देश के प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों को जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक में झटका लग सकता है. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ‘अप्रत्यक्ष कमाई’ को जीएसटी के दायरे में लाने पर विचार कर रही है. इसके लिए जरूरी नियमों में बदलाव और प्रस्ताव को काउंसिल की अगली बैठक में हरी झंडी मिल सकती है. अगर ऐसा हुआ तो प्राइवेट क्षेत्रों में जिन कर्मचारियों को रिम्बर्समेंट के रूप में वेतन का बड़ा हिस्सा मिलता है, उन्हें टैक्स चुकाना होगा.
प्राइवेट कर्मचारियों को झटका
मिडिया रिपोर्ट के अनुसार रिम्बर्समेंट को जीएसटी के दायरे में लाने का विचार अथॉरिटी ऑफ एडवांस रूलिंग (AAR) के कैंटीन शुल्क पर एक हालिया फैसले से पनपा है. AAR ने कहा है कि कर्मचारी से रिकवर किया गया कैंटीन शुल्क जीएसटी के दायरे में आता है. इस फैसले से प्रभावित होकर वर्तमान नियोक्ता टैक्स बचाने के लिए कैंटीन सेवाओं का शुल्क लेना बंद कर सकते हैं, जिससे वेतन पैकेज पर प्रभाव पड़ेगा. नियोक्ता अपने कर्मचारी की कॉस्ट टू कंपनी (सीटीसी) में बढ़ोत्तरी करना नहीं चाहेंगे.
खबर के अनुसार सीए मनिंद्र तिवारी के हवाले से लिखा है कि AAR के फैसले जीएसटी काउंसिल पर बाध्य नहीं हैं. दोनों संस्थाएं एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं. AAR वित्त मंत्रालय के तहत काम करता है और इसका अधिकतर काम आयकर विभाग से जुड़ा है जबकि जीएसटी पर एक अलग जीएसटी काउंसिल फैसले करती है. फिर भी जीएसटी काउंसिल नियमों में बदलाव करते समय AAR द्वारा दिए गए फैसले पर विचार कर सकती है.
अभी तक रिम्बर्समेंट पर टैक्स नहीं लगता है, क्योंकि खर्च होने और उसपर संबंधित टैक्स के भुगतान के बाद ही दावा किया जाता है. लेकिन इसके जवाब में तर्क दिया जा सकता है कि रिम्बर्समेंट के जरिए अप्रत्यक्ष कमाई होती है जिसपर टैक्स लगना चाहिए.
इस संबंध में एक तर्क यह भी दिया जाता है कि कंपनियां बिना रसीद दिए कर्मचारियों के वेतन से रिकवरी कर टैक्स से बच रही हैं. अगर जीएसटी काउंसिल यह फैसला लेती है तो नौकरीपेशा कर्मचारियों को तगड़ा झटका लगेगा.
इस प्रस्ताव के नियम बनने का अर्थ यह होगा कि घर के किराए, टेलीफोन बिल, अतिरिक्त हेल्थ इंश्योरेंस के प्रीमियम्स, हेल्थ चेकअप्स, किराया, जिम, पेशेवर परिधानों, मनोरंजन या ऐसे ही अन्य खर्च पर जीएसटी लग सकता है. अगर यह नियम बनता है तो कॉर्पोरेट कंपनियां अतिरिक्त जीएसटी के खर्च को कर्मचारियों पर डालने के लिए उनके वेतन-ढांचे में बदलाव कर सकती हैं.
उत्तराखंड के UPNAL के कर्मचारियों के सैलरी से GST?
अब सीधी बात है कि पुरे देश में तक़रीबन 50 करोड़+ वर्कर संगठित क्षेत्र यानी निजी क्षेत्र में काम करते हैं. अगर सहमति बनकर लागू किया जाता है कि इनको काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. ऐसे उत्तराखंड के उपनल के कर्मचारियों के सैलरी से गैर क़ानूनी रूप से पिछले वर्ष से ही GST काटा जा रहा है. जो कि बताता है कि किस तरह से किसी भी कानून का खुलेआम दुरूपयोग किया जाता है.
यह भी पढ़ें-
Baniya modi desh ko kangal kr hi diya