें से किसी को यह नहीं पता था कि केले खाने के लिए सीढी के पास जाने वाले की पिटाई क्यों होती है लेकिन उन सबकी एक-एक बार पिटाई हो चुकी थी.
अब एक और बन्दर को पिंजरे में डाला गया और आश्चर्य कि फिर से वही हुआ. सारे बंदरों ने उस नए बन्दर को सीढी के पास जाने से रोक दिया और उसकी पिटाई कर दी जबकि पिटाई करने वालों में से किसी को भी यह नहीं पता था कि वह पिटाई क्यों कर रहे है.
हमारे जीवन भी ऐसा ही कुछ होता है. अन्धविश्वास और कुप्रथाओं का चलन भी कुछ इसी तरह होता है क्योंकि उन हम लोग प्रथाओं और रीति-रिवाजों के पीछे का कारण जाने बिना ही उनका पालन करते रहते है और नए कदम उठाने की हिम्मत कोई नहीं करता, क्योंकि ऐसा करने पर समाज के विरोध करने का डर बना रहता है.
कोई भी कुछ नया करने की सोचता है तो उसे कहीं न कहीं लोगों के विरोध का सामना करना ही पड़ता है. भारत की जनसँख्या 125 करोड़ से ऊपर है और पुरे देश में बेरोजगारों और अगर नौकरी भी है तो ठेके की मतलब फुलटाइम गुलामी. इसके खिलाफ लोगों में पहले से भय बना हुआ है कि कम्पनी या सरकार से जीत नही सकते हैं. इसीलिए यदि कोई कोशिश भी करना चाहता यो बाकी लोग उसके काम में अड़ंगा डालते है. कभी कभी तो बाकी बन्दरों की तरह पिटाई करने से भी नही चूकते हैं. उन्हें असफलता का डर लगा रहता है.
ये बड़ी अजीब बात है कि अभी हाल ही में उतरप्रदेश में चपरासी के सिर्फ 368 पदों के लिए 23 लाख आवेदन आए थे और उसमें से भी 1.5 लाख ग्रेजुएट्स, 25000 पोस्ट ग्रेजुएट्स थे और 250 आवेदक ऐसे थे. जिन्होंने पीएचडी की हुई थी.
संभावनाएं बहुत है लेकिन हम उन्हें देख नहीं पाते क्योंकि हम भीड़चाल में चलते है. ये हमारी मानसिकता ही है जो हमें पीछे धकेल रही है. हम चाहें तो बन्दर की तरह लोगों की देखा देखी कर सकते या फिर खुद की स्वतन्त्र सोच के बल पर सफलता की सीढी चढ़ सकते है.
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