गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के खिलाडियों ने मेडल की बरसात कर दी है. वेटलिफ्टर पूनम यादव ने 69 किग्रा कैटेगरी में 222 (स्नैच में 100 और क्लीन एंड जर्क में 122) किग्रा का वजन उठाकर गोल्ड मेडल जीता. इंग्लैंड की सारा डेविस ने सिल्वर और फिजी की अपोलानिया वायवाय ने ब्रॉन्ज मेडल जीता.
रेलमंत्री ने वेटलिफ्टर पूनम यादव को बधाई दी
रेलमंत्री श्री पियूष गोयल ने ट्वीट कर पूनम यादव को बधाई देते हुए कहा है कि, “टीम रेलवे की पूनम यादव ने देश को #CWG2018 में 5वाँ स्वर्ण पदक दिलाया, मुझे गर्व है कि वेट लिफ्टिंग में देश को मिले पांचों स्वर्ण पदक रेलवे के खिलाड़ियों ने जीते हैं, मेरी ओर से सभी खिलाड़ियों को बधाई, आपने प्रतियोगिता में सिर्फ वेट ही नही बल्कि देश के सम्मान को भी ऊंचा उठाया है”. फिलहाल पूनम बीए फाइनल ईयर की पढ़ाई कर ली है और रेलवे में वे टीटीई की नौकरी भी कर रही हैं.
बेटी को प्रैक्टिस कराने के लिए परिवार को मवेशी बेचने पड़े
पूनम के माता-पिता ने बताया कि उनकी बेटी ने तंगी के बावजूद अपना संघर्ष जारी रखा. एक वक्त ऐसा भी आया, जब बेटी को प्रैक्टिस कराने के लिए परिवार को मवेशी बेचने पड़े थे. ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में ब्रॉन्ज जीती थी तब परिवार के पास मिठाई बांटने के लिए भी पैसे नहीं थे.
अपने घर और खेतों का सारा कामकाज भी वही करती थी
पूनम की फैमिली यूपी वाराणसी के दांदुपुर में रहती है. पूनम के पिता श्री कैलाश यादव ने बताया कि ओलिम्पिक में कर्णम मल्लेश्वरी के गोल्ड मेडल जीतने के बाद से यही सपना था कि मेरी बेटी भी मेडल लाए. उनकी बेटी पूनम ने 2011 में प्रैक्टिस शुरू की. इस दौरान अपने घर और खेतों का सारा कामकाज भी वही करती थी. अत्यंत गरीबी के चलते उसे पूरी डाइट भी नहीं मिल पाती थी. फिर अपने गुरु स्वामी अगड़ानंद जी ने मुझे स्थानीय समाजसेवी और नेता सतीश फौजी के पास भेजा. उन्होंने पूनम को खिलाड़ी बनाने में पूरी मदद की और करीब 20 हजार रुपए महीना खर्च दिया.
लोग पूनम के खेलने पर ताने मारते थे
वो बताते हैं कि ग्लासगो कॉमनवेल्थ में हिस्सा लेने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे. तब भैंसों को बेच दिया और करीबियों से 7 लाख रुपए उधार लिए. यहां ब्रॉन्ज मेडल लाकर उसने सबका सपना पूरा कर दिया. उनको मांग उर्मिला देवी ने बताया कि उनकी बेटी ने काफी स्ट्रगल किया. हम वो पल नहीं भूल सकते, जब कई बार भूखे भी रहना पड़ा. लोग पूनम के खेलने पर ताने मारते थे, मगर आज वही सलाम करते हैं. आगे उन्होंने बताया कि 2014 के ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में जब बेटी ने ब्रॉन्ज मेडल जीता तो हमारे पास इतने पैसे भी नहीं थे कि मिठाई बांट सके. तब पूनम के पापा कहीं से पैसों का इंतजाम करके मिठाई लाए. तब घर में खुशियां मनाई गई थीं.
यह भी पढ़ें-
Very nice
Thanks