नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों को राहत देते हुए कहा कि रिटार्ड करने के बाद 3 महीने के अंदर ग्रेच्युटी की राशि मिल जानी चाहिए. किसी भी कर्मचारी को नियमित हो जाने के बाद ऐसा कोई भी कारण नहीं है कि उनको रिटारमेंट के समय ग्रेच्युटी से वंचित रखा जाए. आइये जानते हैं कि माननीय कोर्ट ने इसके बारे में और क्या-क्या कहा?
ग्रेच्युटी एक्ट कमर्चारियों के फायदे के लिए बना
हिंदुस्तान के खबर के अनुसार जस्टिस आर के अग्रवाल और एएम् स्प्रे के पीठ ने कहा कि ग्रेच्युटी एक्ट कमर्चारियों के फायदे के लिए बना है. जिन कर्मचारियों ने नियोक्ता की लम्बे समय तक सेवा की है तो सरकार का भी फर्ज बनता है कि उनके रिटारमेंट के बाद बिना अदालत के चक्क्कर लगवाए ग्रेच्युटी का भुगतान करे.
याचिकाकर्ता नेतराम के याचिका की सुनवाई करते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया. इसके साथ ही माननीय कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि कर्मचारियों को बेबजह मुकदमे में न उलझाया जाए. इस मामले को लम्बा खींचने के कारण छतीसगढ़ सरकार को 25,000 रूपये का जुर्माना भी लगाया है.
सूत्रों के मुताबिक छतीसगढ़ के कर्मचारी ने अपने रिटारमेंट के बाद ग्रेच्युटी की अर्जी दी थी. जिसके बाद कोर्ट में मामले जाने के बाद, हाईकोर्ट ने यह कहते हुए रोक लगा दिया था कि नेतराम ने मात्र 3 वर्ष की सेवा ही नियमित कर्मचारी के रूप में की है. जबकि शेष 22 वर्ष दिहाड़ी मजदुर के रूप में काम की है. इसलिए ग्रेच्युटी एक्ट के तहत कम से कम 5 वर्ष की सेवा पूरी होनी चाहिए. हाईकोर्ट के इस आर्डर को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बार सेवा नियमित होने के बाद कर्मचारी ग्रेच्युटी का हकदार हो जाता है. इसके लिए उनकी पूर्व की सेवा भी गिनी जाएगी, बशर्ते यह देखा जाए कि उसने ग्रेच्युटी एक्ट की धारा 2 ए के अनुसार बिना रूकावट के 5 वर्ष की सेवा की है.
इससे पहले भी गुरूवार को माननीय सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस मदन लोकुर की बेंच ने फैसला दी थी कि सरकार कानून में आवश्यक संशोधन करे ताकि कर्मचारी को रिटारमेंट के बाद अनावश्यक भटकना न पड़े.
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