नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने पांच साल पुराने मामले में फैसले सुनाते हुए कहा कि सिविल सर्विसेज एग्जाम के मार्क्स अब आरटीआई अधिनियम के तहत नहीं बताए जा सकेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक पांच साल पुराने फैसले को खारिज़ कर दिया जिसमे कोर्ट ने संघ लोक सेवा आयोग को निर्देश दिया था कि वो सिविल सर्विस के प्रिलिम्स परीक्षा में परिक्षार्थियों की ओर से अर्जित अंकों को सार्वजनिक करे.
सिविल सर्विसेज एग्जाम के मार्क्स?
जस्टिस आदर्श के गोयल और उदय यू ललित की बेंच ने इस मामले पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि अंकों को सार्वजनिक करने का गहरा नक़रात्मक असर मूल्यांकन प्रक्रिया पर पड़ सकता है. इससे ना केवल प्रतिष्ठा बल्कि सिस्टम की अखंडता के साथ समझौता करने के बराबर होगा.
आगे उन्होंने कहा कि अन्य शैक्षणिक निकायों की परीक्षाओं की स्थिति अलग-अलग स्तर पर खड़ी हो सकती है. कच्चे अंक प्रस्तुत करने से यूपीएससी द्वारा उपरोक्त जाहिर किए गए मुद्दों की वजह से समस्याएं पैदा हो सकती हैं जो कि सार्वजनिक हित में नहीं होगी.’
“सुप्रीम कोर्ट ने पहले दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया जिसमें यूपीएससी से उम्मीदवारों के प्रारम्भ अंक का खुलासा करने को कहा था”
हालांकि, खंडपीठ ने कहा कि अगर कोई मामला सामने आया है, जहां न्यायालय को पता चलता है कि सार्वजनिक हित में जानकारी देने की आवश्यकता है, तो कोर्ट निश्चित रूप से ऐसा करने के लिए हकदार है. दिल्ली हाई कोर्ट के नज़रिए को खारिज़ करते हुए बेंच ने कहा, ‘अगर नियम या कार्यप्रणाली के तहत ऐसा जरूरी है, ज़ाहिर है कि ऐसे नियम या प्रक्रिया लागू की जा सकती है. लेकिन इस मामले में सभी पहलुओं पर विचार किए बगैर निर्देश जारी किए गए हैं.’
सर्वोच्च न्यायलय ने कहा, ‘सूचना का अधिकार, जनहित, सरकार के कुशल कामकाज, वित्तीय संसाधनों का बेहतर उपयोग और संवेदनशील जानकारी की गोपनीयता में संतुलन बनाना ज़रूरी है और ये मार्गदर्शक कारक हो सकता है. लेकिन हाई कोर्ट ने इन मापदंडों को ध्यान में नहीं रखा.
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