दिल्ली मेट्रो अब Driverless Metro का परिचालन शुरू करने जा रही है. सभी तैयारी पूरी बताई जा रहे है. जानकारी के अनुसार पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहार वाजपेयी के 93वें जन्मदिवस के अवसर पर आगामी 25 दिसंबर को नरेंद्र मोदी इसका उदघाटन करने वाले हैं. मगर एक साथ दो-दो ऐसी घटनायें ऐसी हो गई कि आप भी मेट्रो पर चढ़ने से पहले इंजन में झांकेंगे कि ड्राइवर है या ड्राइवर नहीं है.
Driverless Metro उद्घाटन से पहले कूदी
अब जाहिर सी बात है आपकी उत्सुकता यह जानने के लिए बढ़ गई होगी कि ऐसा क्या हो गया. सूत्रों की माने तो राजधानी दिल्ली के पहली Driverless Metro मंगलवार को करीब शाम 4:30 बजे हादसे का शिकार हो गई. शुक्र मनाइये कि इसमें कोई सवार नहीं था. मेट्रो का इंजन कालिंदी कुञ्ज डिपो की दीवार तोड़ते हुए निकल गया. जबकि दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरशन ने मामले को हलके में लेते हुए कहा कि घबराने की बात नहीं यह हादसा तब हुआ जब ट्रेन को धुलाई के लिए ले जाया जा रहा था.
दैनिक भाष्कर ने लिखा है कि पिछले साल 5 नवंबर, 2016 को ट्रायल रन के दौरान मेजेंटा मेट्रो हादसे का शिकार हो गई थी. तब दो मेट्रो एक ही ट्रैक पर आ गई थीं. नवभारत टाइम्स के रिपोर्ट की माने तो इस घटना को दिल्ली मेट्रो ने मानवीय भूल करार देते हुए इस घटना में किसी व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं होने की बात कही है. उन्होंने आगे बयान जारी कर कहा कि मेट्रो के ब्रेक को चेक नहीं किया गया था.
पीएम मोदी के द्वारा उद्घाटन के बाद नई मजेंटा लाइन पर बॉटनिकल गार्डन, ओखला बर्ड सेंचुरी, कालिंदी कुंज, जसोला विहार, शाहीन बाग, ओखला विहार, सुखदेव विहार, ओखला एनएसआइसी, कालकाजी मेट्रो स्टेशन की यात्रा मात्र 19 मिनट में कर सकेंगे. अब देखना है कि मोदी साहब केवल झंडी दिखाकर इसको रवाना करेंगे या फिर सवारी का भी आनंद उठायेंगे. हमें नहीं लगता कि इस हादसे के बाद डीआरएम प्रशासन प्रधानमंत्री साहब की जान जोखम में डालेगा.
गारंटी कौन लेगा कि ड्राइवरलेस मेट्रों में दुर्घटना नहीं होगी
हम धीरे-धीरे मशीनीयुग के तरफ तेजी से बढ़ते जा रहें है. आज हर काम के लिए हम गजेट्स पर निर्भर हो चुके हैं. अगर एक सेकेंड के लिए हमारे जीवन से गजेट्स को अलग कर दिया तो जीवन जैसे रुक सा जाये. मगर कभी-कभी इस उपयोगी सा दिखने वाला गैजेट नुकसानदेह भी साबित हो जाता है. अभी तो खैर उस मेट्रों में कोई नहीं था मगर इसकी गारंटी कौन लेगा कि जब इसमें सवारी होगी तो इस तरह की दुर्घटना नहीं होगी. आखिर मशीन तो मशीन ही होता है.
ट्रेन भी ड्राइवरलेस होती तो क्या यात्रियों की जान बचाई जा सकती थी?
अब इसको समझने के लिए एक छोटी सी कहानी को याद करते हैं. ऐसे इसको कहानी कहना बेईमानी होगा. इस कहानी को कई लोगों ने हकीकत कर दिखाया है. कहानी कि किताब में बचपन में शायद सबने पढ़ा होगा. सूरज (एक व्यक्ति) रात को खाना खाने के बाद अपने खेतों की रखवाली करने टार्च लेकर रेल के पटरियों से होकर गुजर रहा था. तभी उसकी नजर टार्च की रौशनी में टूटी हुई पटरी के तरफ गई. तभी उसे दूर से ट्रेन आने की आवाज सुनाई दी तो वह बेचैन हो उठा.
मगर समझदारी से काम लेते हुए अपने लाल गमछा के ऊपर टार्च जलाकर लाल रौशनी करता हुआ ट्रेन की दिशा में चिल्लाते हुए भागना शुरू किया. उसकी कोशिश रंग लाई. ट्रेन के ड्राइवर ने उसको ऐसा करता देख खतरा भांपकर ट्रेन रोक दिया. जिसके कारण हजारों यात्रियों की जान बचाई जा सकी. अब थोड़ा देर के लिए कल्पना कीजिये कि वह कहानी वाली ट्रेन भी ड्राइवरलेस होती तो क्या यात्रियों की जान बचाई जा सकती थी? इस कहानी से हम कुछ गलत सन्देश नहीं देना बल्कि केवल यह बताने की कोशिश कर रहें हैं कि मानव और मशीन में अंतर होता है.
ड्राईवरलेस मेट्रो काम कैसे करेगा?
अब यह जानना बहुत जरुरी हो गया है कि यह ड्राईवरलेस मेट्रो काम कैसे करेगा? जी हां, मेट्रों का पूरा सिस्टम ही रेडियों सिग्नल पर काम करेगा. इसके लिए हर मेट्रों ट्रेन में 2 एंटीना लगा होगा ताकि अगर एक खराब हो तो दूसरा काम करने लगे. यह एंटीना पटरियों के पास लगा होगा ताकि एक दूसरे एंटीना से सिग्नल प्राप्त कर सके.
इनको कंट्रोल रूम से कंट्रोल किया जायेगा. बताया जा रहा है कि दो मेट्रों ट्रेनों के बीच की दुरी 90 सेकेंड की होगी. अब बड़ा सवाल यह भी है कि इससे रेडियों सिग्नल का ट्रेफिक बढ़ेगा और अगर मोबाइल फ़ोन के तरह रेडियों सिग्नल में क्रॉस कनेक्शन हुआ तो क्या होगा? इससे पहले भी सन 2016 में ट्रायल के दौरान दो ट्रेनें एक ही पटरी पर आ चुकी है.
ड्राइवरलेस मेट्रों के उद्घाटन से पहले दीवार तोड़कर कूदना मन में डर
इससे यात्रियों के सेहत पर कोई फर्क न पड़े, मेट्रों में काम करने वाले ड्राईवरों की भले ही नौकरी न जाये मगर आने वाले दिनों में मेट्रों से ड्राईवर के पद समाप्त किये जा सकते हैं. यह भी हो सकता है कि ट्रेन में भी यह प्रयोग किया जाये. इससे आपकी या हमारी सेहत पर फर्क नहीं पड़े मगर आने वाले पीढ़ी के लिए मेट्रों में ड्राईवर बनाना सपना सा हो जायेगा. इसके बारे में यह भी बताया जा रहा है कि यह ट्रेन अपना मेंटेनेंस खुद करेगी, मतलब खराबी से लेकर ट्रेन की धुलाई तक.
ऐसे में मेट्रों को इसकी देखभाल के लिए कम कर्मचारी रखें पड़ेंगे. इससे उनका खर्चा कम होगा. अब चाहे आप इसे कुछ भी समझे मगर ड्राइवरलेस मेट्रों के उद्घाटन से पहले दीवार तोड़कर कूदना मन में डर तो पैदा करता है.