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रेल टीटीई पर गिरी गाज…”शायद इसका हेडिंग पढ़ कर लोगों को यकीन न हो मगर सच्चाई यही है. रेल विभाग निजीकरण की तरफ दिन दूनी और रात चौगुनी रफ़्तार से बढ़ रही है. हाँ यह और बात है कि नेशनल मीडिया से यह खबर गायब है. लोकल स्तर कि न्यूज पेपर में खबर तो छपती है मगर वह पुरे देश के लोगों तक पहुंच नहीं पाती है. पिछले कुछ दिन से सारे मिडिया चैनल राम रहीम और उनकी तथाकथित पुत्री सह सहयोगिनी हानिप्रीत के क्रियाकलाप को दिखाने में व्यस्त है.
अब रेल टीटीई भी करेगा ठेकेदार को रिपोर्ट
आज पुरे देश में लगभग 50 करोड़ वर्कर है. जो कि आज न कल इस निजीकरण से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते है. हम इस बात से भी इंकार भी नहीं कर सकते है कि कल पूरी तरह से निजी हाथों में जाने के बाद भाड़ा में मामले में ट्रेन और प्लेन में कोई फर्क नहीं रह जायेगा. शिकायत सुनंने वाले कोई नहीं होगा. जो भी शिकायत करेगा उसको ठेकेदार के गुंडों द्वारा चलती ट्रेन से उठाकर फेंकने में भी देर नहीं किया जायेगा.
धनबाद के आवाज नामक अख़बार के 24 सितम्बर खबर के अनुसार हर महीने रेलवे का 6.64 लाख का घोटाला करने वाला कंपनी वेवटेक ठेकेदार अक्टूबर महीने से धनबाद स्टेशन पर अब टीटीई से स्टेशन पर डियूटी भी करवायेगा. चौंक गए न. लगता है कि पीयूष गोयल ने रेल मंत्री की कुर्सी संभालते ही धमाका कर दिया. अब आप सोच रहे होंगे कि क्या यह हो सकता है. बिलकुल हो सकता है.
उक्त कम्पनी के मालिक पप्पू ने इस बारे में पूछताछ कार्यालय पर नोटिस चिपका कर फरमान जारी भी कर दिया है. अब कल टीटीई की नौकरी का क्या होगा? यह तो पता नहीं मगर यह तो तय ही है कि अब जब टीटीई और ठेकेदार मिलेंगे तो यात्री भी खुली लूट से बच नहीं पायेंगे.
जानकारी के अनुसार 12 फरवरी 2017 को धनबाद सहित 13 स्टेशनों के पूछताछ कार्यालयों को आउटसोर्स किया गया था. 3 साल के लिए 3.50 करोड़ में वेवटेक कम्पनी को ठेका मिला है. इस खबर में यह भी बताया गया है कि इस कम्पनी के ठेकेदार 46 कमर्चारियों के बदले मात्र 30 कर्मचारियों से काम ले रहे है. मतलब 16 कर्मचारी का वेतन सीधा ठेकेदार के जेब में.
रेल टिकट बुकिंग क्लर्क का वेतन मात्र 5 हजार
वहीं कर्मचारियों के अनुसार उनको केवल 5 हजार रुपया मासिक वेतन दिया जाता है. जबकि हर कर्मचारी को कम से कम केंद्र सरकार का न्यूनतम वेतन का भुगतान किया जाना चाहिए. कर्मचारियों द्वारा न्यूनतम वेतन की मांग किये जाने पर ठेकेदार कहता है कि जहां कम्प्लेन करना है कर दो, मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ लेगा.
इस बारे में जब बिहार में औरंगाबाद में कार्यरत अमित कुमार (बदला हुआ नाम) से बात किया तो उन्होंने बताया कि “सर बहुत बुरा हाल है. हमें स्नातक जानकर नौकरी पर रखा गया था. मगर सिर्फ 5 हजार वेतन दिया जाता है. यह केवल मेरे साथ ही नहीं बल्कि बिहार के हर स्टेशन पर हर कर्मचारी का हाल है”. जब हमने पूछा कि क्या पैसा अकाउंट में दिया जाता है तो उन्होंने कहा कि “नहीं कैश में दिया जाता है.
उन्होंने कहा कि हमारी सुनने वाला कोई नहीं है. नौकरी जाने के डर से कोई नहीं बोलता है. ठेकेदार का आदमी खुलेआम धमकी देता है कि इतना में करना है तो करो नहीं तो रास्ता देखो”. हमें नहीं लगता कि यह सब बिना रेल के अधिकारी के मिलीभगत से हो सकता है.यह खबर सभी वर्कर के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर जो रेलवे या अन्य जो भी विभाग निजीकरण की भेट चढ़ने वाले है. इसके लिए एक छोटा से उदहारण देना चाहूंगा.
आप सभी लोगों ने कसाई के यहां मुर्गे को कटते देखा होगा. अगर नहीं देखा तो आज ही जाइये और देख आइये. जब भी कसाई मुर्गा काटने के लिए जाली के बाड़े में हाथ डालकर मुर्गे को पकड़ने के लिए हाथ डालता है तो पता है क्या होता है? हर मुर्गा अपनी अपनी जान बचने के लिए पक-पक कर इधर-उधर भागता है. जब कसाई किसी एक मुर्गा को पकड़ लेता है तो बाकि मुर्गे यह सोचकर चैन की सांस लेते हैं कि भई बच गए. मगर वह यह नहीं जानते कि आज न कल उनकी भी बारी आनी है. यह तो मुर्गा की बात है. मगर हम मुर्गा नहीं है.
अगर हम इस निजीकरण का विरोध नहीं कर पाये तो कल चाहे वर्कर के रूप में या यात्री के रूप में भेंट हमारी चढ़नी तय है. जो लोग चुप है वो आने आने वाली पीढ़ी के लिए कांटे ही बो रहे हैं. आपकी चुप्पी का नतीजा है कि आज लाखों रुपया खर्च कर लोग स्नातक करते है और मात्र 5 हजार की नौकरी करने को विवश हैं.