आज
हम 21वीं सदी में जी रहे हैं और पुराने बंधनों को तोड़कर काफी आगे पहुॅच चुके हैं. इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि लोग चाॅंद और ग्रहों पर रहने की बात करते हैं और जल्द ही यह काफी हद तक हो भी जायेगा. मगर सोचने की बात है कि क्या आज भी
हमारे समाज और समाज के लोगों में महिलाओं के प्रति सोच में परिर्वतन आया है? समाज में आज भी महिलाओं के लिए अघोषित आपातकाल है.
महिलाओं के लिए अघोषित आपातकाल
आज भले ही हम चाॅंद पर चले जाए मगर अगर पहले की तरह अभी भी महिलाओं को कमजोर और लाचार समझते हैं तो ऐसा परिवर्तन किसी काम का नही है. आज महिला चाहे कितनी भी पढ़ी लिखी क्यों न हो, उसको समाज में अभी भी अबला समझा जाता है. आज भी हर तरह से उनको दबाने की कोशिश होती है. जो एक तरह से महिलाओं के लिए अघोषित आपातकाल ही तो है.
आपको शायद मेरी यह बात बेतुकी या बेबुनीयादी लगे या हो सकता है यह भी लगे कि मैं मर्दो की बुराई कर रही हूँ, तो बता दूॅं कि आप बिल्कुल गलत सोच रहे हैं. आपने खुद भी गौर किया होगा कि लड़कियाॅं चाहे कितनी भी पढ़ लिख ले, मगर पाबंदी हमेशा उसी पर लगती है. ऐसा मत करो, ऐसे मत बैठो, ऐसे मत चलो, आदि आदि. लोग अकसर लड़कियों के काबलियत को शक की निगाह से देखते हैं कि क्या वह ऐसा कर लेगी. जबकि बेटियों ने दुनिया में अपनी कामयाबी के झंडे किस फिल्ड में नही गाड़े है.
आज भले ही हम बेटा-बेटी को एक सामान समझते हों. मगर ज्यादातर लोगों के लिए यह जुमला से ज्यादा कुछ नही. आज भी कोख में बेटियां मारी जाती है, ससुराल में बहुये जलाई जाती है. कुछ भी तो नही बदला. अगर बदला है तो केवल बेटियों ने अपना दम पर अंतरिक्ष से लेकर हिमालय के चोटी पर तक नाम लिख दिया है. दुनिया के हर मुकाम को हासिल करने के बाद भी आज बेटियों को कमजोर समझा जाता हैं.
आज भी समाज में महिलाओं को अघोषित आपातकाल का सामना करना पड़ता है. आज अगर दुर्भाग्य से किसी लड़की का या महिला का बलात्कार हो जाये तो सबको पता है कि इसमें उसकी कोई गलती नहीं मगर फिर भी पुरा समाज उसी के चाल चलन को दोष देता है. आज जब लड़की शादी करके ससुराल जाती है. तब उसको बताया जाता है कि अब वही उसका घर हैं. वह उस घर को अपना ही नही बल्कि परिवार को भी अपना मानती है.
मगर कितने घर वाले यानि सास ससुर अपनी बहु को बेटी के समान समझते हैं? आईये इसका सबसे बड़े कारण पर चर्चा करते हैं कि आखिर वो बजह क्या है? उसका सबसे बड़ा कारण है अशिक्षा. जी हाॅं शिक्षा ही हमारे या समाज के सोच को प्रभावित करता है. मगर पढ़े लिखे गंवारों की भी कमी नही है. जो खुद को पढ़ा लिखा बताते हैं मगर सोच अनपढ़ से भी गया गुजरा.
आज शिक्षा और अच्छी परवरिश के द्वारा ही समाज को शिक्षित कर बदला जा सकता है. उम्मीद पर ही दुनिया कायम है. परिवर्तन ही संसार का नियम है. हमेशा प्रयत्न करते रहना होगा, धीरे-धीरे ही सही मगर सूरत बदलनी चाहिए.
लेखिका: सारिका रंजन
यह भी पढ़ें-