गीतम सिंह उम्र 38 साल 8वीं फेल है मगर आज दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले CWC (सेन्ट्रल सेक्रेटारिएट क्लब) को जुर्माना लगवाने वाले गीतम सिंह हमारे लिए हीरो बन चुके हैं. कुछ अख़बार ने उनको प्रीतम सिंह भी लिखा है मगर उनका सही नाम गीतम सिंह ही है. ऐसे तो गीतम सिंह यूपी से हैं मगर उनके पिता दिल्ली के तालकटोरा में बस गए थे. श्री सिंह का जन्म और पालनपोषण दिल्ली में ही हुआ है.
CWC (सेन्ट्रल सेक्रेटारिएट क्लब) को जुर्माना लगवाने वाले गीतम सिंह?
आज सुबह जैसे ही अनुज अग्रवाल जी, वकील, दिल्ली हाई कोर्ट ने द हिन्दू में छपी खबर का लिंक शेयर किया. जिसको पढ़कर मन खुश हो गया. सबसे पहले तुरंत ही मैसेज के द्वारा उनको जीत की बधाई दी. शाम को फुर्सत में आते ही उनसे उस केस के याचिकाकर्ता का नंबर मांगा. जिसके बाद श्री अनुज जी ने तुरंत ही गीतम सिंह का नंबर सेंड कर दिया.
उसके बाद फिर क्या था. गीतम सिंह को फोन कर बधाई दी और साथ ही साथ उन्होंने अपने संघर्ष की जो कहानी बताई उसे सुनकर हमारे ही नहीं बल्कि आपके भी होश उड़ जायेंगे.सन 1089 में सेन्ट्रल सेक्रेटारिएट क्लब, तालकटोरा में माली के पद पर बहाल हुए थे. उस समय उनको अस्थाई रूप से न्युक्त करते हुए 400/- रुपया मासिक दिया जाने लगा. वो याद करते हुए बताते है कि जबकि उनसे उस समय 12 घंटे काम करवाते थे. उनकी बहाली के ठीक 3 साल बाद सेवा संतोषजनक होने के बाद 1992 में उनकी सेवा माली के ही पद पर स्थाई कर दी गई. जिसके बाद उनको सैलरी बढ़कर 786 /- मासिक हो गई.
मगर उसके अगले 3 साल बाद बिना उनकी जानकारी के प्रबंधन के द्वारा उनको फिर से कच्चा यानि अस्थाई कर दिया और मासिक सैलरी घटा कर 288 रूपये कर दी गई. आज तक हमने अस्थाई से स्थाई होना तो सुना होगा मगर पहली बार किसी स्थाई कर्मचारी को अस्थाई में ही नहीं बदला गया बल्कि उनको सैलरी भी कम कर दी गई, जैसे अंधेर नगरी हो.
इसके बाद श्री गीतम ने हिम्मत करके सन 1995 में न्यूनतम वेतन का केस लगाया. सब कुछ ठीक चल ही रहा था मगर 24 जुलाई 2011 को प्रबंधन द्वारा बिना कोई कारण बताये ही नौकरी से निकाल दिया गया. जिसका अभी केस कारकरडूमा कोर्ट में विचाराधीन है. जानकारी के लिए बता दें कि अब कारकरडूमा से लेबर कोर्ट द्वारका में ट्रांसफर हो गया है.
जब उन्हें सेंट्रल सेक्रेटारिएट क्लब ने नौकरी से निकाला गया था तब उनकी सैलरी 5400/- मासिक थी. आगे उन्होंने बताया कि उनका एक लड़का और एक लड़की है. जिसकी पढाई-लिखाई की जिम्मेवारी उनके ही कंधे पर थी. मगर नौकरी छीन जाने से उनके परिवार के सामने भुखमरी के समस्या आ गई.
मगर उनकी पत्नी ने सिलाई-कढ़ाई करके उनकी जगह परिवार की जिम्मेवारी ही नहीं निभाया बल्कि कभी भी अपने बच्चो की पढाई-लिखाई में कोई रूकावट नहीं आने दी. बताते है कि इधर सन 2004 में गीतम सिंह लेबर कोर्ट से न्यूनतम वेतन के केस में आर्डर आ गया, जिसमे कोर्ट ने 15,240 रूपये देने का आर्डर दिए थे. जिस फैसले को सेंट्रल सेक्रेटारिएट क्लब प्रबंधन चुनौती देने हाई कोर्ट गई थी. मगर उल्टा पड़ गया.
इसी केस की सुनवाई में माननीय हाई कोर्ट ने क्लब को निर्देश दिया कि वह श्रम अदालत द्वारा माली गीतम सिंह को दी गई रकम के अलावा उसे 1 सितंबर 1989 से सितंबर 1992 के बीच दी गई मजदूरी और अधिनियम के तहत निर्धारित न्यूनतम मजदूरी के अंतर की रकम का भी भुगतान करे. इसके साथ ही अदालत ने क्लब को अक्टूबर 1992 से सितंबर 1995 की अवधि के लिए 14 साल पहले श्रम अदालत के 15,240 रुपये की रकम अदा करने के आदेश का अनुपालन नहीं करने पर वादी को 50,000 रुपये अदा करने का भी आदेश दिया. (अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें).
हम वर्कर वॉयस के माध्यम से उनके संघर्ष को सलाम करते है. उनकी यह लड़ाई उन पढ़े लिखे युवाओं के लिए एक सबक है जो शोषण को अपनी ड्यूटी समझकर मानसिक गुलाम बन चुके हैं. ऐसे लोग जो संघर्ष से कतराते ही नहीं बल्कि बिना हाथ-पॉव चलाये ही चिल्लाने लगते है कि कुछ नहीं होगा- कुछ नहीं होगा. गीतम सिंह ने काम पढ़े लिखे होने के वावजूद लम्बी लड़ाई लड़ कर जीत ही हासिल नहीं की बल्कि अभी भी लड़ ही रहे हैं. उनके संघर्ष को देखकर कोई भी यही कहेगा कि “कौन कहता है कि आसमान में सुराग नहीं हो सकता, एक पत्थर तबियत से तो उछालो यारो”.
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