नई दिल्ली: आज कुछ अख़बार ने लिखा है कि दिल्ली स्टेशन पर लालू यादव का कुलियों ने जोरदार स्वागत किया. आखिर क्यों किया? इसके बारे में नहीं बताया है. इसकी बारे में मंटू कुमार यादव ने काफी बेहतर ढंग से लिखा है. मंटू भारतीय रेल में इंजीनियर पद कार्यरत हैं और बिहार छपड़ा जिले के निवासी हैं. आइए उनके ही शब्दों में जानते हैं.
लालू यादव का दिल्ली स्टेशन पर कुलियों ने जोरदार?
ये तस्वीरे देख रहे हैं ना लाल शर्ट पहने, माथे पर गमछा लिये, तस्वीरे कल की दिल्ली स्टेशन की है, और ये है हमारे कुली भाई. आज हमने जब तमाम अखबारो पर नजर दौडाई तो हरेक अखबार ने लिखा है. दिल्ली स्टेशन पर लालू यादव का कुलियों ने जोरदार स्वागत किया. आखिर क्यू किया, ये तो मीडिया वाले नही बताया है, तो सुनिये मै बताता हूं.
बात कल की है दिल्ली स्टेशन पर मेरे एक साथी कल पटना आ रहे थे, उन्होने ये आंखोंदेखी सुनाई. वो दिल्ली स्टेशन तकरीबन 11 बजे पहुंचे होंगे. उन्होने देखा 12 बजे के आसपास राजद के कई नेता धीरे-धीरे रेलवे जंक्शन पर पहुंचने लगे हैं.
लालू जी आ रहे है, उनका तबीयत ठीक नही है
एका एक कुछ कुली लोग आते है और उस भैया से पुछते है कि “कौन आ रहा है भैया”. काफी भीड़ को देखकर उनको लगा कोई बड़ा लोग आ रहे है..समान उठाऊंगा तो कुछ पैसा हो जायेगा. उस भाई ने कुली से बस इतना ही बोला की, “लालू जी आ रहे है, उनका तबीयत ठीक नही है. एम्स जायेंगे इलाज के लिए”.
फिर क्या था.. लालू यादव का नाम सुनते ही उस कुली ने वहां से दौड़ लगा दी. वह हर-प्लेटफार्म पर दौड़-दौड़ कर गया और अपने साथी कुली से बोलता गया कि, “अरे चल-चल ….भगवान मालिक आ रहल है…चल ना ऊ प्लेटफार्म पर. फिर उस प्लेटफार्म पर धीरे-धीरे सभी कुली इक्ठ्ठा होने लगे. उनको अब न तो उनको अपने भाड़ा कि चिंता थी और न ही और नहीं ही रेल अधिकारी का डर.
इस दौरान कुछ यात्री लोग बोल भी रहे थे कि हमारा समान पहुंचा दीजिये. इसपर उन कुलियों में से एक ने बोला, “जाइए ना सर..रोज तो पैसा कमैयवे करते है. आज मालिक बीमार है..वो आ रहे है. उनका दर्शन करना है. जब वो हमारे जिंदगी के कष्ट को सदा के लिए दूर कर दिया है तो आज उनके दुःख में हम खडा नही रहेंगे क्या?”.इस कारण यात्री अपना सामान खुद उठाने को विवश थे. कुली भाई तो लालू प्रसाद के इंतजार में थे.
बहुत के आखों में आंसूं आपरूपी बहने लगता है
नई दिल्ली स्टेशन पर जैसे ही राजधानी एक्सप्रेस पहुंची. वैसे ही पूरा का पूरा दिल्ली स्टेशन गगनभेदी नारों से गूंज उठा, “लालू नही है ये गरीबो के लाल हैं, हम सब के भगवान हैं. जब तक सूरज चांद रहेगा, मालिक तेरा नाम रहेगा. लालू यादव जिंदाबाद, लालू यादव मत घबराना, हम तुम्हारे साथ हैं. ट्रेन से लालू जी निकलते है. दोनों हाथ जोडकर प्रणाम करते हैं. जैसे ही लालू जी के चेहरे को कुली भाई देखते है, बहुत के आखों में आंसूं आपरूपी बहने लगता है. इसके बाद फिर भी जिंदाबाद के नारे लगते हैं.
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? हर रोज कितने बड़े से बड़े लोग और कितने ही पूर्व रेलमंत्री दिल्ली आते जाते रहते हैं. आज से पहल किसी ने ऐसा नहीं किया, लेकिन लालू जी ने ऐसा क्या किया जो कुली भाइयों ने अपना काम धाम छोड़ उनका इस तरह से स्वागत किया.
रेलमंत्री रहते, इन कुली भाइयों की नौकरी स्थाई करवा दिया
अब जाने लें कि लालू प्रसाद जी ने रेलमंत्री रहते, इन कुली भाइयों की नौकरी स्थाई करवा दिया. उनके बोझ उठाने का वजन फिक्स करवा दिया. ऐसा कर न केवल उनका सम्मान किया बल्कि लालू प्रसाद के रेलमंत्री रहते कुली भाइयों को हर सुविधा दी गई, फिर उनके लिए क्यों न मरें. मंटू जी आगे लिखते हैं कि ये ही तो लालू की असली संपति है, असली धन है. जिस पर ना तो बीजेपी का तोता सीबीआई, ईडी, इनक्म टैक्स छापा मार सकता है, ना ही जब्त करता है. ये ही कारण है और लालू जैसा लाल इस धरती पर बार बार नही पैदा होगा.
मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए कुलियों में रेलवे में नौकरी दे
अब इसके आगे जानते हैं. यह तो मंटू जी ने अपने साथी के आपबीती के आधार पर था. इस स्वागत को दूसरे वजह को जानते हैं. आज से 164 वर्ष पूर्व जब रेलगाड़ी भारतीय व्यवस्था का हिस्सा बनी तभी से कुली इस रेल व्यवस्था का अहम हिस्सा रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लोकसभा चुनाव में अच्छे दिन लाने का वायदा याद दिलाने कुलियों ने जंतर मंतर पर मोदी सरकार से गुहार करने आये कि मोदी सरकार भी, पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद की तरह ही मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए कुलियों में रेलवे में नौकरी दे. परन्तु जब कुलियों ने जंतर मंतर पर सितम्बर 2014 में तीन दिन के सतत आंदोलन किया तो उनको समझ में आ गया कि इस देश में आम गरीब लोगों की न तो सरकार ही सुनती है व नहीं समाचार जगत.
इसके बारे में कुली संगठन ने जहां आम गरीब कुलियों की दयनीय स्थिति को देख कर लालू प्रसाद यादव जैसे मंत्री ने कुलियों को रेलवे में नौकरी देने का सराहनीय कार्य का बरबस याद किया. वहीं कुलियों का हमदर्द बनने वाले राम विलास पासवान द्वारा मंत्री होने के बाबजूद आंदोलनरत कुलियों की उपेक्षा करने से बेहद थे.
तीन दिन के अपने आंदोलन के बाद सरकार द्वारा अपने आंदोलन की उपेक्षा किये जाने से अधिक गरीब कुली इस बात से बेहद आहत हुए कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाने वाले समाचार जगत ने उनके आंदोलन की एक पंक्ति का समाचार देना भी मुनासिब नहीं समझा. आज भी उन्हें इंतजार है किसी लालू यादव जैसे हमदर्द रेलमंत्री की, जो उनके स्थिति को समझे और उनका बेरा पार करें.