Latest Delhi Minimum Wages: दिल्ली सरकार द्वारा मजदूरों के न्यूनतम वेतन को बढाने जाने पर विपक्ष ने क्रूर मजाक बताया है। दिल्ली विधानसभा के विपक्ष के नेता श्री रामवीर बिधूड़ी ने कहा है कि जब केजरीवाल सरकार अपने ही कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन नहीं दे रही तो अन्य श्रमिकों का न्यूनतम वेतन घोषित करने का क्या नौतिक अधिकार रह जाता है। अब आप जरूर जानना चाहेंगे कि आखिर उनके इस आरोप में कितनी सच्चाई है?
दिल्ली सरकार कर्मचारियों को Minimum Wages नहीं देती, BJP का आरोप
दिल्ली एनबीटी के रिपोर्ट के अनुसार बिधूड़ी ने दाबा किया है कि राजधानी में आशा वर्कर, आंगनवाड़ी वर्कर, वोकेशनल टीचर, गेस्ट टीचर्स के आलावा डीटीसी, दिल्ली जल बोर्ड, पीडब्ल्यूडी और अन्य विभागों में 3 लाख से ज्यादा कर्मचारी काम कर रहे हैं। वो लोग सालों से अपनी वेतन बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। मगर उनके वेतन में पिछले कई सालों से कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। जबकि दिल्ली सरकार न्यूनतम वेतन (Delhi Minimum Wages) बढ़ोतरी करने के नाम पर अपना पीठ थपथपा रही है।
आपको बता दें कि दो दिन पहले दिल्ली सरकार ने तकरीबन 50 लाख प्राइवेट कर्मचारी/मजदूरों के लिए मंहगाई भत्ते की घोषणा की है। जिसका लाभ दिल्ली के सभी सरकारी विभाग के कॉन्ट्रैक्ट, डेली वेजर कर्मचारी से लेकर, किसी दुकान, होटल, रेस्टोरेंट, सिनेमा घर आदि में काम करने वाले प्राइवेट कर्मचारियों/मजदूरों को मिलेगा।
दिल्ली के मजदूरों के मांग और माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार न्यूनतम वेतन में 39 फीसदी की वृद्धि की गए है। यह बात सच है कि यह पूर्णतः पूरी दिल्ली में लागू नहीं की गई है। जिसके लिए दिल्ली सरकार के साथ ही उनके लेबर विभाग के अधिकारी पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। मगर बीजेपी नेता विधूड़ी का बयान पूरी तरह से सही नहीं है, आइये जानते हैं।
यह बात सही है कि दिल्ली सरकार के कुछ विभागों में भी मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है। अगर आशा वर्कर आंगनवाड़ी वर्कर, गेट टीचर आदि न्यूनतम वेतन के दायरे में नहीं आते ही नहीं हैं। यही नहीं बल्कि आशा वर्कर केंद्र सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और आंगनवाड़ी वर्कर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत स्कीम वर्कर के तहत काम करते हैं।
जिनको न्यूनतम वेतन नहीं बल्कि मानदेय दिया जाता है। उनको सरकार कर्मचारी तक नहीं मानती, ऐसे में बीजीपी नेता को खुद के मोदी सरकार से इनके मानदेय बढ़ाने की बात करनी चाहिए। उनके मानदेय का निर्धारण केंद्र की मोदी सरकार के द्वारा की जाती है।
दूसरी तरफ दिल्ली गेस्ट टीचर न्यूनतम अधिनियम 1948 के अंतर्गत नहीं आते और उनको दिल्ली सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन से कहीं अधिक वेतन मिलता है। खैर, विधूड़ी जी का प्रयास सराहनीय है, मगर उनको कानून की इन बारीकियों का अध्ययन करना चाहिए तभी विपक्ष दिल्ली के मजदूरों का मुद्दा मजबूती से उठा पायेगा नहीं तो यह भी एक मजाक बनकर रह जायेगा।
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