केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए लॉकडाउन किया. जो कि पुरे देश में 25 मार्च 2020 से लागु हुआ. मगर उससे काफी पहले यानी 12 फरवरी से ही स्कुल कॉलेज बंद कर दिए गए थे. जो कि वर्त्तमान में भी बंद हैं. ऐसे में Lockdown me school fee देना है या नही, यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है.
Lockdown Me School Fee देना है या नही?
सुप्रीम कोर्ट में लॉकडाउन के दौरान स्कुल फ़ीस (Lockdown me school fee) को माफ़ करने की मांग को लेकर जनहित याचिका दायर किया गया है. जिसके अनुसार कोई भी स्कुल बिना सर्विस दिए फ़ीस की मांग नहीं कर सकता है. किसी भी स्कूल के द्वारा फ़ीस व् अन्य खर्चों की मांग करना अवैध हैं. इसके साथ ही याचिका में कहा गया हैं कि स्कूल के एडमिशन फॉर्म में कोई फोर्स मेजर क्लॉज नहीं है. स्कूल एडमिशन फार्म के नियमों और शर्तों को मानने को बाध्य हैं.
इस जनहित याचिका में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का जिक्र करते हुए कहा गया है कि “उक्त एडमिशन फार्म में फोर्स मेजर क्लॉज नहीं है, इसलिए बिना सेवा के फीस और अन्य खर्च की मांग करना गैरकानूनी है.” कहा गया है कि ऑनलाइन कक्षाओं का एडमिशन फॉर्म में कोई उल्लेख नहीं है.
इसके साथ ही कोर्ट को बताया गया कि स्टूडेंट के एडमिशन के समय भरे जाने वाले फार्म में कोई क्लाज नहीं हैं कि महामारी/ प्रतिकूल स्थिति/ राष्ट्रीय लॉकडाउन आदि के मामले में स्कूल प्रशासन ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित करेगा और उसी के लिए फ़ीस और अन्य खर्चों की मांग करेगी. एक तरह से देखें तो ऑनलाइन कक्षा तो स्कूली शिक्षा की अवधारणा से पूरी तरह से अलग है. इसके कई दुष्प्रभाव और अवगुण भी हैं.
सुप्रीम कोर्ट से स्कूल फ़ीस में छूट की मांग की गई
इस याचिका में मांग की गई हैं कि जिन छात्रों ने ऑनलाइन क्लास के लिए पूर्व सहमति दी है और शामिल हुए हैं. उनके अनुपातिक शुल्क लिया जा सकता हैं. इसके साथ ही माननीय कोर्ट से आग्रह किया गया हैं कि मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए फोर्स मेजर क्लॉज की एक व्याख्या दे और सरकार को निर्देश दे कि वह स्कूल की फीस में अधिकतम छूट दे.
Lockdown me school fee देना है या नही? मामला पहुँचा सुप्रीम कोर्ट
आज लॉकडाउन के कारण कुछ लोगों को सैलरी नहीं मिली, कुछ को आधी मिली और ज्यादातर लोगों को तो नौकरी से हाथ धोना पड़ा हैं. गरीब मजदूर की क्या कहें, एक मध्यमवर्गी परिवार की भी कमर टूट चुकी हैं. उसके बाद पेट्रोल डीजल के बढ़ते दाम से कोई भी अछूता नहीं है.
शिक्षकों की सैलरी की बात?
अब ऐसे में स्कुल जब सर्विस ही नहीं दे रहा तो फ़ीस किस बात की? अब आप ही देखिए न ट्रेन का टिकट कटवाया. लॉकडाउन हो गया तो टिकट के पैसे वापस हुए की नहीं? इसका मतलब No Service No Pay. हम तो कहते हैं कि जब तक स्कुल बंद तब तक कोई फ़ीस नहीं देनी चाहिए. अब रहा शिक्षकों की सैलरी की बात तो यह स्कुल की जिम्मेदारी है.
हर वर्ष प्रत्यके छात्रों से एडमिशन चार्ज, बिल्डिंग फंड, आदि के नाम पर हजारों रुपया करते हैं.अब एक स्कूल में हर वर्ष एडमिशन की बात हमें तो समझ नहीं आती. इसके आलावा कुछ स्कूलों को सरकार द्वारा कम पैसों से लीज पर जमीन भी दिए हुए हैं. ऐसे में स्कूल के शिक्षकों और नॉन टीचिंग स्टाफ को इन फंडों से साल दो साल तक आसानी से सैलरी दी जा सकती हैं. अगर जो स्कूल आनाकानी करे तो उनके ऑडिटेड बैलेंस सीट चेक करना चाहिए. मगर ज्यादातर स्कूल नेताओं और उनके रिश्तेदारों का न होता तो शायद इतनी लूट खसोट नहीं होती.
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सर द्वती अपील का जवाब कितने दिनो मे देना होता है सूचना आयोग को
वो जबाव नहीं देते बल्कि दोनों पक्ष को नोटिस कर बुलाते हैं और इसका कोई टाइम लिमिट नहीं है.