दिल्ली मजदूरों की न्यूनतम वेतन बढ़ने के बाद, हाईकोर्ट में याचिका के माध्यम से EWS-Economically Weaker Section Quota को समाप्त करने की मांग की गई हैं. एक तरह से समझिये तो यह मांग उठी है कि अब दिल्ली में सभी लोग अमीर हो गए हैं यानी कि सभी को 14000 मासिक न्यूनतम वेतन मिलने लगा हैं. इसलिए अब कोई गरीब नहीं रह गया हैं. तो EWS Quota का क्या काम? आइये इसको विस्तार से पढ़ते हैं.
दिल्ली मजदूरों की न्यूनतम वेतन
EWS Quota को समाप्त करने की मांग
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के खबर के अनुसार दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका के माध्यम से EWS–Economically Weaker Section Quota को समाप्त करने की मांग की गई हैं. इसके बारे में बताया गया है कि अब दिल्ली के मजदूरों का न्यूनतम वेतन बढ़ गया है. जो कि हर हाल में 1 लाख सालाना से अधिक हैं. जिसके बाद EWS Quota को समाप्त कर देना चाहिए. इस याचिका मतलब तो यह हुआ कि अब दिल्ली में कोई भी मजदूर गरीब नहीं रहा.
माननीय कोर्ट ने बुधवार को उस याचिका पर प्राधिकरण की प्रतिक्रिया मांगी, जो EWS योजना को इस आधार पर खत्म करना चाहती है कि दिल्ली ने अपने काम के लिए न्यूनतम मजदूरी पेश की है.
जबकी सच्चाई यह है कि भले ही आज दिल्ली सरकार ने न्यूनतम वेतन बढ़ा दिया हो. मगर मिलता कितने को हैं? इसकी जाँच के लिए सरकार के पास पर्याप्त लेबर इंस्पेक्टर भी नहीं हैं. हमारे ब्लॉग और यूट्यूब चैनल वर्कर वॉयस डॉट इन के माध्यम से 100 लोग में 90 लोग पूछते हैं कि दिल्ली का न्यूनतम वेतन कब बढ़ेगा?
इससे ही स्पष्ट हो जाता है कि दिल्ली में कितने लोगों को नया न्यूनतम वेतन मिल रहा हैं. इसके आलावा उन लोगों की भी कमी नहीं हैं, जिनके ATM Card ठेकेदार के पास जमा होता हैं. जिसमे ठेकदार खुद पैसे डालता हैं और खुद अपनी मनमर्जी से वर्कर को पैसे देता हैं. खैर यह बात तो खुद दिल्ली के लेबर मिनिस्टर श्री गोपाल राज ने भी स्वीकार की थी.
EWS Quota क्या हैं?
भारत सरकार ने राइट टू एजुकेशन एक्ट पारित किया था. इसके तहत सरकारी सहायता या छूट पर जमीन पाने वाले निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटों पर आर्थिक रूप से कमजोर (EWS) और वंचित तबके के बच्चों का एडमिशन करने का प्रावधान हैं.
देश के 80 प्रतिशत गरीबों को EWS कोटे की जानकारी ही नहीं है. अगर कहीं से उन्हें पता भी चल जाये तो कम जानकारी के वजह से ईड्ब्ल्यूएस सर्टिफिकेट ही नहीं बन पाता. इसके वावजूद भी अगर उन्होंने कहीं से ईड्ब्ल्यूएस सर्टिफिकेट बना भी लिया तो स्कूल में शायद ही उन्हें दाखिला मिल पाता हैं. 2015 के एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार ईड्ब्ल्यूएस कोटे की कुल सीटों के महज 29 प्रतिशत पर ही एडमिशन हुआ था.
केंद्र की मोदी सरकार ने Budget 2019 मे मध्यम वर्ग और नौकरी पेशा तबके को पांच लाख रुपये तक की व्यक्तिगत आय को कर मुक्त कर दिया. इसके बारे में कहा कि वह कर स्लैब में फिलहाल कोई बदलाव नहीं कर रहे हैं लेकिन पांच लाख रुपये तक की आय पर कर से पूरी छूट होगी.
दिल्ली के मजदूरों का Minimum Wages बढ़ने के बाद, हाईकोर्ट में याचिका दायर
इंडियन एक्सप्रेस के खबर के अनुसार पैरेंट्स ने दिल्ली के मुख्यमंत्री से एब्स कोटे को 1 लाख से बढ़ाकर 3 लाख करने की मांग की हैं. जबकि हमारा तो माना हैं कि उपरोक्त सभी बातों के ध्यान में रखें तो न्यूनतम वेतन पर जीने (3 लाख तक सालाना आय) वाला वर्कर अमीर और 6-8 लाख तक वाले गरीब, थोड़ा अटपटा सा नहीं लगता हैं?
हमारा तो कहना है कि एक ही देश में एक ही सरकार द्वारा गरीबी नापने का एक ही पैमाना होना चाहिए. मतलब न्यूनतम वेतन पर जीने वाले सभी वर्कर को EWS कोटे का मिलना ही चाहिए. जिसके लिए EWS Quota का मानक 1 लाख से बढ़ा कर औरों की तरह 6-8 लाख कर देना चाहिए. आपको क्या लगता हैं?
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