UPNAL: उत्तराखंड राज्य के सभी सरकारी विभाग में ठेके पर तैनात UPNAL वर्कर एकमात्र सरकारी आउटसोर्सिंग एजेंसी उपनल (उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम) के माध्यम से काम करते हैं. हर संविदाकर्मियों का इस तरह लगातार काम करते हुए लगभग 10 साल हो चुके हैं. इस दौरान कई सरकारें आई और गई मगर उपनल कर्मचारियों के लिए अभी तक कोई निति निर्धारित नहीं की गई है. अभी भी वे मात्र 6 हजार मासिक पर काम करने पर मजबूर हैं.
मोदी जी चुनाव प्रचार में उत्तराखंड आये
दीपक चौहान जी ने बताया कि, “मोदी जी चुनाव प्रचार में उत्तराखंड आये और बोले “पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम आएगी”. मगर यह क्या लोगों ने उनकी सरकार भी बना दी. मगर अभी भी प्रदेश के 21 हज़ार उपनल कर्मचारी सरकार से सम्मानजनक वेतन मांग के लिए मुख्यमंत्री से बात करने की कोशिश कर रहें हैं. जबकि आलम यह है कि मुख्यमंत्री साहब के पास समय ही नहीं है”. इसके साथ उन्होंने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र के माध्यम से सारी जानकारी से अवगत कराया, मगर कोई जबाब नहीं आया.
उच्च न्यायालय से जो भी फैसला मिलेगा सरकार अनुपालन?
जानकारी के अनुसार 21 मार्च को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष श्री प्रीतम सिंह ने प्रदेश के 21 हजार उपनल कर्मचारियों का मुदा सरकार के समक्ष उठाया. जिसके बारे में ससंदीय कार्यमंत्री श्री पंत ने कहा कि समय-समय पर इनके वेतन में संसोधन होता रहता है. उपनल कर्मचारियों के वेतन के प्रति सरकार काफी गंभीर है और जल्द ही मंत्रिमंडल में इस मसले को रखा जायेगा. उन्होंने यह भी कहा कि उपनल कर्मचारियों को संविदा पर रखने का मुद्दा हाईकोर्ट में लंबित है. उच्च न्यायालय से जो भी फैसला मिलेगा सरकार उनका अनुपालन करेगा.
अब यह हाईकोर्ट में मामला क्या है इसको जानने के लिए दीपक जी के पास फोन किया तो पता चला कि उनके संगठन ने 2016 में प्रदेशव्यापी हड़ताल किया था. लगातार 16 दिन के सफल हड़ताल के बाद मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत जी ने 7 वर्ष पुरे किये कर्मियों को उपनल से हटाकर डाइरेक्ट कॉन्ट्रैक्ट पर रखने का नोटिफिकेशन जारी किया था. मगर इसके बाद किसी युवा ने अपने बेरोजगारी का हवाला देते हुए इसको हाईकोर्ट में चुनौती दे दिया. जिसकी सुनवाई करते हुए माननीय कोर्ट ने सरकार के इस नोटिफिकेशन के लागू करने पर रोक लगा दी. जो कि आज तक बरकरार है.
“समान काम का समान वेतन” देने से किसने रोका?
अब सवाल यह है कि कोई जरा पंत जी से पूछे कि कर्मचारियों को काम के बदले दाम यानि “समान काम का समान वेतन” देने से किसने रोका है? हाईकोर्ट का हवाला देकर आप अपनी जिम्मेवारी से नहीं बच सकते. आप यह क्यों भूल जाते हैं कि 26 अक्टूबर 2016 को देश के सबसे बड़े न्यायालय माननीय सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था? उसके लिए याद दुला दूं कि सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के अनुसार, “कम पैसे में काम करवाना गुलामी करवाना है”. आपने अभी तक उस फैसले को लागु करवाने के लिए क्या किया?
सैलरी में से ये पीएफ और GST के नाम पर घोटाला
हम अपने इस पोस्ट के माध्यम से उपनल कर्मचारियों से एक बार फिर से अपील करूंगा कि सरकार के झांसे में न आएं. ये आपको गुमराह कर रहें है. आपको दुबारा से याद दिला रहा हूं कि आपके सैलरी में से ये पीएफ और जीएसटी के नाम पर अरबो-खरबो रूपये का घोटाला कर चुके हैं. इसके लिए आप हमारा पहले का आर्टिकल पढ़ सकते हैं. अपनी मांग में उसकी जांच का मांग शामिल करे. एकजुट रहें और कोर्ट से ज्यादा खुद के यूनिटी और ताकत पर भरोषा रखें. अगर कोर्ट ताकवर होता तो अभी तक पुरे देश में “समान काम का समान” वेतन लागू होता.
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