नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार कॉन्ट्रैक्ट वर्कर के तौर पर काम कर रहे लाखों लोगों को झटका देने की तैयारी में हैं. सरकार कानून में बदलाव के जरिये स्थाई और कॉन्ट्रैक्ट बेस पर काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन में अंतर करने जा रही है. मोदी सरकार Contract Labour के समान वेतन के प्रावधान को ख़त्म करेगी. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भी ठेका वर्कर को समान वेतन देने की बात कही थी.
Contract Labour के समान वेतन के प्रावधान
सरकार कांट्रैक्ट लेबर (रेगुलेशन एंड एबोलिशन) सेंट्रल रूल्स, 1971 के सेक्शन 25 को खत्म करने पर विचार कर रही है. इस अधिनियम के सेक्शन 25 में ही समान काम के लिए समान वेतन देने का प्रावधान है. हालाँकि इस पर लेबर मिनिस्ट्री ने 28 जून को सभी स्टेक होल्डर्स की बैठक बुलाई है. इस बैठक में ट्रेड यूनियन के शामिल होने की संभावनाएं हैं.
अगर सूत्रों की माने तो नीति आयोग ने सेक्शन 25 को ख़त्म करने की सिफारिश की है. इसके बाद कॉन्ट्रैक्ट वर्कर को स्थाई वर्कर को बराबर सुवधाएं नहीं देनी पड़ेगी. गौरतलब है कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने देश में काम कर रहे सभी कॉन्ट्रैक्ट वर्कर को प्रॉविडेंट फंड बेनेफिट देने का आदेश दिया था. ईपीएफओ का यह आदेश सरकारी और प्राइवेट तौर पर काम करने वालों के लिए था.
अभी 26 अक्टूबर 2016 को ही सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने, कैजुअल या डेलीवेज वर्कर अगर स्थाई कर्मचारी वाला ही काम कर रहा है तो वेतन भी सामान होना चाहिए.
कांट्रैक्ट लेबर (रेगुलेशन एंड एबोलिशन) सेंट्रल रूल्स, 1971 के सेक्शन 25 (i) के अनुसार-
कांट्रैक्ट लेबर (रेगुलेशन एंड एबोलिशन) सेंट्रल रूल्स, 1971 के सेक्शन 25 (i) के अनुसार “समान काम के लिए समान वेतन” के अनुसार- “अगर ठेकेदार के द्वारा ठेका वर्कर मुख्यनियोक्ता के स्थायी वर्कर के बराबर और समान काम करता है तो उस ठेका वर्कर का वेतन और सभी सेवा सुविधायें मुख्यनियोक्ता के स्थायी वर्कर के बराबर और सामान होगा”.
अपने फैसले में माननीय कोर्ट ने कहा था कि समान का काम के लिए समान वेतन न देना कर्मचारियों के अधिकार और सम्मान का हनन है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) पर काम करने वाले लाखों कर्मचारियों को राहत कि सांस ली थी. जस्टिस जेएस केहर और जस्टिस एसए बोबड़े की पीठ ने अपने फैसले में कहा, “हमारी सुविचारित राय में कृत्रिम प्रतिमानों के आधार पर किसी की मेहनत का फल न देना गलत है. समान काम करने वाले कर्मचारी को कम वेतन नहीं दिया जा सकत.। ऐसी हरकत न केवल अपमानजनक है बल्कि मानवीय गरिमा की बुनियाद पर कुठाराघात है.
ठेका/आउटसोर्स वर्कर के लिए समान काम का समान वेतन की मांग
दिनांक 11 मई 2017 को दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका की सुनवाई हुई. जिसमें याचिकार्ता सुरजीत श्यामल ने देश के विभिन्न सरकारी संस्थानों में रेगुलर वर्कर के समान काम कर रहे ठेका/आउटसोर्स वर्कर के लिए समान काम का समान वेतन की मांग की थी. उन्होंने इस याचिका के माध्यम से 47 वर्ष बने कानून के इस प्रावधान को को लागू करने की मांग की थी. रेलवे की पीएसयू आईआरसीटीसी को इसका उदाहरण देते हुए केस में पार्टी बनाया था. जिसमें बताया था कि पढे-लिखे ठेका/आउटसोर्स वर्कर को रेगूलर वर्कर के बराबर लेकर मात्र एक तिहाई 12-15 हजार रुपया दिया जाता है.
आईआरसीटीसी ने यह भी कहा कि वो सभी वर्कर को न्यूनतम वेतन देते है. जिसपर माननीय कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आज के मंहगाई में न्यूनतम वेतन का 10 से 13 हजार में किसी परिवार का गुजरा कैसे हो सकता है. आज पुरे देश में निजीकरण का दौर में ठेका वर्कर रेगुलर वर्कर के बराबर काम नहीं बल्कि रेगुलर वर्कर का ही काम कर रहे है.
इतने कम सैलरी में वर्करों से काम करवाना गुलामी करवाने जैसा ही है. इसके बाद माननीय कोर्ट ने अपने आर्डर में आईआरसीटीसी के वर्करों कि राहत देते हुए डीेएलसी(केंद्रीय) को अप्लीकेशन लगाने के 3 महीने के अंदर सामान काम को तय कर सामान वेतन को लागु करवाने का ऑर्डर दिया. अभी पुरे देश में ठेका कानून के इस प्रावधान को लागु करने कि मांग उठने लगी थी.मगर कोर्ट के इस तल्ख टिप्पणी के बाद भी सरकार का यह कदम मजदूर विरोधी ही नहीं बल्कि मालिकों को खुली छूट देने जैसा है कि जितना चाहो मजदूरों कि निचोड़ लो. अब कानून ही नहीं रहेगा तो कोई इस मांग के लिए कोर्ट भी नहीं जा सकेगा. सरकार के इस कदम का मजदूर संगठन सीआईटीयू ने कड़ा विरोध जताया है.
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