सफल आंदोलन के पीछे Successful Leadership का हाथ कितना जरुरी?

Blog: सफल नेतृत्व (Successful Leadership) के बारे में कुछ कारणवश लिखने की जरूरत महसूस हुई. काफी पढ़ने पर इस नतीजे पर पहुंचा कि काफी लोग अपने जीवन में किसी न किसी क्षेत्र नेतृत्व करते हैं और सफल भी होते हैं. मगर इससे कहीं ज्यादा लोग किसी पद को पाते ही अपने कार्यकर्ताओं को भूल जाते हैं, उनमे अभिमान जाग जाता है. वो दूसरी की बाते गलत और खुद की बात को सही साबित करने में धीरे-धीरे अपने सबको पीछे छोड़ जाते हैं.

सफल आंदोलन के पीछे Successful Leadership

हां हम कुछ ऐसे भी नेता को जानते हैं और मिलने का मौका मिला जो लाखो और करोड़ों लोगों का नेतृत्व करते हैं, बड़े से बड़े पद पर बैठे हैं, मगर गरूर रत्ती भर नही है. एक छोटे-से छोटे कार्यकर्ताओं का भी उतना ही ख्याल रखते जितने की किसी एमपी या एम्एलए का और सच इनलोगों को देखकर स्वतः ही सम्मान में सिर झुक जाता है.

किसी ने सच ही कहा है कि सम्मान मांगने की चीज नही बल्कि दिल से किसी के व्यवहार से स्वतः उत्पन्न होता है. हम जैसा व्यवहार जनता या कार्यकर्ताओं से चाहते हैं, खुद भी उनके साथ हमे ठीक वैसा ही व्यवहार करना पड़ेगा.

सफल व्यक्ति के पीछे एक स्त्री का हाथ

जिस तरह एक सफल व्यक्ति के पीछे एक स्त्री का हाथ कहा जाता है ठीक उसी प्रकार एक सफल आंदोलन के पीछे भी सफल और कुशल नेतृत्व मतलब एक लीडर का हाथ होता है. सफल लीडर को अपने समर्थकों की गलतियों और कमियों की पूरी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार रहना चाहिए.

अगर वह इस जिम्मेदारी को दूसरे पर थोप देता है तो वह लीडर नहीं बना रहेगा. अगर उसका कोई समर्थक कोई गलती करता है और अपने आपको अयोग्य सिद्ध करता है तो लीडर को यह मानना चाहिए कि गलती उसी की है और वही असफल हुआ है.

जो आदमी जो खुद को नियंत्रित नहीं कर सकता, दूसरों को कभी नियंत्रित नहीं कर सकता. अनुयाइयों के सामने आत्म-नियंत्रण एक शक्तिशाली मिसाल बन जाता है जिसे वह अनुयायी सीख लेता है जो अधिक बुद्धिमान होता है.

वही व्यक्ति सफल होता जिसके अंदर नेतृत्व गुण हो

किसी भी कार्य में वही व्यक्ति सफल होता है जिसके अंदर नेतृत्व गुण हो. यह 60% गुण मानव में जन्मजात होता है और 40% सही दिशा निर्देश और प्रशिक्षण से प्राप्त किया जा सकता है. उदाहरण के तौर पे एक शिक्षक के अंदर शिक्षण के प्रति लगाव और दूसरों को अपने विचारों से प्रेरित करने का गुण उसके अंतर्निहित होता है. बी.एड इत्यादि कोर्स तो उसकी क्षमताओं कि पोलिश करता है, और ये सब प्रशिक्षण उसके ध्येय को प्राप्त करने का एक साधन मात्र हैं.

एक अच्छा नेता वही होता है जो मौजूद संसाधनों और मानव क्षमता का पूर्णतया दोहन कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करे यहाँ भी एक उदहारण देना सही होगा कि एक कठोर श्रम करने वाला व्यक्ति है. जो अपने सभी काम वेहतर करने कि लालसा में सारे काम खुद करता है और दूसरों से कम से कम काम लेता है. नतीजन वह जल्दी थक जाता है और उसके संसाधनों का भी पूर्णतया दोहन नहीं हो पाता.

जबकि इसके विपरीत एक चतुर नेता है जो अपने साथ काम करने वाले कार्यकर्ताओ से उनकी क्षमता व रूचि के अनुसार काम लेता है. आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करता है तथा अपने ऊपर काम का बोझ कम डालकर अपने मस्तिष्क को नयी नयी योजनाएं और रणनीति तैयार करने हेतु प्रयुक्त करता है.

अपने नेतृत्व गुण के कारण ही अपने देश को

हमारे भारतीय इतिहास में भी सुभाष चन्द्र बोस ,महात्मा गाँधी ,अफ्रीका में नेल्सन मंडेला इत्यादि भी अपने नेतृत्व गुण के कारण ही अपने देश को आजादी दिला सके. भले ही कुछ लोगों को यह बात बुरी लगे मगर नेतृत्व क्षमता महिलाओं में पुरुषों कि अपेक्षा स्वाभिक तौर पे ज्यादा पायी जाती है. जैसे एक गृहणी अपने घर के कार्य करने वाली महरी से घर का कार्य स्वच्छता पूर्वक कराती है. अपनी बेटी को घर का काम सिखाने के उद्देश्य से अपने साथ रसोई के काम में भी लगाती है. पति को बाजार से फल व सब्जी से लाने व छोटे बेटे को फ्रिज कि बोतलें भरने का निर्देश देती है. रविवार के दिन सभी को अपने साथ घर कि साफ़ सफाई के लिए मानसिक तौर पे तैयार करती है. इस तरह वह घर के हर सदस्य से उसकी क्षमताओं के हिसाव से काम लेती है और भविष्य में उन्हें अपने आप जिम्मेदारियां सम्भालने लायक बनाती है. ये उसकी नेतृत्व क्षमता का परिचायक है.

ठीक उसी तरह एक नेता के अंदर भी ये गुण विद्यमान होने चाहिए जिसमे प्रथम उसे एक अच्छा वक्ता होना चाहिए जो कम शब्दों में बिना झल्लाये अपनी बात दूसरों के सामने रख सके. दूसरा-उसे अपने अंतर्गत काम करनेवाले कार्यकर्ताओं से उनकी स्वाभाव और क्षमता के अनुसार काम निकलवाना आना चाहिए. जैसे एक हलवाई को सोनपापड़ी बनाने में दक्षता प्राप्त है. उसे समोसा बनाने को कहा जाए तो निश्चित तौर पे वो समोसा बेस्वाद ही बनाएगा क्यूंकि उसकी दक्षता तो सोनपापड़ी में है. तीसरा-नेता का तीसरा गुण सामाजिक है.

अगर नेता स्वंय में लीं और संकोची होगा तो अन्य लोगों तक अपनी बात या उत्पादन नहीं रख पायेगा लिहाजा ना तो लोग उसे ना ही उसके उत्पाद और आने वाली योजनाओं को जान पायेंगे इस तरह उसका प्लान फेल हो जाएगा. चतुर्थ-नेता को नयी नयी तकनीकों से परिचित होना चाहिए जिनके द्वारा वह अपने उत्पाद का प्रचार कर सके नयी मशीनों व तकनीकों को लगा उत्पादन को कम समय ब कम पैसों में पूरा कर सके. पांचवा-पांचवा और अंतिम गुण नेता में जो होना अति आवश्यक है वह है दूसरों की बातों को ध्यान से सुने और सही बात को बिना अभिमान और जलन के स्वीकारे और सराहे. इससे कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ता है. इस तरह अगर एक नेता इन पंचों गुणों को अपने अंदर आत्मसात करले तो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता.

यह लेख मैंने काफी दूसरे लेखकों के लेखों को पढ़ने के बाद तैयार किया गया है. इस विषय पर पढ़कर काफी कुछ सिखने को मिला. आप भी अपने अंदर झांके और देखे कि आपमें कहाँ कमी है और उसको सुधार करें. शायद यह लेख सभी नेताओं के लिए उपयुक्त मार्गदर्शक साबित होगा, जिन्होंने किसी आंदोलन या अपने साथियों को हक दिलाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हों.

Share this

3 thoughts on “सफल आंदोलन के पीछे Successful Leadership का हाथ कितना जरुरी?”

  1. Very well written n those r in leadership need to introspect from inside because leader is not only fighting for him instead he has to command d people n give them d right way..

    Reply
  2. Very well written n those r in leadership need to introspect from inside because leader is not only fighting for him instead he has to command d people n give them d right way..

    Reply

Leave a Comment