आज 1 May को दुनिया भर में
May Day यानि मजदुर दिवस (Labour Day) के रूप में मनाते हैं. चूंकि यह एक ही तिथि को कई अलग-अलग 80 देशों में एक साथ मनाया जाता है तो इसको अंतराष्ट्रीय मजदुर दिवस के नाम से जानते है. अगर आप किसी कंपनी या फैक्ट्री या कहीं अन्य जगह काम करते हैं तो जान लें कि इस दिन ही, आपके अनिश्चित काम के घंटों को 8 घंटे में तब्दील किया गया था. इस दिन देश की कई कंपनियों में छुट्टी होती है. इस दिन हम शहीद मजदूरों की सहादत को याद करते हुए लेबर अधिकार के लिए संघर्ष का प्रण लेते हैं.
मजदूर पर पूरे देश आर्थिक उन्नति टिकी
मजदूर हमारे समाज का वह तबका है जिस पर पूरे देश आर्थिक उन्नति टिकी होती है. वह मानवीय श्रम का सबसे आदर्श उदाहरण है. वह सभी प्रकार के क्रियाकलापों की धुरी है. आज के मशीनी युग में भी उसकी महत्ता कम नहीं हुई है. मजदूर अपना श्रम बेचता है, बदले में वह न्यूनतम मजदूरी प्राप्त करता है. उसका जीवन-यापन दैनिक मजदूरी के आधार पर होता है. इसलिए हरेक मजदूर को मजदुर दिवस का असली मकसद पता होना चाहिए. अब सबसे पहले सवाल आता है कि इस मजदूर दिवस की शुरुआत कब और कैसे हुई.
अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत कब और कैसे हुई?
अंतरराष्ट्रीय तौर पर मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत 1 मई 1886 को हुई थी. इसके बारे में बताया जाता है कि अमेरिका के मजदूर संघों ने मिलकर निश्चय किया कि वे 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं करेंगे. जिसके लिए संगठनों ने हड़ताल किया. इस हड़ताल के दौरान शिकागो की हेमार्केट में किसी ने बम ब्लास्ट कर दिया. यह बम किस ने फेंका था यह पता नहीं चल पाया.
मगर इसके फ़ौरन बाद ही पुलिस ने मज़दूरों पर गोली चला दी और कई मजदूरों की मौत हो गई और लगभग 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए. इसके बाद 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में ऐलान किया गया कि हेमार्केट नरसंघार में मारे गये निर्दोष लोगों की याद में 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन सभी कामगारों और श्रमिकों का अवकाश रहेगा.
अब चाहे इन घटनाओं का अमरीका पर एकदम कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा था लेकिन कुछ समय के बाद अमरीका में 8 घंटे काम करने का समय निश्चित कर दिया गया. इसके आलावा शिकागो के उस आंदोलन का फायदा मौजूदा समय भारत और अन्य मुल्कों में मज़दूरों के 8 घंटे काम करने से संबंधित क़ानून लागू हुआ.
भारत में मजदुर दिवस (May Day) की शुरुआत कब हुई?
बादल सरोज ने अपने फेसबुक वॉल पर लिखा है कि भारत में आठ घण्टे काम की पहली लड़ाई हावड़ा रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले मजदूरों ने 1862 में लड़ी थी. 10 घण्टे के काम को घटाकर 8 घण्टे करने की मांग पर इन 1200 मजदूरों ने कुछ दिन की हड़ताल की थी, जिसकी खबर तबके बांग्ला अखबार सोमप्रकाश ने न केवल छापी थी बल्कि उसका समर्थन भी किया था.
ऐसे पहला मई दिवस 1923 में मद्रास में मनाया गया. इसके मुख्य आयोजक और कर्ताधर्ता एम सिंगारवेलु चेट्टियार थे. अगले दिन के मद्रास के अखबार द हिन्दू में छपी खबर के मुताबिक इस दिन मद्रास में दो जगह मई दिवस मनाया गया. एक में स्वयं एम सिनगारवेलु चेट्टियार ने भाषण दिया. यह सभा समन्दर किनारे हाईकोर्ट बिल्डिंग के सामने हुई. दूसरी सभा ट्रिप्लिकेन बीच पर हुई. जिसे मुख्य रूप से एस कृष्णास्वामी सरमा ने संबोधित किया. इस सभा में भी एम सिंगारवेलु चेट्टियार के तमिल में लिखे घोषणापत्र को पढ़ा गया.
आज 8 घंटे कि डियूटी (8 Hrs. Duty) तो सपना ही लगता?
इन सभी के विपरीत, आज पूर्वजों द्वारा खून की होली खेल कर बनवाये 44 श्रम कानून खतरे में हैं. इसमें कुछ तो हमारे शहीदों के भांति शहीद कर दिए गए और कुछ आने वाले दिनों में छीन लिए जायेंगे. हम मजदूर से कब हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और दुबारा से कब गुलाम बन गए पता ही नहीं चला. आज 8 घंटे कि डियूटी तो सपना ही लगता है. असली ग्राउंड रिपोर्ट की बात करें तो बहुत ही काम जगहों पर ही 8 घंटे की शिफ्ट बची है. मजदूरों से सरकारी से प्राइवेट कंपनियां मनमानी ढंग से काम करवाते हैं. खैर इससे क्या? ख़ुशी मनाइये. शायद इससे ज्यादा हो भी क्या सकता है. उससे पहले जरा इसको भी पढ़ लीजिये ->
मोदी सरकार पूर्वजों द्वारा बनवाये श्रम कानूनों को खत्म करने पर आमदा, क्यों. मई दिवस (May Day) की शुभकामनाए.
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