दिल्ली गेस्ट टीचर को पक्का करने का मामला
केजरीवाल सरकार ने मनोज तिवारी के बयान को आड़े हाथों लेते हुए बिल पास करवाकर उपराज्यपाल महोदय के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा. मगर फिर से बात राजनितिक हो गया. अब इसके बाद बात करते हैं. उस समय उपराज्यपाल अनिल बैजल साहब ने मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को चिठ्ठी लिखकर कहा था कि गेस्ट टीचर को पक्का करने का मामला उनके या दिल्ली विधान सभा के अधीन नहीं आता. यह हो सकता है कि आपको मेरी बात पर यकीन नहीं आये. इस खबर को आप एनडीटीवी के हिंदी वेवसाइट पर पढ़ सकते हैं.
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उन्होंने किसी का नाम नहीं लेते हुए आरोप लगाया कि बड़े-बड़े दावों और सफलताओं के श्रेय लेने की होड़ में आज जब गेस्ट टीचर्स की नैया भवंर में छोड़कर कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है. आगे उन्होंने ने सभी से अपील की है कि अभी भी वक़्त है कि बिना किसी देरी के कोर्ट का दरबाजा खटखटाया जाना चाहिए. नौकरी रहेगी तो ही लड़ाई लड़ सकते हैं अन्यथा पूरा संघर्ष बेकार चला जायेगा.
मगर हमारा तो कहना है कि साथियों अभी एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का सही वक्त नहीं है. हमें हर हाल में अपने पुराने गीले-सिकवे को भुला कर इसका विरोध मिलकर करना चाहिए. तभी सरकार भी झुकेंगी और हमारी नौकरी भी बचेगी.
अगर सुनवाई नहीं हुई तो आमरण अनशन पर बैठेंगे
उधर दूसरी तरफ प्रवीन तोबड़िया, नेता गेस्ट टीचर ने इसी शनिवार दिनांक 16 दिसंबर 2017 को दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष श्री मनोज तिवारी के घर पर पहुंचने की अपील की है. उन्होंने आगे कहा है कि वो एकत्रित होकर उनसे अपना वादा पूरा करने और हमारा बिल पास करवाने का नैतिक दबाव डालेंगे. आगे उन्होंने यह भी ऐलान किया है कि अगर हमारी सुनवाई नहीं हुई और तुरंत हमारी पॉलिसी पास करने पर कार्यवाही नहीं हुई तो हम सभी वहीं से आमरण अनशन पर बैठ जायेंगे और तब तक नहीं उठेंगे जब तक हमारी बात मान नहीं ली जाती हैं.
नेताओं के कहे पर स्टैंड बदलते रहे तो कमजोर होगा आंदोलन
प्रवीन जी से इतना ही कहना चाहूंगा कि हमें नहीं लगता की अब मनोज तिवारी आपके लिए कुछ कर पायेंगे. अगर घेरना ही है तो आपके स्थाईकरण की राह में रोड़ा बने उपराजयपाल महोदय को घेरिये. उनसे पूछिए गेस्ट टीचर को नियमितकरण अगर दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता तो किसके अधिकार में आता है. ऐसे भी मनोज तिवारी जी ने तो पहले ही वादा किया है, और अगर वो सच्चे हैं तो आपके धरने पर आपलोगों का साथ देने अपने पद की परवाह किये बिना आयेंगे. याद रखें समय बहुत कम है. अगर राज नेताओं के बात में आकर बार-बार अपना स्टैंड बदलते रहे तो आपका ही आंदोलन कमजोर होगा.
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