Blog- वर्तमान मोदी सरकार द्वारा श्रम सुधार कर कानून को तर्क संगत बनाए जाने की बात कही जा रही है. मिडिया इसको बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने और मजदूरों को गुमराह करने में पीछे नहीं है. मिडिया में कभी बताया जा रहा है कि मजदूरी विधेयक 2017 लागु होता है तो पुरे देश में न्यूनतम वेतन एक सामान हो जायेगा. जिसके अंतर्गत मजदूरों कि 18 हजार Minimum Wages तो कोई 21,000 तक बढ़ जाने की बात बता रहा है. आखिर माजरा क्या है?
Minimum Wages 18 हजार?
अगर शोसल मिडिया हमारी ताकत है तो दूसरी तरफ कमजोरी भी है. आज अगर सही जानकारी वायरल हो रही तो गलत और फेक जानकारी व फेक न्यूज उससे भी तेजी से वायरल किया जा रहा है. इसके लिए पूरा आईटी सेल की टीम लगाई गई है. ऐसा कौन कर रहा और क्यों कर रहा इसके बारे में सब लोगों को पता है. जबकि हमें तो 18 हजार न्यूनतम वेतन (Minimum Wages) की खबर के पीछे कुछ और ही दिख रहा है.
“केंद्रीय कर्मियों का फिलहाल न्यूनतम वेतनमान 18000 रुपये प्रतिमाह है. जिसे कर्मचारी बढ़ाकर 25000 रुपये प्रतिमाह करने की मांग कर रहे हैं. पहले भी सरकार से बातचीत के दौरान यह बात निकलकर सामने आई कि सरकार न्यूनतम वेतनमान को 21000 रुपये प्रतिमाह करने को तैयार हो गई है, लेकिन कुछ कर्मचारी संगठन इस पर तैयार नहीं थे. अब एक बार यह कहा जा रहा है कि कर्मचारी इसे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं.”
अगर आप किसी संस्थान, कंपनी, सरकारी या गैर सरकारी विभाग में ठेका/आउटसोर्सिंग या दिहाड़ी पर काम कर रहे है तो कन्फ्यूज होने कि जरुरत नहीं है. यह खबर उनके लिए है जो सेंट्रल गवर्नमेंट में काम करते हैं और जिनको सातवां वेतन का लाभ मिलेगा. जबकि मिडिया इस खबर को इस तरह दिखती है कि आप सभी कर्मचारियों को लगता है कि सभी कि सैलरी बढ़ने वाली है. आपके खिलाफ यह एक साजिश है. जो आपका ध्यान श्रम कानून के बदलाव से हटाने के लिए किया जा रहा है.
श्रम कानून के बारे में बहुत से चौंकाने वाले तथ्य जानने को मिला है. यह आपके साथ शेयर कर रहा हूँ. उम्मीद है आप इसको समय निकाल कर पढ़ेंगे ही नहीं बल्कि अपने साथियों से भी शेयर करेंगे.खुद भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने 05-सितम्बर-2017 को प्रेस न्यूज निकल कर स्पष्ट किया है कि सरकार ने 38 श्रम अधिनियमों को समाप्त कर 4 श्रम कानून तैयार किया जा रहा हैं, जिनमें मजदूरी सम्बंधी संहिता, औद्योगिक सम्बंधों के लिए संहिता, सामाजिक सुरक्षा सम्बंधी संहिता तथा पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य और कामकाजी माहौल सम्बंधी संहिता शामिल हैं.
मजदूरी विधेयक 2017 सम्बंधी संहिता 10 अगस्त, 2017 को लोकसभा में पेश की गई थी. इसके तहत 4 मौजूदा कानूनों को एक नियम के तहत लाया गया है. इनमें न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948; मजदूरी भुगतान अधनियम, 1936; बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 शामिल कर लिए गए हैं. अब इन चारों कानून को निरस्त मतलब समाप्त माना जाएगा.
आगे उन्होंने लिखा है कि न्यूनतम मजदूरी अधिनियम और मजदूरी भुगतान अधिनियम के प्रावधानों के दायरे में अधिकांश मजदूर नहीं आते थे. नई मजदूरी संहिता के तहत अब सभी कर्मचारियों के लिए न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित की जाएगी. जबकि सच्चाई यह है कि कारखाना अधिनियम, 1948 के तहत वर्तमान केन्द्र सरकार बदलकर 10 की जगह 20 (बिजली से चलने वालो कारखाने) और 20 की जगह 40 (बिना बिजली से चलने वाला कारखाने) करने जा रही है.
अब जाकर कोई सरकार जी से पूछे कि श्रम कानून कि बाध्यता 20 कि जगह 40 करने से कैसे ज्यादा मजदुर इस का लाभ ले पायेंगे? सन 2014 में प्रकाशित, वर्ष 2011-2014 की कारखानों की वार्षिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश के कुल 1,75,710 कारखानों में से 1,25,301 यानि 71.31 प्रतिशत कारखानों में कम मजदूर रखे गये हैं. यह तो वह बात हो गई कि 500 रुपया के नोट से करप्शन होता है. करप्शन को कम करने के लिए 2000 का नोट छाप दिया. मतलब साफ है कि 80 प्रतिशत ज्यादा मजदूर इस कानून से बाहर हो जायेंगे. सरकार के अनुसार 4 करोड़ मजदूरों को फायदा होगा मगर देश में मजदूरों को संख्या लगभग 50 करोड़ से ज्यादा ही है.
फिर सरकार एक तरफ कहती है कि राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी के विचार को प्रोत्साहन दिया गया है, जिसके दायरे में विभिन्न भौगोलिक क्षेत्र रखे गए हैं. अब कोई भी राज्य सरकार राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी तय नहीं करेगी. मगर ठीक उसके एक पारा के बाद मिडिया द्वारा अफवाह का स्पष्टीकरण भी देती है कि अभी हाल में ऐसी खबरें आई थी कि केंद्र सरकार ने न्यूनतम मजदूरी 18,000 रुपये मासिक तय की हैं.
स्पष्ट किया जाता है कि मजदूरी विधेयक, 2017 सम्बंधी संहिता में केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी’ जैसी कोई रकम न तो तय की है और न उसका उल्लेख किया है. इसलिए 18,000 रुपये मासिक न्यूनतम मजदूरी रिकवरी गलत और आधारहीन हैं. न्यूनतम मजदूरी आवश्यक कुशलता, परिश्रम और भौगोलिक स्थिति के अनुसार तय की जाएगी. आखिर दो पारा में एक तरफ लिखा है कि राज्य सरकार राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी तय नहीं करेगी मगर दूसरी तरफ आवश्यक कुशलता, परिश्रम और भौगोलिक स्थिति के अनुसार तय की जाएगी बोल कर अपनी कही बातों कि खुद नकार रही है.
आगे लिखा है कि चेक या डिजिटल/इलेक्ट्रॉनिक तरीके से प्रस्तावित मजदूरी भुगतान के जरिए मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा मिलेगी. संहिता के तहत विभिन्न प्रकार के उल्लंघन होने पर जुर्माने का प्रावधान किया गया. मगर जुर्माना कितना होगा यह नहीं बताया है.
मजदूरी विधेयक, 2017 सम्बंधी संहिता के उपखंड 9 (3) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी तय करने से पहले केंद्रीय सलाहकार बोर्ड से परामर्श लेगी. यह तो पहले से ही प्रावधान है. मगर केंद्रीय सलाहकार बोर्ड सोया ही रहता है.
इस में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि कुछ ऐसी खबरे भी मीडिया में आई हैं कि न्यूनतम मजदूरी (Minimum Wages) की गणना के तरीके को संशोधित किया जाएगा और यूनिट को 3 से बढ़ाकर 6 कर दिया जाएगा. स्पष्ट किया जाता है कि न्यूनतम मजदूरी पर गठित सलाहकार बोर्ड के साथ मजदूर संघों की बैठक में यह मांग उठाई गई थी. बहरहाल, यह भी स्पष्ट किया जाता है कि इस तरह का कोई भी प्रस्ताव मजदूरी विधेयक सम्बंधी संहिता का हिस्सा नहीं है.
ऊपर के बातों से ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार कि निति और नियत दोनों स्पष्ट नहीं है. हम मजदूरों को झोल देकर किसी तरह से मजदूर विरोधी श्रम कानून का बदलाव कर कॉर्पोरेट्स के अच्छे दिन लाना चाहती है. जिस तरह से नोटबंदी और जीएसटी को जनता के लिए फायदेमंद बताकर जनता को परेशान के सिवा कुछ नहीं मिला. कल को जब यह सरकार द्वारा कथित श्रम सुधार लागु हो जायेगा तब जाकर हम ठगे महसूस करेंगे. हम मजदूरों के सारे क़ानूनी अधिकार छीना जा चूका होगा. चुप न रहे आवाज उठायें. नहीं तो कल “सब कुछ गवां कर होश में आये तो क्या हुआ”.
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