प्रारंभिक शिक्षकों को निर्वाचक मताधिकार की मांग
शिवचंद्र प्रसाद नवीन का संछिप्त परिचय
इस सन्दर्भ में जानकारी से पहले श्री नवीन से संछिप्त परिचय करवाते हैं. वैसे तो ये किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं मगर दैनिक जागरण के खबर के अनुसार सन 2012 में शिवचंद्र प्रसाद नवीन ने बतौर प्रधानाध्यापक राजकीय मध्य विद्यालय कल्याणपुर बस्ती, मोहिउद्दीन नगर, समस्तीपुर में कार्यरत थे. इस दौरान उन्होंने प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी रीता कुमारी पर वित्तीय अनियमितता, भ्रष्टाचार का आरोप ही लगाकर आदेश मानव संसाधन विकास पटना से जांच की मांग की थी.
उनके द्वारा उच्चाधिकारियों को लिखे शिकायत से हड़कंप मच गया था. जिसके बाद त्वरित करवाई करते हुए न केवल उस अधिकारी को सस्पेंड करते जांच की करवाई की गई, अपितु जांच सिद्ध होने के बाद श्रीमती कुमारी को पद से डिमोट करते हुए सहायक शिक्षक बना दिया गया.
शिक्षकों का चुनाव के दौरान डियूटी पर मतदान का अधिकार मिला
इसके आलावा भी सामाजिक स्तर पर और अपने कार्यकाल के दौरान काफी संघर्ष किये हैं. अभी तक किसी के सामने न तो झुके और न ही उन्होंने अपने वसूलों से समझता ही किया है. आज अगर शिक्षक चुनाव के दौरान डियूटी पर मतदान कर पाते हैं तो यह उनके दवारा पटना हाई कोर्ट में जनहित याचिका की जीत से ही संभव हो पाया है.
प्रारंभिक शिक्षकों को निर्वाचक मताधिकार की मांग
श्री शिवचंद्र प्रसाद नवीन ने बिहार विधान परिसद के चुनाव प्रक्रिया को असंवैधनिक और लोकतंत्र का मजाक बताते हुए मुख्य निर्वाचन आयोग को पत्र लिखा है. उन्होंने अपने पत्र में कहा है कि पुरे राज्य में मात्र 20 प्रतिशत शिक्षक मतदाता के वोट के आधार पर 100 फीसदी शिक्षकों का नेतृत्व तय किया जाता है. शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से विधान परिषद् चुनाव का प्रवृत पद्धति संवैधानिक संकल्पों का गंभीर हनन तथा लोकतांत्रिक वसूलों व् आदर्शों का वंध्याकरण ही है.
उन्होंने बताया कि माध्यमिक विधालय से लेकर विधान परिषद में प्रारंभिक शिक्षकों को आवांछित होने में अपरिहार्य कारण इनके तायदाद, शिक्षकों में 80 फीसदी की मौजूदगी ही है, क्योकि लोकतंत्र में निर्वाचन का परिणाम बहुमत से तय होता है.
प्रारंभिक शिक्षकों में 90 फीसदी शिक्षक गांव व् गरीब परिवार से
उन्होंने आरोप लगते हुए कहा कि माध्यमिक विधालय से लेकर विश्वविधालय शिक्षकों में 90 फीसदी शिक्षक राज-समाज के खास परिवार से तालुक रखते हैं, जबकि प्रारंभिक शिक्षकों में 90 फीसदी शिक्षक गांव व् गरीब यानी बिलकुल आम परिवार से आते हैं. सूबे में एक मात्र प्रारंभिक शिक्षक ही आज भी गुरूजी या फिर शिक्षक से राज-समाज में पहचाने जाते हैं.
जबकि माध्यमिक से लेकर विश्वविधालय शिक्षक तक अपना संबोधन सर या फिर मास्टर व् प्रोफ़ेसर से रूप में जो शिक्षक से ऊपर माने जाते हैं. फिर 100 फीसदी के लिए प्रवृत चुनाव पद्द्ति केवल 20 फीसदी सर (वीआईपी) के लिए आरक्षित कर दी गई है, क्योकि 80 फीसदी को उपेक्षित रखने का कारण आर्थिक और सामाजिक ज्यादा दीखता है, संवैधानिक लोकतांत्रिक तो कदापि नहीं.
बिहार उप मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने श्री नवीन के मांग को प्रेषित किया
इसके बाद श्री बैजूनाथ कुमार सिंह, उप मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी बिहार ने भी शिवचंद्र प्रसाद नवीन के मांग पत्र को श्री वरिंदर कुमार, प्रधान सचिव, भारत निर्वाचन आयोग को भेजा है. श्री नवीन ने कहा है कि मात्र 20 प्रतिशत वोटर के वोट के आधार पर 100 फीसदी शिक्षकों का प्रतिनिधि कैसे तय किया जा सकता है?
आजादी के बाद दबे कुचले को उनके असली हक़ से वंचित रखने का सिस्टम बना हुआ है. इसके खिलाफ वो मताधिकार का हक़ मिलने तक संघर्ष करेंगे. साथ ही सूबे के प्रारंभिक शिक्षकों से अपील की है कि उनको मताधिकार के हक़ के लिए संघर्ष पर आना ही पड़ेगा.
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