मोदी सरकार श्रम कानून बदलाव के लिए फिर भी अड़ी रही तो संघर्ष जारी?

अभी हम पर सबसे ज्यादा खाने-पीने की चीजों के बढ़ते गये दामों की विशेषतौर पर मार पड़ी है. जबकि इसके विपरीत सरकार मजदूर कानून में बदलाव करना चाहती है. मोदी सरकार श्रम कानून बदलाव के लिए फिर भी अड़ी रही तो राष्ट्रीय महापड़ाव के बाद भी संघर्ष जारी रहेगा

मोदी सरकार श्रम कानून बदलाव

आज से करीब पीछे 3 वर्ष पहले की तुलना करें तो आवश्यक वस्तुओं, खाद्य, दवाओं, घर किराये, स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन के दाम लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं, लेकिन अधिकतर मजदूरों के वेतन, विशेषकर असंगठित मजदूरों यानि प्राइवेट या ठेके पर काम करने वर्करों का वेतन वहीं का वहीं अटका हुआ है.

मीट, मछली, अंडे, दूध उत्पादों के दाम लगभग 25 प्रतिशत बढ़े हैं, जबकि सब्जियों व फलों के दामों में तो 55 प्रतिशत की बेतहाशा वृद्धि हुई है. इस कारण से हम मजदूरी करने वाले लोग ने प्रोटीन प्रदान करने वाली इन पोषक चीजों को खाना बंद कर देना पड़ा है. दूसरे शब्दों में, मोदी सरकार की दामों को नियंत्रित न कर पाने की असफलता सीधे तौर पर हमारे और हमारे बच्चों के मुंह से भोजन छीनने के लिए जिम्मेदार है.

आपने कभी सोचा है कि खाद्य पदार्थो के दाम क्यों बढ़ रहे हैं? क्या हमारे भोजन का उत्पादन करने वाले किसानों ने ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए खाद्य पदार्थो का दाम ज्यादा बढ़ा दिया है? क्या वे पहले से ज्यादा धनी हो रहे हैं ? क्या वे ‘अच्छे दिनों’ का अनुभव कर रहे हैं?

तो इन सभी सवालों का जबाब मिलेगा नहीं, खेती में लगने वाली लागत, उर्वरक, कीटनाशक, बीजों आदि के दाम बढ़े हैं, लेकिन किसानों को लाभकारी मूल्य नहीं मिल रहा है. कई जगहों पर वे अपनी फसलों को जला रहे हैं, उन्हें राजमार्गो पर फेंक रहे हैं या विरोध जताते हुए उसे लोगों को मुफ्त बांट रहे हैं क्योंकि उन्हें फसल को बाजार तक ले जाने में खर्च होने वाले भाड़े के बराबर भी दाम नहीं मिल पा रहा है.

जानकारी के अनुसार अधिकतर किसानों को सस्ता संस्थागत कर्ज नहीं मिलता है. उन्हें निजी सूद खोरों से ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है. कर्ज अदा करने में सक्षम न होने के कारण बहुत से किसान आत्महत्या कर रहे हैं. पिछले 20 वर्षों में लगभग 3 लाख किसानों ने आत्महत्या की है. कृषि में संकट लगातार जारी है. अब अगर किसान खेती ही नहीं करेगा तो हम खायेंगे क्या?

अब सवाल उठता है कि आख्रिर खाद्य चीजों की मूल्य वृद्धि से किसे लाभ हो रहा है? हमारा पैसा कहाँ जा रहा है? तो जान लें कि हमारा पैसा बड़े-बड़े व्यापारियों की जेबों कि शोभा बढ़ा रहा है. कुछ आवश्यक वस्तुओं विशेषकर सब्जियों जैसे प्याज व टमाटर आदि, के दामों में बार-बार भारी उछाल उन बड़े व्यापारियों के कब्जे के कारण आता है जो उनकी जमाखोरी करते हैं.

बड़े-बड़े कारपोरेट व्यापारी वस्तु बाजार में जमाखोरी व सट्टेबाजी में लगे हैं विशेषकर खाद्य व उसमे संबंधित वस्तुओं की. हमारी मेहनत से पैदा किये वस्तुओं से ही ये सट्टेबाज ही है जो धनी से और धनी होते जा रहे हैं जबकि हम मेहनत करने वाले गरीब भूखे रहने को विवश हैं.

इसके अतिरिक्त, ईंधन व उर्वरकों पर सब्सिडी में भारी कटौती, बिजली शुल्क और कई जनोपयोगी सेवाओं को नियंत्रण मुक्त करने के कारण पहले ही बढ़ रहे दामों में और तेजी आयी है. सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली को ध्वस्त कर रही है. एक बेतुकी गरीबी रेखा के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों को इसके दायरे से पहले ही बाहर धकेल दिया गया है.

देश के अधिकतर भागों में खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू होना अभी बाकी है. सरकार ने आधार से जुड़े खातों में नकद हस्तांतरण का फैसला किया है. इसने इस छलावे के साथ कि इससे कीमतें कम होंगी और किसानों को बेहतर दाम मिलेंगे, मल्टी ब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी देने का निर्णय लिया है, जबकि विश्वव्यापी अनुभव इसके उलट साबित हुआ है.

भाजपानीत मोदी सरकार ने गरीबों की आवश्यक सेवाओं-स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, बैंकिंग, बीमा आदि का निजीकरण करने की क्रूर नीति पर अमल तेज कर दिया है. इसके परिणामस्वरूप इन सेवाओं के दाम आसमान की ओर हैं और ये सेवायें आम जनता की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं. मनमानी करने वाले निजी अस्पतालों में डाॅक्टरों की फीस, मेडिकल जांचों के लिए शुल्क, दाखिला शुल्क 5-10 गुना ज्यादा हैं. मजदूरों, कर्मचारियों व आम जनता की पहुंच जहां निजी स्कूलों व काॅलेजों तक नहीं हो सकती वहीं सरकारी स्कूलों व काॅलेजों का स्तर सरकार द्वारा जानबूझकर गिराया जा रहा है.

अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए इस सरकार ने पेट्रोल व डीजल जैसे जरूरी ईंधन के दामों को ऊंचा रखा हुआ है जबकि दुनिया में तेल के दाम 50 प्रतिशत से ज्यादा गिरे हैं. मई 2014 में, भारत सरकार द्वारा खरीदे गये कच्चे तेल का दाम 107 डाॅलर प्रति बैरल था. तीन वर्ष बाद सितम्बर 2017 में यह उसका आधा, 54 डाॅलर प्रति बैरल था. टैक्स बढ़ाकर सरकार ने पेट्रोल का दाम लगभग 71 रूपये लीटर व डीजल का 58 रूपये लीटर रखा हुआ है. जो पैसा अतिरिक्त लिया जा रहा है वह सरकारी खजानों में पड़ा है जबकि दाम अधिक होने से परिवहन महंगा हो रहा है और इससे सभी वस्तुओं के दाम बढ़ रहे हैं.

कुल मिलाकर, यह भाजपा सरकार कीमतों को बढ़ने से रोकने में पूरी तरह असफल रही है – जबकि 2014 में वोट मांगते समय उसने ऐसा करने का वादा किया था. इस स्थिति ने देश के सभी मेहनतकशों व कर्मचारियों को गरीबी में धकेल दिया है. दाम अपने आप नहीं बढ़ रहे हैं. सरकार की नीतियां जानबूझकर ऐसी बनायी गयी हैं कि दाम बढ़ें, जिसका लाभ व्यापारियों व बिचैलियों को मिले. आम लोगों को कष्ट पहुंचा रही मूल्य वृद्धि का यही कारण है.

यह सारी बातें मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए सीआईटीयू की अध्यक्ष कामरेड के हेमलता ने अपने बुकलेट में लिखी है. यह बस उसका एक मात्र टॉपिक है. उन्होंने इस बुकलेट के माध्यम से मोदी सरकार की आमजन व् मजदूर विरोधी नीतियों की पोल खोल कर रख दी है. आगे उन्होंने लिखा है कि हम चाहते हैं कि मूल्य वृद्धि रोकने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत व सार्वभौमिक बनाया जाए, आवश्यक वस्तुओं के वायदा करोबार व सट्टेबाजी को प्रतिबंधित किया जाए, मगर सरकार इन जायज मांगों को पूरी तरह अनसुनी कर रही है.

इसलिए केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों व लगभग सभी इंडस्ट्रियल फेडरेशनों ने 9, 10, 11 नवम्बर, 2017 तक संसद के पास तीन दिवसीय विशाल क्रमिक धरने का आह्वान किया हैं. उन्होंने इसके माध्यम से पुरे देश के मजदूरों से लाखों की संख्या में दिल्ली पहुंचने की अपील की है. उन्होंने आगे लिखा है कि अगर सरकार फिर भी अड़ी रहती है तो जब तक हमारी मांगे पूरी नहीं हो जाती हम संघर्षों को जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

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