त्रिपुरा चुनाव रिजल्ट सामने आ चूका है. पिछले चुनाव में मात्र डेढ़ परसेंट वोट वाली पार्टी बीजेपी आज सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. इससे पहले त्रिपुरा में 25 साल से लेफ्ट की सरकार थी. जिसकी अगुआई देश के सबसे गरीब नेता माणिक सरकार कर रहे थे. यह बात कहने में कोई दोराय नहीं की जनता ने इसबार उनको नकार दिया है. अभी तक इस रिजल्ट पर काफी लोग विश्लेषण कर रहे और काफी ने अपना विश्लेषण कर शोशल मिडिया व् अन्य माध्यमों से बता भी दिया.
त्रिपुरा चुनाव रिजल्ट Left की हार
कुछ लोगों के अनुसार त्रिपुरा चुनाव रिजल्ट से लेफ्ट का सफाया हो चूका है तो कुछ लोगों ने कहा कि वाम का पांव उखाड़ चूका है. देश के लोग सभी लोग आजाद है, सबके अपने विचार हैं और अपने विचार रखने के लिए आजाद हैं. आरोप प्रत्यारोप तो लगा ही रहेगा, मगर अहम् बात है इस हार या जीत से हम सीख क्या लेते हैं. लेफ्ट का मकसद किसी एक चुनाव को जीत या हार कर पूरा नहीं होता. हमारी समझ से लेफ्ट की तो सही मायने में जीत तभी होगी जब पुरे देश के लोगों की सोच बदले और समाजवाद की स्थापना हो. जिसमे न कोई बड़ा हो न कोई छोटा हो, न कोई ऊंचा हो न कोई नीचा हो.
BJP को मुद्दों की राजनीती का लाभ तो नहीं
हम खुद आज त्रिपुरा का रिजल्ट देखकर अचंभित हैं. ऐसे रिजल्ट की उम्मीद बिलकुल ही नहीं थी. ममता बनर्जी ने कहा कि “कई जगह चुनाव में बीजेपी के द्वारा धांधली हुई है. जिसके खिलाफ सीपीआईएम ने चुप्पी साध ली. उन्होंने इसका विरोध नहीं किया”. यह बात कितनी सही है यह तो वहां के लोगों को ही पता होगा. इसके दूसरे तरफ कुछ लोग कह रहें है कि कर्मचारियों ने लेफ्ट को वोट नहीं किया.
उनका कहना है कि वाम सरकार ने अभी तक कर्मचारियों को चौथा वेतन आयोग ही लागू कर रखा था. जिसके बाद बीजेपी ने सांतवे वेतन आयोग लागू करने का वादा किया और जीत मिली. एक तरह से देखें तो मुद्दों की राजनीती का लाभ मिला है.
कोई भी कर्मचारी या मजदूर गुलाम बनने से बच पायेगा
अगर चौथे वेतन आयोग वाली बात सत्य है तो यह सवाल सचमुच सोचनीय है कि ऐसा क्यों? हां मगर परिस्थिति चाहे जो भी हो मगर त्रिपुरा के कर्मचारियों ने गलत लोगों से सांतवे वेतन आयोग की आस लगा ली है. सभी को पता है कि केंद्र में मोदी सरकार के बने आज 4 वर्ष पूरा होने जा रहा है. आज-कल करते-करते अगले कुछ ही महीनों में सरकार का कार्यकाल भी समाप्त हो जायेगा.
जिसके बाबजूद आज तक सांतवा वेतन आयोग की सिफारिश लागू करना तो दूर उलटे जेटली साहब ने यह भी कह दिया है कि अब आगे से कोई भी वेतन आयोग नहीं बन पायेगा. ऐसे में अगर कर्मचारियों के आस पर पानी फिरना तय है. इसके आलावा आने वाले समय में मोदी सरकार ही मजदूर हित के लिए बने 44 श्रम कानून समाप्त करने जा रही है. यह कानून हमारे पूर्वजों ने खून की होली खेलकर बनवाई थी. इसके बाद हमें नहीं लगता कि कोई भी कर्मचारी या मजदूर गुलाम बनने से बच पायेगा.
यह बात सही है कि कोई भी पार्टी अकेले एक आदमी से नहीं चलता. इसमें हर तरह के लोग होते हैं. उनकी अलग-अलग विचार है. कोई मां के पेट से कम्युनिष्ट पैदा नहीं होता. सभी का जन्म इसी शोषणयुक्त समाज में होता है. हां, संघर्ष के आग में तप कर ही एक सच्चा कम्युनिस्ट बनता है जो कि मोमबत्ती की तरह खुद को जला कर दूसरे को प्रकाश देता है.
अगर हम हम मानव हक के लिए संघर्ष कर रहे या किये है तो इसका मतलब यह कतई नहीं समझे कि यह किसी के ऊपर अहसान है. बल्कि मानव जीवन वही, जो दूसरे यानि समाज के लोगों के काम आये. नहीं तो जीवन तो एक जानवर भी काट लेता है. हमारा मानना है कि लेफ्ट ही एक ऐसी पार्टी है जो केवल मजदूरों और उनके हक की बात करता है. लेफ्ट हमें जात-धर्म के नाम पर नहीं बांटता, अगर हमें किसी भी कम्पनी या मालिक से परेशानी होती या नौकरी जाती तो उस समय हमें कोई और नहीं सूझता. वह हमारे हक के लिए आवाज उठता है. आज अगर त्रिपुरा में लेफ्ट की हार हुई है तो यह मजदूर वर्ग की हार है.
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वोट के प्रतिशत को दिखाकर अपनी हार से भाग नहीं सकते
यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि सही आदतें सीखना बहुत मुश्किल हैं मगर गलत आदतें लोग बिना सिखाये ही सीख जाते हैं. हमारे समझ से आज युवा वर्ग का आकर्षण बीजेपी की तरफ अधिक बढ़ रहा है. उनके विचारधारा को देखते हुए यह देश के लिए सही नहीं है. बिना युवाओं को साथ लिए बदलाव की राजनीती सम्भव नहीं है. उम्मीद करूंगा कि इस लेख का सही मतलब समझेंगे…सोचियेगा.
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