नई दिल्ली: आपमें से ज्यादातर लोगो को तो पता भी नही होगा कि पिछले महीने से “मेट्रो स्टाफ काउंसिल का हड़ताल” विरोध प्रदर्शन भी चल रहा है. कर्मचारी अपनी सेवाओ में कमी नही कर रहे. वो ड्यूटी के बाद हड़ताल पर बैठते है. मेट्रो के सभी कर्मचारी दिल से मेहनत करके सभी यात्रियों को सुरक्षित यात्रा का अनुभव कराते है. अगर कोई खराबी आती है तो उसे जल्द से जल्द ठीक करते है ताकि यात्रियों को परेशानी न हो. हाथ पर काली पट्टी बांध कर दिल्ली मेट्रो मैनेजमेंट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे दिल्ली मेट्रो के कर्मचारियों ने अपनी मांगों को लेकर अब भूख हड़ताल पर जाने की बात कही है.
नाराज मेट्रो स्टाफ काउंसिल का हड़ताल
अपनी ड्यूटी के दौरान मिलनेवाले आराम करने के समय के दौरान कर्मचारी रेस्टरूम की जगह प्लेटफॉर्म पर बैठकर प्रोटेस्ट कर रहे हैं. भीषण गर्मी की वजह से कुछ महिला कर्मचारियों की इस दौरान तबियत भी खराब हो चुकी है. कर्मचारियों के मुताबिक अगर दो दिन के बाद भी स्थिति यही रही तो विरोध में शामिल सभी कर्मचारी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर चले जाएंगे.
इस आंदोलन का एक और पहलु है जिसको जानकारी जरुरी ..
करीब 11 वर्ष पहले दिल्ली मेट्रो के कुछ साथियों के साहसिक कार्य कलापों से यहाँ ” दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन एम्प्लाइज यूनियन” का गठन किया गया. उसके बाद मजदूरों ने एकजुट होकर उक्त संगठन को जोवाइन किया और दिन दूनी रात चौगुनी ताकत बढ़ती गयी. जिससे घबरा कर मैनेजमेंट इस यूनिटी को तोड़ने के लिए “जॉइंट मैनेजमेंट स्टाफ कौंसिल” का गठन किया ही नहीं बल्कि दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन एम्प्लाइज यूनियन के कुछ पदाधिकारियों को बरगलाकर मैनजमेंट के लिए बनी “जॉइंट मैनेजमेंट स्टाफ कौंसिल” में ज्वाइन करा लिया. मगर फिर भी कुछ कर्मचारियों ने कर्मचारियों के लिए काम करने वाली यूनियन “दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन एम्प्लाइज यूनियन” को जिन्दा रखा.
आज के वक़्त में दिल्ली मेट्रो में 2 बड़े विभाग एक ऑपरेशन और दूसरा मेंटेनेस है जो कि एक दूसरे के पूरक हैं. जिसमे ऑपरेशन विभाग के सभी कमर्चारी प्रबंधन द्वारा और प्रबंधन के लिए बनाई हुई स्टाफ कौंसिल का समर्थन करते हैं.
” दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन एम्प्लाइज यूनियन” ने आरोप लगाया है कि इस आंदोलन में वो स्टाफ “जॉइंट मैनेजमेंट स्टाफ कौंसिल” के साथ आना चाहते है. मगर स्टाफ कौंसिल के लीडर दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन एम्प्लाइज यूनियन के पदाधिकारियों में मुख्यतः तीन बड़े पद अध्यक्ष, महासचिव और कोषाध्यक्ष और विभाग है, ऑपरेशन, मेंटेनेस और प्रोजेक्ट उनके लिए आरक्षित करने कि मांग कर रहे है. आगे कौंसिल के सचिव साहब ने यहाँ ये शर्त रख दी की अगर 11 मई से पहले पहले उनके मांगों की बिन्दुओ को सविंधान में डालकर और पंजीकरण अधिकारी से अनुमोदित करवाकर दें तभी वो उनके साथ आयेंगे.
अब सवाल यह उठता है कि ट्रेड यूनियन कानून में सभी कर्मचारियों कि अपना नेता चुनने का हक़ है और किसी का इस तरह से हक़ छीनना असंवैधानिक होगा.
सुनाने में यह भी आ रहा है पिछले एक महीने से हड़ताल चल रहा है और अभी तक मेट्रो प्रबंधक ने चुप्पी साध रखी है जैसे कि ऐसा लगता है कि स्टाफ कौंसिल का यह हड़ताल मैनेजमेंट के द्वारा तो नहीं करवाई गयी. यह बात जगजाहिर है कि जब भी वर्करों ने सर उठाने कि कोसिस कि है तब मेमो से लेकर कारन बताओ नोटिस देने में मैनेजमेंट पीछे नहीं रही है.
एक वर्कर ने तो यहां तक कहा कि यह हड़ताल मैनेजमेंट अपने मैनेजमेंट स्टाफ कौंसिल को प्रचार करने के लिए और कर्मचारियों में अपनी पैठ बनाने के लिए किया है कि हमारा संगठन हड़ताल भी करता है मांग भी करता है. उनका कहना है कि मांग ऐसी रखी है कि मैनेजमेंट तुरंत पूरी कर दे. उनका यह तिकड़म लोकतांत्रिक तरिके से बने और वर्करों के हक़ के लिए संघर्ष करने वाली यूनियन “दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन एम्प्लाइज यूनियन” को तोड़ना है. जबकि सातंवा वेतन कि विसंगतियों वर्करों के लिए आज से समय में सबसे बड़ा मुद्दा है. अब कर्मचारियों को तय करना ही कि आपके हक़ के लिए मैनेजमेंट के खिलाफ खुद मैनजमेंट का स्टाफ कौंसिल कैसे लड़ेगा?
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