उत्तराखंड उपनल वर्कर्स के वेतन घोटाला
उपनल ने खुद को सरकारी ठेकेदार मान रहा
इसके बाद हमने उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड (उपनल) के ऑफिसियल वेबसाइट पर विजिट किया. जिसमें वर्कर से सम्बंधित जानकारियां पढ़ना शुरू किया. इसके नीचे दाई तरफ एक लिंक मिला जिसमें नये क्रामिक हेतु व्यक्तिगत समझौता (Agreement) फार्म लिखा था. जिसको क्लिक करने के बाद पढ़ने पर पता चला कि किस तरह एक सरकारी विभाग खुद ही सरकार के कानून की धज्जी उडाता है.
ऐसे तो इसमें कर्मचारियों को डराने के लिए 16 पॉइंट दिया हुआ है. मगर पॉइंट नंबर 2 को गौर करें तो वेतन और अवकाश की अवधि उत्तराखंड सरकार व लेबर कमिश्नर के साथ ही साथ मुख्य नियोक्ता के अनुबंध शर्त के अनुसार होगा. इसका मतलब एक तरह से उपनल ने खुद को सरकारी ठेकेदार मान रहा है.
उपनल खुद ही वर्कर को ठेका वर्कर करार दे रहा है. मगर एक तरफ यह भी लिख रहा है कि आप न तो ठेकेदार यानी उपनल और न ही मुख्य नियोक्ता के स्थाई वर्कर होंगे. अरे भाई आज तक प्रबंधन से सुना था कि ठेका/ओउटसोस वर्कर ठेकेदार के वर्कर होते हैं. मगर यहां तो अजीब खेल है. हमारा तो मानना है कि ऐसे मामले को कोर्ट में जाना चहिए. ऐसे मामलों में जो वर्कर 240 दिन ज्यादा से काम कर रहें उनके दोनों हाथ में लड्डू है. कल कोर्ट को दोनों में किसी का वर्कर तो मानना होगा. अब समझने की बात यह है कि ठेकेदार और मुख्य नियोक्ता दोनों सरकारी ही है.
सरकारी विभाग में काम करने वाले सरकारी कर्मचारी के बराबर काम करते हैं कि नहीं
अब अपने इस पोस्ट के असली मकसद की ओर आते हैं. जैसे ही ठेकेदार और मुख्य नियोक्ता यानि अंग्रेजी में प्रिंसिपल एम्प्लायर की बात आती है. वैसे ही ठेका मज़दूर (नियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम 1970 के तहत न्यूनतम वेतन, समान काम का समान वेतन, पीएफ, ई एस आई, ग्रेचुटी, बोनस, महिला वर्करों को मेटरनिटी लिव, विशाखा गाइडलाइन्स के तहत आईसीसी, काम के घंटे, इत्यादि सभी प्रावधान लागू होने चाहिए. अब कर्मचारियों का हक बनता है कि वे देखें कि क्या वो सरकारी विभाग में काम करने वाले सरकारी कर्मचारी के बराबर काम करते हैं कि नहीं?
चपराशी को चतुर्थकर्मी कर्मचारी के रूप में लगभग 25,000/- रुपया मासिक
ठेका मज़दूर (नियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम 1970 के तहत स्थाई प्रकृति के लगातार चलने वाले काम के लिये ठेका मज़दूर नहीं लगाया जा सकता है. बारहो महीना चलने वाला काम (स्थाई काम) (नियमित मज़दूर) से ही करवाया जाना चाहिए. इसी कानून से सम्बंधित नियम 1971- “समान काम के लिए समान वेतन” के अनुसार अगर किसी स्थाई प्रकृति के काम के लिए ठेका मज़दूर काम पर लगाया गया है तो जब तक उस मज़दूर को स्थाई (नियमित) नहीं कर दिया जाता.
उस ठेका मज़दूर को वेतन और सभी सेवा सुविधायें, उस काम को करने वाले स्थाई मज़दूर के सामान ही मिलेंगी. (इसके बारे में डिटेल में जानकारी के लिए हमारे इस आर्टिकल को पढ़ें -> ठेका वर्कर रेगुलर वर्कर के बराबर काम ही नहीं, बल्कि रेगुलर वर्कर का ही काम कर रहे: हाईकोर्ट. हम तो इसका सीधा उदाहरण देंगे कि आज आठवीं पास चपराशी को चतुर्थकर्मी कर्मचारी के रूप में लगभग 25,000/- रुपया मासिक मिलता है.
इसी से आप तय कीजिये कि आप किसके बराबर काम करते हैं. इसके बारे में हमारे जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने माना था कि आज ठेका या आउटसोर्स वर्कर परमानेंट के बराबर नहीं बल्कि परमानेंट वर्कर का ही काम कर रहें हैं. अब ऐसे में समान काम का समान वेतन आपका संवैधनिक ही नहीं बल्कि क़ानूनी हक़ भी है. अब कितने दिनों में आप इसको ले पाते हैं वो आपके यूनिटी और ताकत पर निर्भर करता है.
उपनल कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष श्री दीपक चौहान जी से वर्करों के मुद्दों पर आये दिन बात होती रहती हैं. हम इसी बातचीत के दौरान उन्होंने अपना सैलरी स्लिप और कुछ जानकारी शेयर की. जिसका अध्ययन करने के बाद तो पता चला, वह काफी चौंकाने वाला है.
उपनल विभाग पीएफ का अपना कॉंट्रिब्यूशन भी आपके ही सैलरी से काट रहा
अगर नीचे जो सैलरी स्लीप का फॉर्मेट आप सभी लोगों का है तो यह जान लीजिये कि उपनल विभाग आपके साथ धोखा ही नहीं कर रहा बल्कि यह एक बहुत बड़ा ही घोटाला है. इस सैलरी स्लिप को माने तो पता चलता है कि उपनल विभाग पीएफ का अपना कॉंट्रिब्यूशन भी आपके ही सैलरी से काट रहा है. अब इसको समझने के लिए उनके सैलरी स्लिप का कॉपी भी देख सकते हैं.
Uttrakhand UPNAL outsource/contract worker salary slip
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जी हाँ उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड (उपनल) के कॉन्ट्रैक्ट वर्कर का सैलरी स्लिप है. जिसको आजकल नया नाम ऑउटसोस वर्कर भी कहा जाता है. इस सैलरी स्लिप को गौर करें तो इसमें बेसिक और डीए कितने दे रहे है. इसमें स्पष्ट नहीं है. मगर पीएफ का एम्प्लॉयर शेयर के स्थान पर 992/- और एम्प्लाइज शेयर 905/- रुपया लिखा है. वही दूसरी तरफ Gross wages payable (by employer)- 11,155/-. ग्रॉस सैलरी में से नियम के अनुसार केवल कर्मचारी के हिस्से का पीएफ, ईएसआई व् अन्य कटौती किया जा सकता है.
जबकि एम्प्लॉयीर यानी उपनल ने अपने पीएफ का हिस्सा भी काट लिया है. अगर देखें तो यह करोड़ों का घोटाला है. इतना ही नहीं दूसरे स्लीप को देखने से उससे भी बड़ा तथ्य उजागर होता है. पुरे देश में पीएफ कानून के तहत 12% कटौती का प्रावधान है. जबकि उपनल ने 17% कटौती की है.
उपनल विभाग ने सैलरी में से GST की भी कटौती कर ली
Uttrakhand UPNAL outsource/contract worker salary slip
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उत्तराखंड उपनल वर्कर्स के वेतन से पीएफ व जीएसटी के नाम पर महाघोटाला
अगर कर्मचारी संघ हमारे द्वारा ऊपर दिए गए सुझाव को मद्देनजर इन गैर क़ानूनी कटौतियों को हासिल कर लेता है तो हम दावे के साथ कह सकते हैं कि बिना मांगे ही प्रति कर्मचारी 2500/- रूपये से लेकर 3500/- रूपये की वृद्धि होगी. इसके साथ ही वर्षों से गलत काटे जा रहे पैसों को एरियर के रूप में भी पा सकते हैं.
पीएफ में घपला साबित होने पर अधिकारी को जेल
आप सोच रहे होंगे कि हम इतना विश्वास के साथ कैसे कह सकते की कम्प्लेन पर करवाई हो ही जायेगी. सही सवाल है. आप लोगों का मजबूत यूनियन है. हक़ पाने के लिए हमें आन्दोलनात्मक के साथ ही साथ क़ानूनी लड़ाई भी लड़नी चाहिए. जितने के लिए कभी-कभी प्रबंधन की कमजोर नस पर वार करना होता है. बस समझ लीजिये पीएफ कानून बहुत ही कड़ा है.
इसमें घपला साबित होने पर आपके अधिकारी को जेल भी हो सकती है. बस आपकी शिकायत की देर है. हमने खुद ही आईआरसीटीसी (रेलवे का पीएसयू) का शिकायत किया ही नहीं बल्कि लगभग एक वर्ष के बाद कर्मचारियों को एरियर भी मिला. इतना ही नहीं बल्कि अपने संघर्ष के दम पर समान काम का समान वेतन का सर्कुलर बनाने पर मजबूर कर दिया.
मगर उससे पहले जरुरत है कि एक-एक कर्मचारी इस हकीकत को जाने. उपनल कर्मचारियों से लेकर उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश के एक-एक जनता को पता चलना चाहिए कि जिस सरकार को आप वोट देकर कुर्सी पर बैठते हैं. वह सरकार आपके और आपके बाल-बच्चों का हक़ किस तरह से लूट रहा है.
आपका उत्तराखंड के 22 हजार उपनल कर्मचारियों की आवाज को उठाया है और हमें हमारे अधिकारों से अवगत कराया, मैं प्रदेश अध्य्क्ष आपका सभी कर्मचारियों की ओर से धन्यवाद करता हूँ
यह तो दीपक जी आपका बड़प्पन है. अगर आर्टिकल के अनुसार आपलोगों को हक़ मिल जाता है तभी समझूंगा कि लिखना सफल हुआ. कलम के द्वारा ही समाज में क्रांति आ सकती है. हमारी कोशिश है कि धीरे-धीरे लोगों को इस ब्लॉग के माध्यम से हक़ की जानकारी उपलब्ध कराये. आप जैसे संघर्षशील लोगों का साथ मिलेगा तो हर लड़ाई जीती जा सकती है. धन्यबाद.
बहुत बढ़िया सुरजीत जी। पर सबसे जरूरी है कि ठेका कर्मचारी इसको समझे और अपने हक की लड़ाई के लिए एकजुट हो। अलग अलग उंगली बन कर काम नही चलेगा बल्कि मुठ्ठी बनना होगा।
धन्यबाद हरीश जी, बिलकुल सही कहा. एक होना बहुत आसान मगर बने रहना बहुत मुश्किल…