ट्रेड यूनियन नेता तपन सेन महासचिव सीटू ने राज्य सभा में बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों से कर की वसूली के संबंध में सवाल उठाये. उन्होंने पूछा कि आज की स्थिति के अनुसार, बड़ी कारपोरेट कंपनियों द्वारा सरकार को विभिन्न प्रकार के करों की कितनी धनराशि देय है? कितनी कंपनियों की ओर पांच सौ करोड़ रुपये अथवा इससे अधिक की धनराशि कर के रूप में बैंक का बकाया है.
कंपनियों के ऊपर बैंक का बकाया
श्री सेन के बैंक के बकाया सवाल का जवाब में वित् मंत्री श्री अरुण जेटली ने कहा कि 31.03.2017 की स्थिति के अनुसार 500 करोड़ रु. या अधिक के बकाए कंपनी कर देय वाली कंपनियों की संख्या 132 है जिसमें 3,38,098 करोड़ रुपये का कुल देय शामिल है. तथापि, बकाया देय में से 2,45,480 करोड़ रुपये की राशि को निम्नलिखित कारणों से वसूला नहीं जा सकता है:-
रोक के अंतर्गत मांग: 1,20,604 करोड़ रुपये
वसूली हेतु कोई परिसंपत्ति नहीं अथवा अपर्याप्त परिसंपत्ति 84,469 करोड़ रुपये
परिसमापन के अंतर्गत कंपनी: 30,532 करोड़ रुपये
मांग जो देय नहीं हुई: 2,443 करोड़ रुपये
राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (एनसीएलटी) के समक्ष कंपनी 1,568 करोड़ रुपये
अन्य कारण (जैसे संरक्षी कर निर्धारण, किश्तों के अंतर्गत मांग,
अधिसूचित व्यक्तियों के विरूद्ध मांग आदि): 5,864 करोड़ रुपये
500 करोड़ रु. या अधिक देय सेवा कर का एक मामला है जिसमें 1606.26 करोड़ रु. की राशि (और इतनी ही राशि का जुर्माना) देय है. यह मामला उच्च न्यायालय में है. उच्च न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश में विभाग को निर्देश दिया है कि वह प्रतिरोधी कार्रवाई न करें.
श्री सेन के दूसरा सवाल किया कि “सरकार द्वारा ऐसी कंपनियों से कर कीवसूली किए जाने हेतु क्या-क्या कदम उठाए जा रहे हैं?” जिसके जबाब में श्री जेटली ने कहा कि उच्च मूल्य वाले मामलों पर नियमित रूप से निगरानी की जाती है और त्वरित वसूली हेतु हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं. उचित मामलों में, बैंक खातों और ऋणियों की कुर्की की जाती है और बकाया देय की वसूली की जाती है. उपयुक्त मामलों में कुर्की हेतु कार्यवाही और अचल संपत्तियों की बिक्री की कार्यवाही भी शुरू की जाती है.
करों के बकाए की वसूली संभव बनाने के उद्देश्य से सूचना देने के लिए एक नई पुरस्कार योजना भी अधिसूचित की गई है. पुष्टि किए गए चूककर्ताओं के नामों को भी सार्वजनिक किया जाता है. कर बकायों की अधिकाधिक वसूली हेतु प्रयासों के अंतर्गत विस्तृत वार्षिक कार्य योजना, 500 करोड़ रुपये और इससे अधिक राशि के मामलों में बकायों की वसूली की गहन समीक्षा, बड़ी राशि के बकायों के मामलों की शीघ्र सुनवायी, बीआईएफआर/ऋण वसूली अधिकरण/आधिकारिक परिसमापक में ऐसे मामलों की कड़ी निगरानी, आदि शामिल हैं.
एक तरह से देखे तो गोल-मोल जबाब है. जेटली साहब ने केवल यह बताया कि क्या-क्या करवाई किया जाता है, मगर यह नहीं बताया कि वो क्या करवाई कर रहे है. केवल उच्च न्यायालय अंतरिम आदेश का हवाला दे रहे है.अगर उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश में करवाई न करने को कहा तो सरकार सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जा रही? अगर किसी मजदुर के हक़ से जुड़ा मामला होता तो सरकार जी बताये हाथ पर हाथ धरे बैठे होते?
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