भारत में कर्मचारियों की मनमानी छंटनी पर संसद में सवाल उठाया गया। जिसमें पूछा गया कि आईटी, शोसल मीडिया, एजूटेक फमों और संबंधित क्षेत्रों की विभिन्न बहु-राष्ट्रीय और भारतीय कंम्पनियों में छटनी से कितने कर्मचारियों की नौकरी चली गई। आइये जानते हैं कि मोदी सरकार ने इसका क्या जवाब दिया और असल में वास्तविक स्थिति क्या है?
भारत में कर्मचारियों की मनमानी छंटनी
मोदी सरकार के केंद्रीय श्रम मंत्री भूपेन्द्र यादव ने गुरूवार को राज्यसभा में कहा कि 100 से अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों के लिए, संस्थान को बंद करने या उसमें कर्मचारियों की छंटनी करने से पहले सरकार की अनुमति लेना जरूरी है। उन्होंने राज्य सभा में एक सवाल के जवाब में और क्या-क्या कहा, आइये विस्तार से जानते हैं?
श्री यादव ने अपना यह जवाब आईटी और एजु-टेक सेक्टर सहित कई फर्मों की तरह से बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी की खबरों के बीच दिया है। केंद्रीय मंत्री ने कहां कि औद्योगिक विवाद अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंधन करके की जाने वाली छंटनी गैर कानूनी है।
श्रम मंत्री ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान मार्क्सवादी नेता ए ए रहीम के सवाल के जवाब में कहा कि औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के तहत जिस भी कंपनी में 100 से अधिक कर्मचारी हैं उस कंपनी को बंद करने या वहां कर्मचारियों की छंटनी से पहले अनुमति लेने की जरूरत होती है।
भूपेंद्र यादव ने कहा कि अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन कर के किए जाने वाली छंटनी गैर कानूनी होती है और इस प्रकार की छंटनी किए जाने वाले कर्मचारियों को इसके एवज में अलग से राशि दिये जाने का भी प्रावधान है।
उन्होने यह भी कहा कि क्षेत्राधिकार के अनुसार केंद्र और राज्य सरकार कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए समय-समय पर विभिन्न कदम उठाती हैं। सांसद रहीम ने बहुराष्ट्रीय आईटी, सोशल मीडिया और अन्य टेक कंपनियों में कर्मचारियों की छंटनी के बारे में सवाल पूछा था। भूपेंद्र यादव ने कहा कि सरकार के स्तर पर इस तरह की कंपनियों में कर्मचारियों की छंटनी के बारे में कोई आंकड़े नहीं रखे जाते।
जबकि केंद्र की मोदी सरकार के द्वारा श्रम कानून में बदलाव किया जा रहा है। जिसके बाद एक आंकड़ें के अनुसार 70 फीसदी से ज्यादा मजदुर श्रम कानून के दायरे से बाहर हो जायेंगे। अब आप पूछेंगे कि यह कैसे? आपको बता दें कि 300 या इससे कम मजदूर वाले संस्थानों को बंद करने के लिए सरकार की अनुमति आवश्यक नहीं होगी। जिससे 70 फीसदी कारखाने श्रम कानूनों से बाहर जाएंगे।
केंद्र में मोदी सरकार के बनते ही सर्वप्रथम इंस्पेक्टर राज की खात्मे की बात की गई थी। जिसके बाद लेबर इंस्पेक्टर अचानक से किसी भी कंपनी पर छापा मारने का अधिकार छीन लिया गया है। अब जांच करने से पूर्व मालिक को बताना होता है कि हम फलाना दिन आपके फैक्ट्री/कंपनी का निरक्षण करने आ रहे हैं। अब आप ही सोचिये कि ऐसे में कंपनी मालिक निरक्षण से पूर्व ही सबकुछ दुरुस्त कर लेगा या नहीं? हम तो कह रहे हैं कि मोदी सरकार के हाथियों के तरह दो दांत हैं खाने के और दिखाने के और।
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