अभी हाल ही में राजस्थान सचिवालय के लिए 18 पदों के लिए चपरासी के लिए नियुक्ति निकली थी. इस न्युक्ति ने सरकार और मिडिया के न्यू इंडिया और स्किल्ड इंडिया, बढ़ो इंडिया, उठो इंडिया और जा जाने क्या-क्या नामों से देश के तरक्की के दाबों की पोल खोल कर रख दी है. इस इंटरव्यू में मारकर 18 पदों के लिए कुल 12 हजार 453 लोगों ने इंटरव्यू दिया. जिसमे 129 इंजीनियर्स, 23 वकील, एक चार्टर्ड अकाउंटेंट, 393 कला संकाय में पोस्टग्रेजुएट शामिल हुए. राजस्थान विधानसभा में चपरासी पद के लिए इंटरव्यू में पास 18 लोगों में 30 वर्षीय स्थानीय बीजेपी विधायक का बेटा भी शामिल है.
बताया जा रहा है कि राजस्थान विधानसभा में चपरासी पद के लिए 10वीं पास विधायक पुत्र का चयन का स्थान 12वां है. जिसके बाद राजनितिक हलचल होना स्वभाविक बात है. विपक्ष ने इस न्युक्ति में गड़बड़ी की आशंका जताई वही बीजेपी विधायक ने इसको सिरे से ख़ारिज कर दिया है. जनसत्ता के खबर के अनुसार तो सचिन पायलट कांग्रेस विधायक ने तो इस इंटरव्यू की उच्स्तरीय जाँच की मांग तक कर दी है.
ऐसे बीजेपी विधायक ने इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से कहा कि, ‘विपक्ष कहता है कि मैंने अपने बेटे को नौकरी दिलवाने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया, लेकिन अगर मेरी इतनी ही चलती तो मैं अपने बेटे को चपरासी की नौकरी क्यों दिलवाता? अगर ऐसी ही बात थी तो मैं उसे बड़ी नौकरी दिलवाता.’ अब विधायक जी को कौन बताये कि 30 साल के 10वी पास युवक को कहां बड़ी नौकरी पर लगायेंगे. अब ऐसे भी सरकारी नौकरी की भर्ती पर तो रोक लगी है.
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इंजीनियर्स, वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट, ग्रेडुएट डिग्रीधारी चपराशी के पद पर क्यों काम करना चाह रहें हैं? क्या यह शौक से चपराशी बनना चाहते हैं. तो जबाव होगा नहीं. यह इंटरव्यू पूरी तरह से सरकार की पोल खोलती है. आज जब हर जगह जब नौकरी की मारा-मारी है.
आज किसी भी विभाग में एमबीए, एमसीए, ग्रेडुएट को जहां मात्र 10-12 हजार में संतोष करना पद रहा है, वहीं मात्र 8-10वीं पास सरकारी चपरासी को 25-37 हजार वेतन मासिक मिल जाता है. इसलिए लोग चपराशी के पद को ललचाई नजर से देखने लग गए हैं. सच ही किसी ने कहा है कि बाप बड़ा न बहिया सबसे बाद रुपईया…
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