पुरे देश में एक समान न्यूनतम वेतन
इसके बारे में मार्च 2013 में श्रम एवं रोजगार मंतरी श्री मल्लिकार्जुन खगडे़ राज्य सभा में चर्चा कर चुके हैं. जिसमें उन्होने जानकारी देते हुए उन्होंने बताया था कि देश के संविदा कामगारों को भी समान काम के लिए वही वेतन, सुविधाएं मिल सकेंगी, जो नियमित कर्मचारियों को मिलती हैं. इसके लिए सरकार संविदा श्रमिक [विनियमन एवं उन्मूलन] कानून में संशोधन करने जा रही है. जबकि असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए देश भर में एक समान न्यूनतम मजदूरी पर वह अलग से काम कर रही है. (इस न्यूज को पढ़ने के लिए नीचे के लिंक को क्लिक करें).
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मगर अभी की जो जो केंद्र सरकार है वह कर्मचारियों को एक सामान न्यूनतम वेतन का लल्लीपोप दिखाकर 44 श्रम कानूनों के 5 लेबर कोड में बदलकर सभी अधिकारों व संरक्षण को समाप्त करना चाहती है. केन्द्र सरकार ने प्रधानमंत्री कार्यालय के सीधे हस्तक्षेप से कुछ भाजपा शासित राज्यों जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट, हरियाणा और आन्ध्र प्रदेश पहले ही इस काम को कर चुके हैं.सूत्रों के अनुसार वेतन श्रम संहिता विधेयक में न्यूनतम वेतन कानून, 1948, वेतन भुगतान कानून, 1936, बोनस भुगतान कानून, 1965, तथा समान पारितोषिक कानून, 1976, को समाप्त करके एक कानून नई वेतन संहिता विधेयक (Minimum Wage Code Bill) बनाया जा रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि सदन में बिना चर्चा किये जल्दबाजी में पास किया जा रहा है.
ट्रेड यूनियन का कहना है कि बिना किसी से राय मशवरा किये मालिकों के पक्ष में कानून लागु किया जा रहा है. सरकार के मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ पुरे देश के मजदूरों ने 10 सेन्ट्रल ट्रेड यूनियन कि अगुआई में राष्ट्रीय सम्मलेन तालकटोरा इनडोर स्टेडियम में कर के देशव्यापी संघर्ष का एलान किया है.
इस कन्वेंशन को सम्बोधित करते हुए सीटू के राष्ट्रीय महासचिव तपन सेन ने कहा कि यदि सरकार ने इसके बाद भी ट्रेड यूनियनों की मांगे नहीं मानी तो राष्ट्रीय स्तर पर अनिश्चिताकलीन देशव्यापी हड़ताल की घोषणा ट्रेड यूनियनें कर सकती हैं.
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